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कहानी सुखोई डील बचाए जाने की, जब अटल ने सुरक्षा जरूरतों को चुनाव से ऊपर रखा
- अभिनय आकाश
- जनवरी 11, 2021 17:17
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इंडियन एक्सप्रेस ने एक खबर चलाई कि सुखोई लड़ाकू विमान का समझौता साइन होने से पहले लगभग 35 करोड़ डाॅलर रूसी सरकार को दिए गए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में इस बात की आशंका जताई गई कि पैसा एक तरह से घूस के रूप में सत्ताधारी पार्टी को वापस मिल गया क्योंकि उन्हें चुनावी मैदान में जाना था।
कंकरियाँ जिनकी सेज सुघर, छाया देता केवल अम्बर, विपदाएँ दूध पिलाती हैं, लोरी आँधियाँ सुनाती हैं। जो लाक्षा-गृह में जलते हैं वे ही शूरमा निकलते हैं। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की अमर रचना रश्मिरथी की यह पंत्तियां महाभारत के परिपेक्ष्य में थी। जिसके छंद आज भी प्रासंगिक हैं। महाभारत के बार में यह कहा जाता है कि ये कहानी हर दौर की कहानी है। कमोबेश वही कहानी इस दौर में भी कई बार दोहराई गई। सत्ता के लिए नैतिकता के मूल्य जानबूझकर तोड़े गए, भाषा की मर्यादा भी टूटती रही। महाभारत क्या है? सत्ता के लिए निरंतर टूटती हुई मर्यादा पर ताना गया युद्ध का एक मचान। वैद्य-अवैद्य का युद्ध नैतिक और अनैतिक का युद्ध, विश्वास और अविश्वास का युद्ध। महाभारत के युद्ध के वक्त तमाम तरह के कायदें तय हुए थे जैसे सूर्यास्त के बाद कोई शस्त्र नहीं उठाऐगा, स्त्रियों, बच्चों और निहत्थों पर कोई वार नहीं करेगा। महाभारत तो परंपराओं की कहानी है लेकिन हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी परंपरा लोकतंत्र में भी कई ऐसी कहानियां हैं जिसने समय-समय पर ये साबित किया है कि राजनीति में भी कई राजनेता ऐसे भी होते हैं जिसने सियासत की काली कोठरी में पांच दशक बिताने के बाद भी अपने दामन पर कभी भी एक दाग तक नहीं लगने दिय। इसके साथ ही जिसने राजनीति को एक नए सिरे से रंगा, लिखा, समझा और देशहित के लिए चुनावी मुद्दों को तिलांजलि देना सहजता से स्वीकार भी किया।
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यह 1996 की बात है गर्मियों का महीना चल रहा था। केंद्र की सत्ता पर काबिज नरसिम्हा राव की सरकार अपने अंतिम वर्ष से गुजर रही थी। देश में आम चुनाव होने थे और राजनीतिक दलों का चुनाव प्रचार अभियान अपने चरम पर था। इंडियन एक्सप्रेस ने एक खबर चलाई कि सुखोई लड़ाकू विमान का समझौता साइन होने से पहले लगभग 35 करोड़ डाॅलर रूसी सरकार को दिए गए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में इस बात की आशंका जताई गई कि पैसा एक तरह से घूस के रूप में सत्ताधारी पार्टी को वापस मिल गया क्योंकि उन्हें चुनावी मैदान में जाना था। इस खबर के सामने आते ही भारतीय जनता पार्टी ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया। लेकिन तभी भाजपा डील को लेकर किए जा रहे विरोध से एकाएक पीछे हट गई। पूर्व आईएएस अधिकारी शक्ति सिन्हा द्वारा लिखी पुस्तक ''वाजपेयी- द इयर्स दैट चेंजेड इंडिया'' के अनुसार अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा इस मुद्दे को नहीं उठाने का फैसला किया गया। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित इस पुस्तक के कुछ अंश के मुताबित वाजपेयी को लगा कि इस मुद्दे को उठाने से भारत की सुरक्षा जरूरतों से समझौता किया जाएगा। नरसिम्हा राव का मानना था कि उन्होंने विवादास्पद लेकिन सही निर्णय लिया। देश में आम चुनाव हुए और कांग्रेस चुनाव हार गई। लेकिन बाद में बनी संयुक्त मोर्चा सरकार के रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने ये सौदा पूरा कर लिया।
