By कमलेश पांडे | Sep 29, 2025
साइलेंट डाइवोर्स एक ऐसी स्थिति है जब दम्पति यानी कपल कानूनी तौर पर पति-पत्नी होते हैं, एक ही घर में रहते हैं, लेकिन उनके बीच के भावनात्मक, मानसिक और संवाद के स्तर वाकई एक-दूसरे से बहुत अलग हो जाते हैं। ऐसे में उनके दाम्पत्य जीवन का रिश्ता कागजों पर खत्म होने से बहुत पहले ही भावनाओं और बातचीत के स्तर पर खत्म हो जाता है।
दरअसल, साइलेंट डाइवोर्स का ट्रेंड इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि लोग भावनात्मक दूरी, आपसी संचार की कमी और पारस्परिक सम्मान के अभाव के कारण रिश्ते में खोखलापन महसूस करने लगते हैं, लेकिन सामाजिक दबाव या बच्चों की वजह से एक-दूसरे से अलग नहीं होते। इसलिए इसके संकेतों में एक-दूसरे की बातों में दिलचस्पी न लेना, अकेलापन महसूस करना, जरूरी बातों के अलावा कुछ न कहना और एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से अलग महसूस करना शामिल है।
जहां तक भावनात्मक दूरी की बात है तो समय के साथ, पति-पत्नी यानी कपल्स एक-दूसरे की भावनाओं को समझने में कम रुचि लेते हैं, जिससे उनका पारस्परिक भावनात्मक जुड़ाव खत्म होने लगता है। वहीं, जहां तक संचार की कमी का सवाल है तो रोज़मर्रा की बातों का कम होना और केवल जरूरी या व्यावहारिक बातें करना रिश्ते में संवाद खत्म कर देता है।
वहीं, जहां तक सामाजिक और पारिवारिक दबाव की बात है तो कई लोग तलाक से सामाजिक कलंक या बच्चों की खातिर एक ही घर में रहना पसंद करते हैं, भले ही भावनात्मक रूप से अलग हों। यही वजह है कि एक-दूसरे के जीवन में रुचि की कमी पैदा हो जाती है। इससे पार्टनर की ज़रूरतों या रोजमर्रा की गतिविधियों में दिलचस्पी बिल्कुल खत्म हो जाती है। इससे पति-पत्नी अकेलापन महसूस करते हैं। तन्हा तन्हा रहते हैं। एक ही घर में रहते हुए भी पार्टनर के साथ अकेलापन महसूस करना, एक साइलेंट डाइवोर्स का संकेत हो सकता है।
वहीं, जहां तक साइलेंट डाइवोर्स के संकेत की बात है तो, पहला, जब एक-दूसरे की मौजूदगी से कोई फर्क न पड़ता हो यानी आप और आपके पार्टनर एक-दूसरे की उपस्थिति के प्रति उदासीन हो जाते हैं। दूसरा, बातचीत कम होना यानी बातचीत बच्चों, घर के खर्चों और अन्य व्यावहारिक बातों तक सीमित हो जाती है, न कि भावनात्मक या व्यक्तिगत। तीसरा, रोमांटिक पल का खत्म होना यानी रिश्ते से सभी रोमांटिक पल और अनुभव खत्म हो जाते हैं। चतुर्थ, व्यक्तिगत विकास पर ध्यान न देना यानी पार्टनर एक-दूसरे के जीवन में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते और न ही एक-दूसरे के लिए समय निकालते हैं। पांचवां, पूरी तरह से भावनात्मक अलगाव यानी आप अपने साथी की भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं करते और न ही चाहते हैं, जिससे भावनाओं की डोर पूरी तरह टूट जाती है।
पहला, बातचीत का न होना यानी आप दोनों के बीच केवल जरूरी या काम की बातें होती हैं, गहरे या दिल से संवाद लगभग खत्म हो जाता है।
दूसरा, भावनात्मक दूरी यानी खुशखबरी हो या परेशानी, अब पार्टनर से शेयर करना जरूरी नहीं लगता-इमोशनल बॉन्ड पूरी तरह कम हो चुका है।
तीसरा, फिजिकल इंटीमेसी की कमी यानी छूने, गले लगाने या प्यार जताने जैसे स्पर्श लगभग गायब हो जाते हैं।
चतुर्थ, साथ रहकर भी अकेलापन महसूस होना यानी दोनों एक ही घर में रहते हुए भी खुद को अकेला या अलग-थलग महसूस करते हैं।
पांचवां, एक-दूसरे की जिंदगी में रुचि खत्म होना यानी अब न यह जानना जरूरी लगता है कि पार्टनर का दिन कैसा था, और न ही उनकी भावनाओं की परवाह रहती है।
दरअसल, ये संकेत अगर किसी भी रिश्ते में दिखने लगें, तो समय रहते समझदारी से कदम उठाने की आवश्यकता होती है। खासकर साइलेंट डाइवोर्स से निपटने के लिए सबसे जरूरी है कि स्थिति-परिस्थितियों को समय रहते ही स्वीकारना, खुलकर संवाद करना और अगर जरूरत हो तो प्रफेशनल काउंसलिंग या थैरेपी का सहारा लेना। भारत में अब कई ऑनलाइन व ऑफलाइन मैरिज काउंसलिंग विकल्प भी उपलब्ध हैं।
जहां तक व्यावहारिक तरीके की बात है तो स्वीकार और संवाद को समझें। सबसे पहले यह मानें कि समस्या है, उसे नजरअंदाज न करें। पार्टनर से खुलकर अपनी भावनाएं साझा करें और उनके नजरिए को भी समझने की कोशिश करें। दूसरी बात यह कि गुणवत्तापूर्ण समय बिताएं। साथ में कोई नई एक्टिविटी करें, जैसे डिनर डेट या ट्रैवल प्लान, ताकि रिश्ता फिर से रिचार्ज हो सके। तीसरी बात यह कि समस्याएं साझा करें। अगर कोई मुद्दा अकेले सुलझाना मुमकिन न हो, तो किसी भरोसेमंद दोस्त या परिवार के सदस्य से बात करें। चौथी बात यह कि अपना शौक फिर से जियें। खुद की खुशियों और रुचियों की तरफ ध्यान दें, इससे खुद की नेगेटिविटी कम होगी। पांचवीं बात यह कि मनोवैज्ञानिक सपोर्ट लें। लंबे समय तक समस्या बनी रहे तो काउंसलर, रिलेशनशिप कोच या कपल थैरेपिस्ट की मदद लें।
पहला, ऑनलाइन मैरिज काउंसलिंग: PsychiCare, Manochikitsa, TalktoAngel, Center for Mental Health (CMH), और Saarthi जैसी वेबसाइटों से हिंदी सहित कई भाषाओं में ऑनलाइन काउंसलिंग संभव है।
दूसरा, एक्सपर्ट काउंसलर: दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु आदि शहरों में जैसे Shivani Misri Sadhoo आदि अनुभवी कपल प्रोफेशनल्स से सीधे थैरेपी ली जा सकती है।
तीसरा, थैरेपी के तरीके: अधिकांश काउंसलर कॉग्निटिव बिहेवियरल थैरेपी (CBT), गॉटमैन मैथड और इमोशन्स पर केंद्रित थैरेपी इस्तेमाल करते हैं ताकि भावनात्मक दूरी दूर हो सके। चतुर्थ, गोपनीयता: लगभग सभी प्लैटफ़ॉर्म और काउंसलर्स पेशंट की गोपनीयता की गारंटी देते हैं।
मेरी व्यक्तिगत राय है कि किसी भी प्रभावित दम्पति को इन उपायों को टालना नहीं चाहिए; अगर रिश्ता लगातार खोखला लग रहा है तो खुद और रिश्ते को एक और मौका जरूर दें, ताकि साइलेंट डाइवोर्स का असर आपकी जिंदगी पर न पड़ने पाए। कहने का तातपर्य यह कि मूक तलाक (साइलेंट डाइवोर्स) के चिन्ह जल्दी पहचानकर रिश्ते को ‘खोखला’ होने से बचाया जा सकता है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि मूक तलाक यानी साइलेंट डाइवोर्स का चलन/ट्रेंड आज तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि कई दम्पति (कपल्स) भावनात्मक और मानसिक रूप से एक-दूसरे से कट जाते हैं। लेकिन कानूनी रूप से साथ रहते हैं। इसप्रकार मूक तलाक/साइलेंट डाइवोर्स आपके रिश्ते में एक तरह से धीरे-धीरे जगह बना लेता है और बाहरी दुनिया को अक्सर इसका पता नहीं चल पाता। मानसिक रूप से यह खतरनाक स्थिति है और इससे बचे जाने के लिए पारिवारिक व सामाजिक पहल दोनों ओर से होनी चाहिए।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तंभकार