क्या है जलीकट्टू महोत्सव? जिसे सुप्रीम कोर्ट चाह कर भी बंद नहीं करा सका

By अभिनय आकाश | Jan 15, 2021

आने वाले कुछ महीनों में दो बड़े राज्यों में चुनाव है। बंगाल का सियासी माहौल पिछले कुछ दिनों से ही गर्म हो चुका है, लेकिन तमिलनाडु में सियासत की पतंगबाजी पोंगल के अवसर पर देखने को मिली। मदुरै में राहुल गांधी की तस्वीरों को लेकर सियासत की पतंगबाजी भी शुरु हो गई। तमिलनाडु में अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं। उससे ठीक पहले कभी जलीकट्टू पर बैन लगाने वाली कांग्रेस के नेता राहुल गांधी पोंगल के मौके पर जलीकट्टू का खेल देखने के लिए मदुरै पहुंच गए। इस दौरान राहुल गांधी ने कहा कि मैंने आज जलीकट्टू देखा और अच्छा समय बिताया। आज मुझे इस बात का पता चला की तमिल लोग जलीकट्टू को क्यों पसंद करते हैं। मुझे बहुत से लोगों ने कहा था कि जलीकट्टू बैलों के लिए खतरनाक खेल है। मैंने आज इस खेल को करीब से देखा है। मैं ये जरूर कहूंगा कि जिस तरह से आज इसे खेला गया, इसमें बैलों को चोट पहुंचने की कोई संभावना ही नहीं। अब चलते हैं थोड़ा पीछे यही कोई नौ बरस पहले जब बैलों से क्रूरता वाले इस खेल पर यूपीए की सरकार ने रोक लगा दी थी। आखिर क्या है जलीकट्टू का खेल, इसका इतिहास और इससे जुड़ा विवाद। इस खेल को सुप्रीम कोर्ट चाह कर भी क्यों बंद नहीं  करा सका। इन तमाम पहलुओं का एनआरआई स्कैन करते हैं।

क्या है जल्लीकट्टू

जलीकट्टू तमिलनाडू का परंपरागत खेल है। इसका इतिहास 400 साल पुराना बताया जाता है। तमिलनाडु में मकर संक्रांति के पर्व को पोंगल के नाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर जलीकट्टू के अलावा बैल दौड़ का भी कई जगहों पर आयोजन किया जाता है। जलीकट्टू तमिल शब्द सल्ली और कट्टू से मिलकर बना है। जिसका मतलब होता है सोना और चांदी के सिक्के। ये सिक्के सांड की सिंग पर बंधे होते हैं। बाद में सल्ली की जगह जल्ली शब्द ने ले ली। 

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कब हुई शुरुआत 

जलीकट्टू की परंपरा सौकड़ों वर्ष पुरानी है। प्राचीन काल में महिलाएं अपने पति को चुनने के लिए जलीकट्टू खेल का सहारा लेती थीं। जलीकट्टू खेल का आयोजन स्वयंवर की तरह होता था। जो कोई भी योद्धा बैलों को काबू करने में कामयाब होता था महिलाएं उन्हें अपने वर के रुप में चुनती थी। बैल को काबू में रखने वाले को सिंकदर की उपाधी दी जाती थी।  

कैसे खेला जाता है

जलीकट्टू सांडों को काबू में करने का खेल है। विशेष तरीके से प्रशिक्षित सांडों को एक बंद स्थान से छोड़ा जाता है। बाहर खेलने वालों की एक फौज खड़ी रहती है और बैरिकेटिंग के बाहर भारी तादाद में दर्शक इसका आनंद उठाने के लिए खड़े रहते हैं। जैसे ही सांड को छोड़ा जाता है, सारे के सारे भागते हुए बाहर निकलते हैं और लोग उसे पकड़ने के लिए टूट पड़ते हैं। जिसके बाद सांड की सींगों में बंधे सिक्के को निकालने के प्रयास में लोग लग जाते हैं। यही होता है असली काम क्योंकि बिगड़ैल और गुस्सैल सांड को काबू में करना कहां होता है इतना आसान। इसी कोशिश में कई लोग चोटिल भी हो जाते हैं और कई लोगों को तो जान से भी हाथ धोना पड़ता है। जो भी विजयी होते हैं उनको ईनाम मिलता है। 

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साडों को किया जाता है प्रशिक्षित