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अब आते हैं इस डिफेंस डील वाली कहानी के विस्तार पर। इंडियन एक्सप्रेस में खबर प्रकाशित होने के बाद ये थोड़ी देर के लिए ही सही पर चर्चा में रही कि नरसिम्हा राव सरकार के अंतिम दिनों में जल्दबाजी में डील फाइनल हुई। इसके साथ ही सरकार ने कोई अंतिम कीमत तय किए बिना एडवांस के रूप में 35 करोड़ डाॅलर की राशि का भुगतान किया। डील साइन करने के पीछे हड़बड़ाहट की भी बात उठी। लेकिन बाद में ऐसी भी बातें सामने आई कि रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने खुद के देश में चुनाव नजदीक होने और सुखोई फैक्टरी उनके क्षेत्र में आने की बात राव को बताई। इसके साथ ही हालत खराब होने से स्टाफ को वेतन नहीं दिया जा रहा है। ऐसी स्थिति में भारत के एडवांस पेमंट से उन्हें वेतन दिया जा सकेगा और ये बात जादू की तरह चुनाव में असर भी करेगा।
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मसला जो भी रहा हो लेकिन अक्सर जैसा कि कई रक्षा समझौतों के साथ होता रहा है, गंभीर आरोप लगाए जाते रहे, बड़ा चुनावी मुद्दा भी बना और कई सरकारें भी गंवानी पड़ी। लेकिन भाजपा ने इस मामले में चुप्पी साध ली। शक्ति सिन्हा की किताब के अनुसार वाजपेयी को इस बात का भय था कि यदि यह अच्छा एयरक्राफ्ट है तो घोटाले की अप्रमाणित बातों से डील खराब हो सकती है। जिसके बाद 1996 के लोकसभा चुनाव अभियान में वाजपेयी ने इस मुद्दे को नहीं उठाने का फैसला लिया। सिन्हा लिखते हैं कि क्योंकि वाजपेयी को लगा कि भारत की सुरक्षा जरूरतों से समझौता नहीं किया जा सकता। वर्तमान समय में इस तरह की घटनाएं रक्षा सौदों पर राजनीतिक लड़ाई के विपरीत एक प्रस्ताव पेश करती है। केंद्र में वाजपेयी की सरकार बनी, लेकिन वो 13 दिन ही चल पाई।
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मुलायम सिंह यादव और वाजपेयी की मुलाकात
नरसिम्हा राव की शब्दों में कहे तो 'विवादास्पद लेकिन सही निर्णय' के बाद कांग्रेस चुनाव हार गई। फिर ये सौदा सपा सदस्य और संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने पूरा किया। आज के दौर में जब संसद परिसर राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप और सियासी अखाड़ों का केंद्र बना रहता है। ऐसे दौर में किसी अच्छे काम की सराहना तो दूर की बात है उसको लेकर मंशा तक पर गंभीर सवाल उठाए जाते हैं। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में मुलायम सिंह की सराहना की और उनकी प्रशंसा के कुछ शब्द तो भाजपा के कई सदस्यों को आश्चर्यतकित कर गए थे। बाद में मुलायम सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी और जसवंत सिंह को साउथ ब्लाॅक आमंत्रित किया और सैन्य अनुबंधों की परिस्थितियों को समझाने हुए ब्रिफिंग की व्यवस्था रखी। वाजपेयी प्रमुख सुरक्षा मुद्दों पर घरेलू आम सहमति का संकेत देना चाहते थे, विशेष रूप से रूस के संबंध जो अंतरराष्ट्रीय मंचों में भारत प्रबल समर्थक था। वाजपेयी ने रूसी सरकार द्वारा स्वायत्त गारंटी का प्रावधान जिसके अंतर्गत ऐसे प्रावधान रखने की बात सुझाई। इसके लिए किसी भी प्रकार की रिश्वत नहीं दी गई हैं और यदि ऐसा कुछ भविष्य में सामने आता है तो वे भारत सरकार को इसकी भरपाई करेंगे। राजनीति के कट्टर प्रतिद्वंदी मुलायम सिंह और भाजपा ने बंद दरवाजों के पीछे एक इतने बड़े संवेदनशील मुद्दे के दस्तावेज साझा किए, ये अपने आप में रजनाीति में किसी मिसाल सरीखा है। - अभिनय आकाश
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- अभिनय आकाश
- जनवरी 19, 2021 18:10
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एलेक्सी नवालनी को जर्मनी से मास्को आने पर हिरासत में ले लिया गया है और फिर अदालत ने उन्हें 30 दिन के लिए जेल भेज दिया है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपियन काउंसिल और ब्रिटेन सहित पश्चिम देशों ने इस मामले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
