By कमलेश पांडे | Jul 01, 2025
प्रस्तुत पुस्तक "पत्रकारिता के टेढ़े-मेरे रास्ते" वरिष्ठ पत्रकार आदर्श प्रकाश सिंह की एक प्रेरणादायी रचना है, जो ज्ञान गीता प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित है। महज 325/- रुपए मूल्य वाली इस पुस्तक में 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 21 सदी के पूर्वार्द्ध में हिंदी पट्टी की पत्रकारिता और उसकी नैतिक विडंबनाओं पर प्रकाश डाला गया है, जो पत्रकारिता के पेशे को चुनने वाले जिज्ञासु छात्र-छात्राओं के लिए बेहद उपादेय है।
कहा जाता है कि दूसरों के अनुभव से सीखने वाला व्यक्ति बुद्धिमान होता है और खुद के अनुभव से सीखने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है। इसलिए इस पुस्तक में शब्द-शिल्प द्वारा पिरोए गए लेखक के नितांत व्यक्तिगत व संस्थागत अनुभवों से समकालीन व परवर्ती पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है, एक औसत समझ विकसित कर सकती है और उन समझों का प्रयोग अपनी जिंदगी में करके उसे संवार सकती है। इस दृष्टिकोण से यह पुस्तक पत्रकारिता के छात्र-छात्राओं और पत्रकारिता की विभिन्न विधाओं में कार्यरत/संघर्षरत/पारंगत पत्रकारों के लिए बहुत ही उपयोगी है।
इस पुस्तक में अपनी बात के माध्यम से लेखक ने एक पत्रकार के सामाजिक महत्व और उसके आर्थिक पशोपेश पर एक कटाक्ष किया है। उन्होंने पत्रकारिता की रीढ़ समझे जाने वाले डेस्क को मध्यम वर्ग करार देकर ऐसा व्यंग्य किया है कि इससे आगे कुछ ज्यादा कहने की जरूरत नहीं है। कारण कि यह लेखकीय संसार ही मध्यम वर्ग की शोभा है। अमीरजादों के सौंदर्य बोधक लेखन और गरीबों के दर्द भरे लेखन से सिर्फ मनोरंजन हो सकता है, लेकिन मध्यम वर्ग के हकीकत भरे लेखन से ही न केवल समकालीन समाज को एक दिशा मिलती है, बल्कि उससे ज्यादा जागरूकता फैल गई तो क्रांति की भी नौबत आ जाती है।
मेरे विचार से यह पुस्तक भी एक वैचारिक क्रांति का आह्वान करती है जो फ्रांसीसी क्रांति, रूसी क्रांति से कुछ अलग हो और मौजूदा परिवेश के लायक प्रासंगिक भी। इस पुस्तक की विशेष टिप्पणी और एक पत्रकार के अंदर छिपा लेखक से जुड़ी बातें हर किसी के लिए जिज्ञासा बर्द्धक हैं।
वस्तुतः, कुल 31 अध्याय और 125 पेज की इस पुस्तक की भूमिका बड़ी ही प्रभावशाली है। इसमें चर्चा प्रतिष्ठित काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तरप्रदेश से शुरू होकर कैंची धाम, नैनीताल, उत्तराखंड वाले नीम करौली बाबा के आशीर्वाद से समाप्त हो जाती है। इस बीच कई नेताओं, मीडिया प्रतिष्ठानों के मर्म को स्पर्श करते हुए लेखक कुछ यादों, बातों और मुलाकातों को बड़े सलीके से ही एक वैचारिक आयाम देते हैं, जिससे इस पुस्तक में भारत के उत्तरप्रदेश के साथ-साथ हिंदी पट्टी की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दशा स्वतः ही चित्रित होते रहते हैं।
खासकर, दिल्ली-कोलकाता जैसे महानगरों और अमरकंटक व तिरूपति जैसे प्रख्यात तीर्थस्थलों से लेखक का जुड़ाव स्पष्ट करता है कि जीवन जगत के विभिन्न अंतर्द्वंद्वों को जीने, उनसे देश-समाज को बेस्ट देने और उन सभी संस्मरणों को शब्द शिल्प देने की नैसर्गिक कला उनमें अद्भुत है। बागी बलिया की छाप भी उनके सुस्पष्ट लेखन में मिलती है। लेखन ने स्वीकार किया है कि यह पुस्तक एक घुमक्कड़ लेखक की जीवन यात्रा भी समझी जा सकती है। इसमें उन्होंने अपने जीवन और पेशे से जुड़ी बारीकियों पर अद्योपरांत प्रकाश डाला है ताकि ऐसे तल्ख अनुभव हासिल करने के लिए किसी को अपना 4 दशक नहीं गंवाना पड़े, बल्कि इस पुस्तक को पढ़ते ही समकालीन पत्रकारिता की दुनियादारी से सावधान हो जाए।
सच कहूं तो इस पुस्तक में प्रिंट पत्रकारिता या पुस्तक लेखक कौशल से जुड़ी बातें तो हैं, लेकिन टीवी पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता (डिजिटल), सोशल मीडिया पत्रकारिता व उसके यूट्यूब संस्करणों से जुड़े बातों-जज्बातों का भी यदि समावेश इसमें हो जाता तो यह पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए गागर में सागर होती। यदि आप यशस्वी पत्रकार दीनानाथ मिश्र की पुस्तक 'मैं दिल्ली हूँ" को पढ़ चुके हैं तो इस पुस्तक की पढ़ाई शुरू करने के बाद इसका अंत किए बिना आप नहीं रह पाएंगे। इस मामले में लेखक का लेखन कौशल अनुकरणीय समझा जा सकता है।
पुस्तक का नाम: पत्रकारिता के टेढ़े-मेढ़े रास्ते
लेखक का नाम: आदर्श प्रकाश सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
प्रकाशक का नाम: ज्ञान गीता प्रकाशन
प्रकाशन का स्थान: दिल्ली
पुस्तक का मूल्य: 325/- (पेपर बैक संस्करण)
- पुस्तक समीक्षक: कमलेश पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार