By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Dec 28, 2020
अमरावती। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने ‘सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग एण्ड टेक्नोलॉजी’ (सिपेट) जैसे अनुसंधान संस्थानों से जैविक रूप से नष्ट होने वाली प्लास्टिक की तरह पर्यावरण हितैषी उत्पाद बनाने की सोमवार को अपील की। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक के अत्यधिक और लंबे समय तक टिकाऊ होने कारण पर्यावरण के समक्ष कई चुनौतियां पैदा होती हैं। उपराष्ट्रपति ने विजयवाड़ा के नजदीक सुरमपल्ली में स्थित ‘सिपेट’ के संकाय सदस्यों और छात्रों को संबोधित करते हुए इस बात का जिक्र किया कि प्लास्टिक का उपयोग करने से बचना समाधान नहीं है, बल्कि इसका जिम्मेदाराना उपयोग सुनिश्चित करना होगा तथा इसका पुनर्चक्रण करना बहुत जरूरी है।
उन्होंने कहा कहा कि मेडिकल सुरक्षा उपकरणों और पीपीई किट में अपने व्यापक उपयोग के जरिए प्लास्टिक ने कोविड-19 महामारी के दौरान एक अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कहा, ‘‘प्लास्टिक कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार को रोकने में जीवनरक्षक साबित हुआ है। एक बार इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक की सीरिंज, रक्त रखने के थैले, दस्ताने और बढ़ाई गई विशेषताओं वाले अन्य मेडिकल उपकरण इस मुश्किल घड़ी में महत्वपूर्ण साबित हुए हैं। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘समस्या प्लास्टिक में नहीं है। समस्या प्लास्टिक के प्रबंधन के प्रति हमारे रवैये में है। गंदगी फैलाने की आदत और प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के बारे में जागरूकता के अभाव से कई खतरे पैदा हुए हैं। ’’
उन्होंने कहा कि अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर ‘आर’ से बने तीन शब्दों‘रेड्यूस’(उपयोग घटाएं), ‘रीयूज’ (पुन:उपयोग करें) और ‘रिसाइकलिंग’ (पुन:उपयोग करें) एक बेहतर उपाय है। भारत में कचरा प्रबंधन का बाजार 2025 तक बढ़ कर 13.62 अरब डॉलर का हो जाने की उम्मीद है। नायडू ने कहा कि प्लास्टिक पुनर्चक्रण बाजार 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है और 2023 तक 53.72 अरब डॉलर का बाजार हो जाएगा। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि पेट्रोकेमिकल्स और रसायन का उत्पादन बढ़ाना जरूरी है क्योंकि भारत में 2023 तक इसकी मांग 7.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि पॉलीमर की मांग भी बढ़ने आठ प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। इसका इस्तेमाल मेडिकल उपकरण और इंसुलिन पेन, प्रतिरोपण और इंजीनयरिंग आदि में किया जाता है।