2011 का साल और दिल्ली के रामलीला मैदान का वो शोर। जब गांधी की टोपी पहले अन्ना हजारे रघुपति राघव राजा राम के बोल के साथ अनशन पर बैठे थे। पूरा देश उस वक्त मैं भी अन्ना तू भी अन्ना अब तो सारा देश है अन्ना के नारे के साथ अन्नामय हो गया था। लेकिन ठीक उसी वक्त दिल्ली से 4195 किलोमीटर दूर रूस में एक संगठन की नींव रखी जा रही थी। नाम- एंटी करप्शन फाउंडेशन। मकसद- रूस की ब्लादिमीर पुतिन सरकार के कथित भ्रष्टाचार को उजागर करना। आज की कहानी है एक ऐसे नेता कि जिसके पोस्टर 2017 में पुतिन विरोधी आंदोलन में दिखे। उसी राजनेता को दो बार जहर देकर मारने की कोशिश की गई और आरोप रूस के राष्ट्रपति पर लगे। वो नेता जिसके इलाज की पेशकश फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों ने की। वो नेता जिसके बारे में अमेरिकी अखबार के एक बार लिखा कि The Man vladimir Putin fears most यानी वो आदमी जिससे ब्लादिमीर पुतिन को सबसे ज्यादा डर लगता है। ये कहानी है पुतिन के खिलाफ प्रदर्शन के लिए 3 बार जेल जाने वाले और चुनाव लड़ने की कोशिश में ईसी द्वारा अयोग्य करार दिए जाने वाले पुतिन विरोधी रूस के सबसे बड़े नेता एलेक्सी नवालनी की।
सबसे पहले बात वर्तमान की करते हैं। एलेक्सी नवालनी को जर्मनी से मास्को आने पर हिरासत में ले लिया गया है और फिर अदालत ने उन्हें 30 दिन के लिए जेल भेज दिया है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका. यूरोपियन काउंसिल और ब्रिटेन सहित पश्चिम देशों ने इस मामले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। मास्को कोर्ट द्वारा नवलनी को निलंबित जेल की शर्तों के उल्लंघन का दोषी मानते हुए 15 फरवरी तक जेल में रखने का आदेश दिया। नवालनी को गबन के आरोप में यह सजा सुनाई गई थी और उनके खिलाफ तीन और आपराधिक मामले दर्ज हैं।
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रूस के कई दशकों से राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के जन्मदिन वाले दिन यानी सात अक्टूबर 2017 की बात है। रूस की राजधानी मास्को के पुश्किन स्क्वायर पर सैकड़ों लड़के-लड़कियां इकट्ठे हुए। पुतिन के विरोध वाली तख्तियां हाथों में लिए ये लोग जिसमें लिखा था पुतिन इज ए थीफ, पुतिन को राष्ट्रपति पद से हटाओ। पुतिन और उनकी सरकार के खिलाफ 20 से ज्यादा रूस के शहरों में हो रहा था। उन प्रदर्शनकारियों के पास एक पोस्टर में युवा चेहरे वाला पोस्टर भी लहराया जा रहा था और उसकी जिंदाबाद के नारे भी लगाया जा रहा था।
पेश से वकील एलेक्सी नवालनी का रूस की राजनीति में उभार 2008 से दिखता है । जब वो रूस सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बोलना शुरू करते हैं। राष्ट्रवादी नेता के तौर पर उनकी छवि बन जाती है। सरकारी कांट्रैक्ट में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाते हैं। ब्लाॅगिंग और यूट्यूब के जरिये इन तमाम मुद्दों को उठाते हुए रूस में लोकप्रिय हो जाते हैं। एलेक्सी ने एंटी करप्शन फाउंडेशन नाम का संगठन बनाया। और इसके जरिये भ्रष्टाचार पर पुतिन सरकार को सीधे ललकारने लगे। आलम ये हुआ कि साल 2012 में अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपने खबर की शीर्षक में एलेक्सी का परिचय देते हुए एक खबर प्रकाशित की The Man vladimir Putin fears most यानी वो आदमी जिससे ब्लादिमीर पुतिन को सबसे ज्यादा डर लगता है। इस लेख के मुताबिक सरकार के समर्थक टीवी और अखबार एलेक्सी को सीआईए का एजेंट बताते हैं। हिटलर से उसकी तुलना करते हैं। रूस के सरकारी चैनलों पर तो एलेक्सी को दिखाने पर भी पाबंदी है। 2013 में उन्होंने मास्को में मेयर का चुनाव लड़ने का ऐलान किया। वो लड़े लेकिन पुतिन के उम्मीदवार से हार गए। एलेक्सी ने चुनाव में धांधली का इल्जाम लगाया। उसके बाद उनपर कई केस लगाए। एक में एलेक्सी को पांच साल की सजा हुई और दूसरे में साढ़े तीन साल की। कुछ साल जेल में रहने के बाद एलेक्सी नजरबंद कर दिए गए। 2016 में बाहर आए तो फिर प्रदर्शन जारी कर दिया। 2017 में उन्हें पुतिन के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए 3 बार जेल हुई। साल 2017 में ही उन पर हमला हुआ और इस हमले की वजह से एलेक्सी की दाहिनी आंख केमिकल बर्न से प्रभावित हुई। 2018 में रूस के राष्ट्रपति के चुनाव के वक्त एलेक्सी के पुतिन को तगड़ी चुनौती देने के कयास लगाए जा रहे थे। तभी चुनाव आयोग ने एलेक्सी को अयोग्य घोषित कर दिया गय। लेकिन जुलाई 2019 में रूस में विरोध प्रदर्शन का आह्वान करने की वजह से उन्हें 30 दिन की जेल हुई। जेल में ही उनकी तबीयत बिगड़ी और आरोप लगे कि एलेक्सी को जहर देने की कोशिश हुई है। 20 अगस्त 2020 को रूस के साइबेरिया से एक विमान मास्को के लिए उड़ान भरता है।
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विमान के उड़ान भरने के दौरान ही उसमें बैठे पैसेंजर एलेक्सी नवालनी बीमार हो गए। मामला गंभीर हुआ तो प्लेन की इमरजेंसी लैंडिग करनी पड़ी और नवालनी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। पता चला कि नवालनी को जहर दिया गया। जिसके बाद शक जताया गया कि एयरपोर्ट पर जिस कैफे में एलेक्सी नवालनी ने चाय पी थी उसमें जहर मिला थ। एलेक्सी की प्रेस सेक्रेटरी ने ट्वीट करके बताया कि एलेक्सी को जहर दिया गया है। लेकिन डक्टर कहते हैं कि एलेक्सी को जहर नहीं दिया गया है। जर्मनी ने तो अपना एक एयर एंबुलेंस भी रूस के साइबेरिया में भेज दिया। जिसके बाद उन्हें जर्मनी लाया गया। जहां वे कोमा में रहे। वहीं जर्मनी ने रूस पर आरोप लगाया कि रूस ने एलेक्सी को नोविचोक नाम का जहर दिया।
वैसे रूस की राजनीति में विरोधियों को जहर देकर मारने जैसे कई तथ्य और रिपोर्ट समय-समय पर सामने आते रहते हैं। विकीपीडिया में भी List of soviet and Russian Assassinations लिखने पर उन नामों का उल्लेख मिलता है जिन्हें कथित तौर पर सत्ता पार्टी द्वारा जहर देकर मारने की कोशिश हुई। साल 2006 में अलेक्जेंडर लिटनिवेनको को रेडियो एक्टिव त्तव पोलोनियम 210 देकर मारने जैसी खबरें स्काई न्यूज की एक रिपोर्ट मं प्रकाशित की गई। वहीं 1978 में जाॅर्जी मार्कोव नाम के लेखक की मौत हो गई, जिसके सालों बाद ये खुलाया हुआ कि रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी ने जहर देकर जाॅर्जी की हत्या करवाई थी।- अभिनय आकाश
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- अभिनय आकाश
- जनवरी 18, 2021 19:04
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व्हाट्सएप की नई पाॅलिसी आने के बाद लोग खफा चल रहे थे और दूसरे प्लेफार्म पर जाना भी शुरू कर दिया। निगेटिव इम्पैक्ट देखकर व्हाट्सएप डैमेज कंट्रोल में जुट गया। ट्वीटर पर पोस्ट डालकर और अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन देकर व्हाट्सएप लोगों को समझा रहा है कि आपकी चैट अभी भी सुरक्षित हैं।
पहले निबंध की शुरूआत एक लाइन के जरिये हुआ करती थी ''भारत एक कृषि प्रधान देश है''। मोबाइल क्रांति के बाद से स्थिति थोड़ी बदल सी गई। अब भारत व्हाट्सएप प्रधान देश भी बन चुका है। If you are not paying for it, you become the product ये अंग्रेजी की एक कहावत है। जिसका मतलब है कि अगर आप कोई प्रोडक्ट मुफ्त में ले रहे है तो इसका मतलब है कि आप खुद ही प्रोडक्ट हैं। व्हाट्सएप पर आए एक नोटिफिकेशन से ये बात जरूर साबित हो गई है। पिछले कुछ दिनों में दुनियाभर के करीब दो सौ करोड़ लोगों को व्हाट्सएप पर एक नोटिफिकेशन मिला।
इस नोटिफिकेशन में कहा गया कि 8 फरवरी 2021 तक आपको जो शर्तें लिखीं हैं उसे स्वीकार करना होगा। अगर आप ये शर्तें स्वीकार नहीं करते तो आपका व्हाट्सएप एकाउंट बंद कर दिया जाएगा।