जलीकट्टू के खेल में शामिल होने वाले सांडों की एक अलग प्रजाति होती है। इन्हें पूरे साल खूब खिला-पिलाकर मजबूत बनाया जाता है। त्यौहार के नजदीक आने पर इन्हें विशेष तरह से प्रशिक्षित भी किया जाता है। इसे तमिल में मान कुत्थाल कहते हैं। इसमें सांड अपनी सींग से जमीन खोदते हैं। प्रशिक्षण पाए सांडों का मेडिकल टेस्ट होता है और फिर पंजीकरण। 

जलीकट्टू के तीन प्रारूप

वदी मनुवीरत्तु: इस प्रारूप को खेल का सबसे खतरनाक प्रारूप कहा जाता है। इसमें सांड को छोड़े जाने के तुरंत बाद उसकी पीठ पर सवारी करनी होती है। वही मनुवीरत्तु के दौरान कई बार लोग गंभीर रूप से घायल भी हो जाते हैं और कई लोग की तो मौत तक हो जाती है। 

वायली विरत्तु: जलीकट्टू के इस प्रारूप में सांड को एक खुले इलाके में छोड़ दिया जाता है। यहां जो भी सांड के करीब आता है, सांड द्वारा उस पर आक्रमण कर दिया जाता है। फिर इंसान और जानवर के बीच की जंग देखने को मिलती है। 

वदम मंजुबीरत्तु: जलीकट्टू का ये प्रारूप सबसे सुरक्षित माना जाता है, इसमें जोखिम बेहद कम होता है। वदम मंजुबीरत्तु में सांड को 50 फीट लंबी रस्सी से बांधा जाता है। जहां 7 से लेकर 9 लोगों का समूह सांड को पराजित करने में लग जाता है। लेकिन इसकी समय सीमा 30 मिनट की ही रहती है। जिस दौरान सांड को पराजित करना होता है। 

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विवाद की वजह?

आंकड़ों के अनुसार 2010 से 2014 के बीच जलीकट्टू खेलते हुए 17 लोगों की जान चली गई और एक हजार से अधिक लोग घायल हुए। पिछले 20 सालों में जलीकट्टू की वजह से मरने वालों की संख्या 200 से भी ज्यादा थी।

जलीकट्टू पर अपने-अपने तर्क

समर्थक

  • तमिलनाडु की संस्कृति और आस्था से जुड़ा
  • सांड को मारा नहीं जाता, हथियार का इस्तेमाल भी नहीं
  • खेल खत्म होने के बाद सांड वापस चले जाते हैं
  • त्य़ौहार के अलावा सांडों की पूरे साल देखभाल होती है

विरोधी

  • 2010 - 2014 के बीच जलीकट्टू खेलत हुए 17 लोग मारे गए 
  • सांड को डराना और घायल करना भी उत्पीड़न है
  • शराब पिलाकर, आंखों में मिर्च डालकर सांडों को भरकाते हैं
  • त्यौहार में प्रताड़ित करना कहीं से जायज नहीं

साल 2011 में केंद्र की यूपीए सरकार ने जलीकट्टू पर बैन लगा दिया। आस्था और परंपरा का हवाला देकर तमिलनाडु के आम लोग देश की सबसे बड़ी अदालत के खिलाफ खड़े हो गए। जलीकट्टू को वहां जनता, नेता, तमाम सितारें, खिलाड़ी सब के सब ने तमिलनाडु की अस्मिता का मुद्दा बता दिया। 

जलीकट्टू की कानूनी जंग

  • पशु अधिकार संगठनों ने 2004 से विरोध प्रदर्शन शुरु किए।
  • एनिमल वेलफेयर बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में बैन के लिए याचिका दी थी
  • 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को दिशा-निर्देश जारी किए
  • 2011 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी की
  • अधिसूचना के तहत खेल प्रदर्शन में बैलों का इस्तेमाल प्रतिबंधित हुआ
  • 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जलीकट्टू को प्रतिबंधित कर दिया
  • 8 जनवरी 2016 को केंद्र सरकार ने अधिसूचना के जरिये बैन हटाया
  • 14 जनवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने बैन जारी रहने का आदेश दिया
  • 8 जनवरी 2017 से चेन्नई में बैन के खिलाफ प्रदर्शन शुरु हुए
  • 19 जनवरी 2017 को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री से मिले
  • तमिलनाडु के सीएम ने स्पेशल ऑर्डर/अध्यादेश लाने की मांग की
  • कानून मंत्रालय ने जलीकट्टू आयोजित करने की अनुमति देने वाले तमिलनाडु के अध्यादेश मसौदे को मंजूरी दी

बहरहाल, वक्त के साथ जलीकट्टू का खेल भी बदला और इसके तरीके भी। वहीं इसको लेकर राजनीति भी खूब हुई। - अभिनय आकाश

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