By नीरज कुमार दुबे | Jul 29, 2025
जम्मू-कश्मीर की राजनीति में पाकिस्तान के साथ बातचीत का मुद्दा लंबे समय से संवेदनशील रहा है। यह मुद्दा तब फिर से चर्चा में आ गया जब पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पाकिस्तान से बातचीत की वकालत की। इसके जवाब में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि पाकिस्तान से बातचीत का समर्थन करने वाले लोग ही कमजोर पड़ रहे हैं। इस बयानबाज़ी ने न केवल कश्मीर के भीतर राजनीतिक ध्रुवीकरण को सामने ला दिया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद क्षेत्रीय दल अपनी-अपनी सियासी रणनीति को लेकर किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
देखा जाये तो महबूबा मुफ्ती का नाम आते ही अक्सर पाकिस्तान से बातचीत की वकालत और उसके प्रति "नरम रुख" पर चर्चा शुरू हो जाती है। सवाल यह है कि आखिर महबूबा मुफ्ती बार-बार पाकिस्तान के साथ संवाद का समर्थन क्यों करती हैं? इसके पीछे कई राजनीतिक और सामाजिक कारण छिपे हैं। महबूबा मुफ्ती खुद को कश्मीरियों की आवाज़ मानती हैं। उनका मानना है कि बातचीत ही वह माध्यम है, जिससे कश्मीर में शांति बहाल की जा सकती है। यह विचारधारा पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) के जन्म से जुड़ी है, जिसने 2002 से ही "हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच पुल" बनने का नारा दिया था। इसके अलावा, महबूबा मुफ्ती का राजनीतिक आधार मुख्य रूप से दक्षिण कश्मीर में है, जहां पाकिस्तान के प्रति कथित भावनात्मक झुकाव रखने वाला तबका भी मौजूद है। पाकिस्तान से बातचीत की वकालत करके वह इस वर्ग में अपनी स्वीकार्यता बनाए रखना चाहती हैं। इसके अलावा, अनुच्छेद 370 हटने के बाद पीडीपी का जनाधार बुरी तरह कमजोर हुआ है। ऐसे में यह बयानबाज़ी उनके लिए राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहने का साधन भी है। महबूबा मुफ्ती अक्सर पाकिस्तान का मुद्दा उठाकर केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल खड़ा करती हैं। उनका कहना होता है कि बातचीत के बिना आतंकवाद पर स्थायी रोक नहीं लग सकती। इस तरह वे भाजपा सरकार की "कठोर" नीति को चुनौती देती हैं और खुद को "शांति के पक्षधर" के रूप में पेश करती हैं।
महबूबा मुफ्ती का रुख राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से विवादित लगता है, लेकिन यह उनकी राजनीतिक रणनीति है और कश्मीर की एक हिस्से की जनभावनाओं को साधने का प्रयास भी। उनका यह रुख उन्हें भाजपा और केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में खड़ा करता है। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यह बयानबाज़ी भाजपा को कश्मीर में और अधिक "राष्ट्रवादी" दिखाने में मदद करती है।
इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए महबूबा मुफ्ती ने पीडीपी के 26वें स्थापना दिवस के अवसर पर शेर-ए-कश्मीर पार्क में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग सम्मान के साथ शांति चाहते हैं और जब पाकिस्तान की बात आएगी, तो वे देश की विदेश नीति में ‘‘हस्तक्षेप’’ करेंगे। उन्होंने केंद्र से अपील की कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों की बात को ‘अपने दिल से’ देखे और उनकी सुने तथा जब तक वह ऐसा नहीं करेगा, भारत-पाकिस्तान मुद्दा हल नहीं होगा। महबूबा मुफ्ती ने सोमवार को कहा कि अगर भारत को आगे बढ़ना है और समृद्ध होना है, तो उसे युद्ध की बात करना बंद कर देना चाहिए तथा वार्ता एवं सुलह का रास्ता अपनाना चाहिए।
उन्होंने केंद्र से अपील की कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों की बात को ‘अपने दिल से’ देखे और उनकी सुने तथा जब तक वह ऐसा नहीं करेगा, भारत-पाकिस्तान मुद्दा हल नहीं होगा। पीडीपी प्रमुख ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए, ‘‘मैं भारत सरकार से कहना चाहती हूं कि जम्मू-कश्मीर के लोग आपके दुश्मन नहीं हैं। हम सम्मान के साथ शांति चाहते हैं, हम दोस्ती के जरिये शांति चाहते हैं, न कि जंग।’’ मुफ्ती ने सवाल किया, ‘‘आपने दुनिया भर में प्रतिनिधिमंडल भेजकर इस बारे में बात की कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान क्या किया गया, पहलगाम में क्या हुआ और ‘कश्मीर’ में क्या हो रहा है। यह कश्मीर ही है, जिसने संघर्ष के दौरान कठिनाइयां झेलीं। इसलिए अगर कश्मीरी पाकिस्तान से बातचीत की मांग नहीं करेगा, तो और कौन करेगा?’’ उन्होंने केंद्र सरकार से सुलह का रास्ता अपनाने की अपील की।