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नोटिफेकेशन की शर्तें क्या थी- व्हाट्सएप आपके डेटा को फेसबुक के साथ शेयर करेगा। जिसके लिया वो ग्रीन बटन के जरिये आपसे एग्री यानी इजाजत की मांग कर रहा है। फेसबुक ही व्हाट्सएप की पैरेंट कंपनी है। डेटा का मतलब है आपका फोन नंबर, आपके कांन्ट्रैक्ट्स और आपको व्हाट्सएप स्टेटस जैसी तमाम जानकारियां। ये डेटा व्हाट्सएप लेकर फेसबुक के साथ शेयर करना चाह रहा है। मतलब व्हाट्सएप आपकी कुछ चीजों की निगरानी करेगा और उसे थर्ड पार्टी के साथ शेयर भी करेगा। व्हाट्सएप ये गौर करगेा कि आप कितनी देर आनलाइन रहते हैं, आनलाइन रहकर क्या करते हैं। कौन सा फोन इस्तेमाल करते हैं और किस तरह के कंटेट व्हाट्सएप पर पसंद करते हैं। क्या सबसे अधिक देखते हैं। सबसे अधिक जो कंटेट आप देखते होंगे वह बेसिक डेटा व्हाट्सएप थर्ड पार्टी यानी फेसबुक, इंस्टाग्राम को शेयर करेगा और फिर उसी से मिलता-जुलता कंटेट आपको दिखाया जाएगा।
दरअसल, व्हाट्सएप पर भेजे गए मैसेज इंड टू इंड इंक्रिप्शन की मदद से स्कियोर होते हैं। मान लीजिए कि दो लोग हैं जिन्होंने एक दूसरे को भेजा हो। जैसे ही आप मैसेज भेजते हैं एक प्रोग्राम आपके मैसेज को एक जटिल कोड में बदल देता है। जिसे मैसेज भेजा गया है उसके फोन में वो कोड जाता है दोबारा मैसेज में बदल जाता है और जिसने वो मैसेज पढ़ा उसे समझ में आ जाता है कि सामने वाले ने मैसेज क्या भेजा। इस दौरान कोई भी मैसेज कहीं भी स्टोर नहीं होता।
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व्हाट्सएप की नई पाॅलिसी आने के बाद लोग खफा चल रहे थे और दूसरे प्लेफार्म पर जाना भी शुरू कर दिया। निगेटिव इम्पैक्ट देखकर व्हाट्सएप डैमेज कंट्रोल में जुट गया। ट्वीटर पर पोस्ट डालकर और अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन देकर व्हाट्सएप लोगों को समझा रहा है कि आपकी चैट अभी भी सुरक्षित हैं।
व्हाट्सएप के विज्ञापन के अनुसार उनकी पाॅलिसी में बदलाव आपकी निजी चैट को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करते हैं। ये अपडेट सिर्फ बिजनेस अकाउंट से बात करने को लेकर है और वो भी वैकल्पिक है। आप चाहे तो व्हाट्सएप पर किसी भी बिजनेस से बात न करे और अगर ऐसा करते हैं तो व्हाट्सएप इस बातचीत को फेसबुक से साझा कर सकता है। फिर इसे आपकी जानकारी से जोड़कर आपके हिसाब से विज्ञापन दिखा सकता है। व्हाट्सएप का कहना है कि बाकी सारी चीजें पहले जैसी हैं। व्हाट्सएप ने ट्वीटर और विज्ञापन के जरिये ये बाते भी कहीं। व्हाट्सएप और फेसबुक न तो आपके प्राइवेट मैसेज देख सकता है न ही आपकी काॅल सुन सकते हैं। व्हाट्सएप इस बात रिकाॅर्ड नहीं रखता कि आप किसी चैट या काॅल कर रहे हैं। आप व्हाट्सएप पर जो लोकेशन दूसरे के साथ साझा करते हैं उसे न तो व्हाट्सएप देख सकता है और न ही फेसबुक। व्हाट्सएप आपको फोन में मौजूद कांट्रैक्ट्स को फेसबुक के साथ शेयर नहीं करता है। व्हाट्सएप पर बने हुए ग्रुप प्राइवेट ही रहेंगे।
अब आते हैं प्राइवेट पाॅलिसी पर। व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम तीनों का प्रभुत्व मार्क जुकरबर्ग के पास है। वहीं उसके प्रतियोगी कहे या प्रतिद्वंद्वी गूगल के ही लोकेशन,क्लाउड, ड्राइव, जीमेल, यूट्यूब, गूगल एडसेंस हैं। गूगल को टक्कर देने या उसे पछाड़ने के लिए फेसबुक के द्वारा इस तरह की कवायदों को किया जा रहा है। साल 2009 में जब व्हाट्सएप मार्केट में आई तो उस वक्त किसी को भी टेक्सट मैसेज भेजने के लिए कम से कम एक रुपये की शुल्क देनी होती थी। उस वक्त फ्री मैसेज की सुविधा के साथ व्हाट्सएप आया। जिसकी मैसेज और काॅल को कोई रिकार्ड भी नहीं कर सकता तो प्राइवेसी के मामले में भी सही था। साल 2014 में फेसबुक ने 9 बिलियन डाॅलर में व्हाट्सएप को खरीद लिया। लेकिन जिस प्लानिंग के तहत व्हाट्सएप को फेसबुक ने खरीदा था वो मनचाहा रिजल्ट नहीं मिल पा रहा था। जिसके बाद व्हाट्सएप और फेसबुक का ये पाॅलिसी वाला चक्कर सामने आया।
