जब Modi के मन में MP है और एमपी के मन में मोदी हैं तब BJP इतनी टेंशन में क्यों है?

By नीरज कुमार दुबे | May 04, 2024

मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 28 सीटों पर जीत हासिल करके इतिहास रच दिया था। चार-पांच महीने पहले हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन करते हुए मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की थी। चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को हटा कर उज्जैन के विधायक मोहन यादव को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंप दी। मोहन यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज सरकार की सारी योजनाओं को तो जारी रखा ही साथ ही जिस तरह कई नई योजनाएं शुरू कर मोदी की गारंटी वाले नारे के प्रति जनता का विश्वास बढ़ाया उसके दम पर भाजपा इस बार राज्य की सभी 29 सीटों पर जीत हासिल होने का दावा कर रही है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या भाजपा का यह दावा सही सिद्ध हो पायेगा या कांग्रेस इस बार अपना प्रदर्शन सुधारेगी।


कांग्रेस ने इस बार अपने कई दिग्गजों को चुनाव मैदान में उतार कर यह संकेत दिया कि वह बड़ी शिद्दत के साथ चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस महाकौशल क्षेत्र की सीटों- छिंदवाड़ा, मंडला और बालाघाट के अलावा मुरैना सीट पर भी जीत के प्रति आशान्वित है क्योंकि यहां उम्मीदवार तगड़ा दिया गया है। इसके अलावा कांग्रेस को उम्मीद है कि अपने गृह क्षेत्र राजगढ़ से दिग्विजय सिंह भी जीत कर आ सकते हैं। लेकिन कांग्रेस की उम्मीदों पर एक-एक करके पानी फिरता जा रहा है क्योंकि जहां-जहां कांग्रेस को जीत की उम्मीद है वहां-वहां के पार्टी विधायक या बड़े पदाधिकारी भाजपा में शामिल हो जा रहे हैं। इस सबसे कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं पर बुरा असर पड़ रहा है। इसके अलावा इंदौर से कांग्रेस प्रत्याशी ने जिस प्रकार पाला बदला उससे भी पार्टी की छवि पर असर पड़ा है।

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दूसरी ओर, भाजपा की बात करें तो निश्चित रूप से वह राज्य में बढ़त बनाये दिख रही है और उसका चुनावी प्रबंधन भी कुशलता के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है। पार्टी को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि का लाभ पार्टी के उम्मीदवारों को मिलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हाल ही में भोपाल में रोड़ शो भी कराया गया था। इसके अलावा प्रधानमंत्री की जन सभाएं भी विभिन्न इलाकों में कराई जा रही हैं। इसके अलावा गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी प्रचार का जिम्मा बखूबी संभाला हुआ है। लेकिन इस सबके बावजूद एक चीज पूरे मध्य प्रदेश में देखने को मिल रही है कि मतदाताओं में चुनावों को लेकर कोई उत्साह नहीं है। भाजपा का हाई-प्रोफाइल प्रचार अभियान हो या कांग्रेस का चुनाव प्रचार, मतदाता इस बार चुनावी शोर से दूर रहना पसंद कर रहे हैं। हो सकता है कि चार महीने के भीतर दूसरा चुनाव आ जाने से मतदाताओं में उत्साह नहीं है। इस माहौल को देखकर राजनीतिक दलों का बेचैन होना स्वाभाविक ही है। इसलिए विभिन्न दल बैठकें कर अपने-अपने मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक लाने की रणनीति बना रहे हैं ताकि चुनावी लक्ष्य हासिल हो सकें।


मध्य प्रदेश में भाजपा के आक्रामक चुनाव प्रचार को देखकर शुरू में कांग्रेस निराश दिखी थी लेकिन पहले चरण में कम मतदान होने से कांग्रेस का उत्साह बढ़ा और उसे लगा कि मतदाता भाजपा के प्रति बेरुखी दिखा रहे हैं। इसलिए दूसरे चरण से कांग्रेस भी रक्षात्मक की बजाय आक्रामक रवैया दिखा रही है। हाल ही में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किये गये जीतू पटवारी के नेतृत्व में यह पहला बड़ा चुनाव है इसलिए यह उनकी रणनीति और नेतृत्व की परीक्षा भी होगी। इसी तरह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए भी यह चुनाव एक बड़ी परीक्षा हैं क्योंकि मध्य प्रदेश में सरकार के साथ-साथ पार्टी का चेहरा भी वही हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए भी यह चुनाव बड़ी परीक्षा के समान हैं क्योंकि वह अपना पिछला चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में हार गये थे। सिंधिया के क्षेत्र में राहुल गांधी भी प्रचार करके आये हैं और प्रियंका गांधी ने भी उनके क्षेत्र में जाकर सिंधिया को काफी बुरा भला कहा था लेकिन सिंधिया ने किसी पर पलटवार नहीं किया। इस चुनाव में मध्य प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विदिशा से और राजगढ़ से दिग्विजय सिंह मैदान में हैं। चुनावों से पहले जिस तरह सुरेश पचौरी समेत कई दिग्गज कांग्रेसियों ने पाला बदलते हुए भाजपा का दामन थामा और जीतू पटवारी को पार्टी का नेतृत्व करने में जिस तरह कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की ओर से सहयोग नहीं दिया जा रहा है उसके चलते कांग्रेस के लिए इन चुनावों से ज्यादा उम्मीदें लगाना बेमानी होगा।


बहरहाल, सिर्फ मोदी मैजिक के सहारे चुनावी समर में उतरी भाजपा का फोकस अब ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को पोलिंग बूथ पर लेकर आने पर नजर आ रहा है। उत्तर भारत के इस महत्वपूर्ण राज्य में भाजपा ने सामाजिक समीकरणों को बड़ी कुशलता से साधा है इसलिए सभी 29 सीटों पर जीत की उम्मीद को अतिश्योक्ति तो नहीं लेकिन कठिन लक्ष्य तो कहा ही जा सकता है। यहां जनता से बात करके एक चीज स्पष्ट हो गयी कि मुख्यमंत्री चाहे शिवराज सिंह चौहान रहें हों या अब मोहन यादव हों, जनता को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। चुनाव में जनता सिर्फ मोदी के नाम पर ही वोट करती है भले उम्मीदवार कोई भी हो।

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