मुफ्ती ने कहा, ‘‘अगर हमारे देश को आगे बढ़ना है, तो युद्ध की बात करना बंद कीजिए और (पाकिस्तान के साथ) वार्ता की बात कीजिए। अगर आप दुनिया में अपनी ताकत साबित करना चाहते हैं और चीन से आगे निकलना चाहते हैं, तो बातचीत शुरू कीजिए और सुलह का रास्ता अपनाइए।’’ उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है। पीडीपी प्रमुख ने कहा कि उन्हें यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहें, तो ‘‘वह कश्मीर मुद्दे को सुलझा सकते हैं, क्योंकि उन्हें 120 करोड़ लोगों ने चुना है।’’ मुफ्ती कहा, ‘‘उनके (मोदी) पास ताकत है। वह बिना बुलाए लाहौर गए, किसी ने उनसे सवाल नहीं किया।’’ संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में होने वाले आगामी एशिया कप क्रिकेट टूर्नामेंट का जिक्र करते हुए मुफ्ती ने कहा कि खेलों को राजनीति के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि भारत ने एशिया कप में हिस्सा लेने का फैसला किया है, जबकि हर कोई कह रहा है कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। खेल होने दीजिए।’’
मुफ्ती ने कहा कि जब भी जम्मू-कश्मीर के लोग पाकिस्तान के साथ शांति और बातचीत की बात करते हैं, तो उन्हें देश की विदेश नीति में दखल न देने की सलाह दी जाती है। पीडीपी प्रमुख ने कहा, ‘‘मैं दिल्ली को बताना चाहती हूं कि जम्मू-कश्मीर के बिना भारत की विदेश नीति क्या है। हमने युद्ध झेला, जिससे तबाही हुई। मैं सरकार से कहना चाहती हूं कि हम विदेश नीति में दखल देंगे और आपसे बड़ा भाई बनने के लिए कहेंगे, क्योंकि आपकी लड़ाई जम्मू-कश्मीर में लड़ी जा रही है।’’ पीडीपी प्रमुख ने सरकार से पाकिस्तान के साथ ‘हथियारों की होड़’ से बचने और देश के ज्वलंत मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया। उन्होंने दावा किया,‘‘अब एक और होड़ छिड़ गई है कि भारत अधिक हथियार खरीदेगा या पाकिस्तान।''
वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने महबूबा मुफ्ती के बयान को अप्रत्यक्ष रूप से निशाना बनाते हुए कहा कि जो लोग पाकिस्तान से बातचीत का समर्थन कर रहे हैं, वे ही कमजोर हो रहे हैं। उनका इशारा इस ओर था कि बार-बार बातचीत की मांग करने से भारत की सख्त स्थिति कमजोर पड़ती है। उमर अब्दुल्ला का मानना है कि पाकिस्तान को पहले अपने आतंकवाद निरोधी वादों को साबित करना चाहिए, तभी कोई भी संवाद सार्थक हो सकता है।
देखा जाये तो उमर का यह बयान उनके दल की उस रणनीति को भी दर्शाता है, जिसमें वे राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा सरकार की आतंकवाद के प्रति सख्त नीति से अलग दिखना नहीं चाहते। जम्मू-कश्मीर में एक बात स्पष्ट है कि 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से यहां की सियासत पूरी तरह बदल चुकी है। महबूबा मुफ्ती (पीडीपी) अभी भी खुद को "कश्मीरियों की आवाज़" के रूप में पेश करना चाहती हैं। वहीं उमर अब्दुल्ला अधिक व्यावहारिक और राष्ट्रीय राजनीतिक धारणा से जुड़ा रुख अपनाते दिखते हैं ताकि उनका दल भारत-समर्थक विकल्प के रूप में देखा जाए। हम आपको यह भी बता दें कि भारत सरकार का वर्तमान रुख यह है कि पाकिस्तान से कोई भी बातचीत तब तक नहीं होगी, जब तक वह आतंकवाद पर कड़ा कदम नहीं उठाता।
बहरहाल, महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के अलग-अलग रुख इस बात का संकेत हैं कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति अब भी पहचान-आधारित विमर्श पर टिकी हुई है। महबूबा मुफ्ती संवाद की राजनीति के जरिए अपने पारंपरिक जनाधार को बचाने की कोशिश कर रही हैं, जबकि उमर अब्दुल्ला राष्ट्रीय सुरक्षा की भावना से मेल खाकर अपने दल को प्रासंगिक बनाए रखना चाहते हैं। हालांकि मौजूदा परिस्थितियों में पाकिस्तान से बातचीत की कोई तत्काल संभावना नहीं दिखती, लेकिन यह मुद्दा कश्मीर की सियासत में अभी भी राजनीतिक ध्रुवीकरण का अहम औजार बना रहेगा।