यूट्यूब में विज्ञापन के जरिये जो भी पैसा आता है वो गूगल एडसेंस के जरिये। फेसबुक की भी चाहत इसी तरह के तरीके को अपनाने की है। मतलब विज्ञापन फेसबुक पर चलेगा लेकिन यूजर को व्हाट्सएप के जरिये लाया जाएगा। यूट्यूब पर कैटेगराइजेशन ज्य़ादा बेहतर है। जिस पर फेसबुक के रिसर्च किया। यूट्यूब ने टाइटल, डिस्क्रिप्शन, टैग, थंबनेल आदि के माध्यम से पहले ही वीडियो से संबंधित सारी जानकारी पा ली। फिर ये डेटा के आधार पर गूगल एड सेंस कौन सा विज्ञापन दिखाना है तय करती है। ऐसी ही कुछ सोच फेसबुक की भी है। आप जो भी व्हाट्सएप पर कर रहे हैं वो इसकी जानकारी फेसबुक को देगा और फिर फेसबुक उसी हिसाब से विज्ञापन दिखाएगा। ताकि फेसबुक का विज्ञापन भी रिलेवेंट हो सके।
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यूजर्स के विरोध पर फैसला टला
व्हाट्सएप के पाॅलिसी अपडेट से जुड़े फैसले के बाद लोग इसका भारी विरोध देखने को मिला। जिसके बाद व्हाट्सएप ने अपनी अपडेट पाॅलिसी को मई तक पोस्टपोन करने का फैसला किया। व्हाट्सएप का कहना है कि इससे यूजर्स को पाॅलिसी को समझने, इससे जुड़े कन्फ्यूजन दूर करने और इसे स्वीकार करने का मौका मिलेगा। कंपनी की तरफ से ब्लाॅग पोस्ट में यह बात कही गई।
व्हाट्सएप की प्राइवेसी पॉलिसी पर हाईकोर्ट
व्हाट्सएप की प्राइवेट पाॅलिसी को लेकर याचिकाकर्ता द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की गई। याचिका में कहा गया कि पाॅलिसी पर सरकार को एक्शम लेना चाहिए। साथ ही याचिकाकर्ता ने इसे निजता का उल्लंघन बताया। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस पर विस्तृत सुनवाई की बात करे हुई कोई नोटिस जारी नहीं किया। इसके साथ ही हाईकोर्टने कहा कि व्हाट्सएप एक प्राइवेट एप है। अगर आपकी निजता प्रभावित हो रही है तो आप इसे डिलीट कर दें। कोर्ट ने कहा क्या आप मैप या ब्राउजर इस्तेमाल करते है? उसमें भी आपका डाटा शेयर किया जाता है।
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गूगल सर्च में व्हाट्सएप यूजर्स के नंबर
तमाम तरह के विवाद चल ही रहे थे कि व्हाट्सएप को लेकर एक और विवाद सामने आया। कहा जा रहा है कि व्हाट्सएप यूजर्स के फोन नंबर इंडेक्सिंग के जरिये गूगल सर्च पर एक्सपोज कर दिए हैं। इससे पहले एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि व्हाट्सएप ग्रुप के लिंक भी गूगल पर सर्च किए गए थे। समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार गूगल सर्च में व्हाट्सएप यूजर्स के नंबर देखे गए हैं। गौरतलब है कि व्हाट्सएप को मोबाइल के अलावा लैपटाॅप और कंप्यूटर पर भी चलाया जाता है। यूजर्स के नंबर व्हाट्सएप वेब के जरिये लीक हुए हैं। मतलब साफ है कि अगर आप व्हाट्सएप को कंप्यूटर या लैपटाॅप पर इस्तेमाल करते हैं तो आपका कान्टैक्ट पब्लिकली गूगल सर्च स्क्राॅल में आ सकता है। जिससे यूजर्स के स्पैम और साइबर अटैक जैले जोखिम हो जाते हैं।
कोरोड़ों की संख्या में भारतीय फेसबुक, व्हाट्सएप जैसी प्लेटफार्म्स का यूज करते हैं। अगर ऐसे में अगर ऐसे ही चलता रहा तो लोगों का भरोसा व्हाट्सएप से घटता दिखाई देगा। प्राइवेसी वाले मसले के बाद तो कई लोगों ने व्हाट्सएर छोड़ टेलीग्राम और सिग्नल जैसे एप्स का भी रुख किया था। बीते कुछ दिनों से जो भी हुआ उससे साफ प्रतीत होता है कि यूजर्स ने व्हाट्सएप को ये बता दिया कि आपकी मोनोपाॅली नहीं चलेगी। - अभिनय आकाश
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- अभिनय आकाश
- जनवरी 16, 2021 15:49
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सुशासन बाबू को इतने ही गुस्से में रैलियां के दौरान देखा गया। उस वक्त का तनाव समझ में आ रहा था कि डर था कि चुनाव में जीत होगी या नहीं। लेकिन अब सत्ता मिल गई। फिर नीतीश बात-बात पर इतना गुस्सा क्यों हो रहे हैं। ये सवाल बिहार से लेकर दिल्ली तक पूछा जा रहा है।
32 दांतो के बीच में जीभ कैसे रहती होगी। ये बहुत पुरानी कहावत है। जब इंसान बेबसी में काम करता है तो ऐसी कई मिसालें दी जाती है। बिहार के मुख्यमंत्री, पीएम मैटेरियल वाले मुख्यमंत्री, सुशासन बाबू के उपनाम वाले मुख्यमंत्री, बिहार में बहार हो का नारा देने वाली पार्टी के मुख्यमंत्री। नाम- नीतीश कुमार। इन दिनों पहचान एंग्री मैन के रूप में हो रही है। सुशासन बाबू को शायद ही इससे पहले इतने गुस्से में देखा गया हो। लेकिन बीते कुछ महीने से चाहे वो चुनावी रैलियों की बात हो या पत्रकारों के सवाल नीतीश बात-बात पर भड़क जाते हैं। कमियों को दूर करने की बजाए सवाल पूछने वालों को ही पार्टी विशेष का समर्थक करार दे देते हैं। डीजीपी को सबके सामने फोन पर फटकार लगाते हैं। विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव पर फूट पड़ते हैं। इस बार छोटे भाई की भूमिका में आए नीतीश के तेवर पिछले कुछ वक्त से ही बदले-बदले नजर आ रहे हैं।
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अक्सर भाषण देते हुए अपनी बात शांति से रखने वाले नीतीश कुमार की सबसे बड़ी राजनीतिक खासियत यही मानी जाती थी कि वो बेहद ही नपा-तुला बोलते थे। कड़वी से कड़वी बात भी मुस्कुराते हुए इस अंदाज में बोल जाते कि विरोधी भी यह समझ नहीं पाते कि आखिर नीतीश पर निशाना साधे तो साधे कैसे? याद कीजिए 2015 का चुनाव जब एनडीए से बाहर होकर चुनाव मैदान में उतरी जेडीयू के सामने भव्य आभा कौशल वाले नरेंद्र मोदी खड़े थे। नरेंद्र मोदी उस चुनाव में नीतीश कुमार पर हमलावर रहते। लेकिन पीएम की रैली के बाद नीतीश बेहद ही सौम्यता के साथ एक घंटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस कर तर्कों और तथ्यों के साथ उनकी कही हर बात को काटते थे। लेकिन पिछले कुछ समय से लोग एक अलग ही नीतीश कुमार को देख रहे हैं। जो बात-बात पर अपना आपा खो रहे हैं। कमियों को दूर करने की बजाये सवाल पूछने वालों पर ही सवाल उठाने लग रहे हैं। सुशासन बाबू को इतने ही गुस्से में तब देखा गया था जब वो रैलियां कर रहे थे। उस वक्त का तनाव तो समझ में आ रहा था कि डर था कि चुनाव में जीत होगी या नहीं। लेकिन अब सत्ता मिल गई। फिर आखिर क्यों नीतीश बात-बात पर इतना गुस्सा हो रहे हैं। ये सवाल बिहार से लेकर दिल्ली तक पूछा जा रहा है।
कभी उन्हें इसकी आदत नहीं रही। साल 2005 से वो मुख्यमंत्री रहें वो और जो भी फैसले किए अपनी मर्जी से अपने दम पर किया। चाहे वो सीएम पद छोड़ जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना हो या बीजेपी के लिए डिनर कैंसिल करना। लालू का साथ छोड़ बीजेपी के साथ आ जाना जो भी फैसला करते पूरे दमखम के साथ करते।
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नीतीश सुलझे हुए मुख्यमंत्री माने जाते रहे हैं और गुड गवर्नेंस के मामले में उनकी सानी नहीं रही है तभी तो एक वक्त ऐसा भी था जब प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए में नीतीश के नहीं होने के बावजूद उनके गुड गवर्नेंस की तारीफ की थी। जिस ला एंड ऑर्डर को लेकर घर के अंदर और बाहर नीतीश कुमार पर सवाल उठ रहे हैं। चाहे वो एनडीए हो या विपक्ष कानून व्यवस्था को लेकर उनपर सवाल उठ रहे हैं
बिहार में विधानसभा चुनाव हुए, नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा और जनता दल यूनाइटेड के कम सीटों पर जीत हासिल करने के बावजूद भाजपा ने मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा ठोंकने की बजाय नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही सरकार बनाई। । आज नीतीश 43 विधायकों वाली छोटी पार्टी के अगुवा हैं। उनसे ज्यादा विधायक 74 सीटों की संख्या बीजेपी के पास है। यानी कि जो बड़ा भाई हुआ करता था वो अचानक से छोटा भाई हो गया। वो झुंझलाहट है मन में। इसके साथ ही बीजेपी के विरोध के आगे विवश होकर नीतीश को 15 साल से गृह सचिव रहे आमिर सुबहानी को हटाना पड़ा।
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू सहयोगी भाजपा से छोटी पार्टी बन गई है। दूसरे, भाजपा की आंतरिक संरचना भी बदल गई है। सीएम नीतीश के साथ आदर्श और भरोसेमंद सहयोगी की भूमिका निभाने वाले सुशील मोदी को भाजपा ने राज्यसभा सदस्य बनाकर दिल्ली भेज दिया है। उनकी जगह दो उप-मुख्यमंत्री बनाकर नीतीश को दोनों तरफ से घेरने की कोशिश की गई है। हालत यह हो गई है कि अब नीतीश कुमार को भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव के साथ डील करना पड़ रहा है। राज्य में भाजपा अब बिग बॉस की भूमिका में आना चाहती है लेकिन नीतीश उसे बिग बॉस मानने को तैयार नहीं और इसलिए छोटे दल के नेता के तौर पर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से ही नीतीश लगातार अपना कद बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। जार्ज फर्नांडीज को हटाकर शरद यादव को जेडीयू का अध्यक्ष बनवा दिया था। फिर ठीक पांच साल पहले नीतीश कुमार ने जनता दल यूनाइटेड का अध्यक्ष पद शरद यादव से जबरन हासिल किया था। वहीं नीतीश कुमार कहते सुनाई पड़े की पार्टी का कामकाज किसी फुल टाइम अध्यक्ष के हाथों में होनी चाहिए। नीतीश ने इतनी आसानी से अपनी कुर्सी छोड़ पूर्व आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह को अध्यक्ष बना दिया। दरअसल, नीतीश के पास अब कोई रास्ता नहीं था कि वो पार्टी से ऐसा कोई नुमाइंदा चुने जो बीजेपी के नेताओं से बात करे। कहा तो ये भा जा रहा है कि नीतीश कुमार को भूपेंद्र यादव से बात करने के लिए इंतजार करना पड़ रहा था। नीतीश को ऐसे किसी शख्स की दरकार थी तो अधिकृत तौर पर बीजेपी से बात कर सके। नीतीश को बार-बार भूपेंद्र यादव या बीजेपी की दूसरी-तीसरी कतार के नेताओं से बात करने
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नीतीश कुमार की एक खासियत और रही है कि वो मीडिया से बहुत कम बात करते रहे हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर विधानसभा तक, पत्रकार सवालों की झड़ी लगाते नजर आते थे लेकिन नीतीश मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर निकल जाया करते थे। लेकिन इस बार तो पटना का हर पत्रकार नीतीश कुमार के रवैये से काफी हैरत में नजर आ रहा है। पत्रकार जब भी कोई सवाल लेकर नीतीश का नाम लेते हैं तो नीतीश कुमार खुद ही रुक कर जवाब देना शुरू कर देते हैं। बीच में तो कई दिन ऐसे भी गुजरे जब दिनभर में नीतीश कुमार ने 4-5 बार पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए। साफ-साफ लग रहा है कि अपनी चुप्पी त्यागकर नीतीश खूब घूम रहे हैं, मीडिया से बात कर रहे हैं और हर सवाल का जवाब दे रहे हैं।
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नीतीश कुमार खुद को मजबूत करने की भी कवायद में लगे हैं। कभी वो मांझी को साथ लाते हैं। फिर रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा से नजदीकियां बढ़ाते हैं। यहां तक की रालोसपा और हम के जेडीयू में विलय की खबरें भी सामने आती है। कुल मिलाकर कहा जाए कि नीतीश बहुत दवाब में हैं। बिहार के नतीजों से नाखुश हैं। अपनों और विरोधियों के हमले से चितिंत हैं। लेकिन नीतीश को अपने सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के महान नेता, भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पंत्तियों ''क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही'' को पढ़ते हुए अपने रास्ते में आगे बढ़ना होगा। नीतीश सोलह साल से मुख्यमंत्री हैं तो चाहे वो कानून व्यवस्था की बात हो या फिर बढ़ते अपराध की, सवाल तो उन्हीं से पूछे जाएंगे। इसमें झुंझलाना और बिफरना सेहत के लिए भी खराब है और कुर्सी के लिए भी। - अभिनय आकाश
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