शिवसेना में जब हुई बगावत, बाला साहेब ने मोर्चा संभाला और विरोधियों को सबक भी सिखाया, उद्धव अपने पिता से क्या सीख सकते हैं?

By अभिनय आकाश | Jun 24, 2022

हाथ में रूद्राक्ष की माला शेर की दहाड़ वाली तस्वीर और आवाज तानाशाह वाली। सब कुछ राजनीति नहीं थी। राजनीति को खारिज कर सरकारों को खारिज कर खुद को सरकार बनाने या मानने की ठसक थी। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने अपने जीवन में तीन प्रतिज्ञाएं की थी। एक प्रतिज्ञा ये थी कि वो कभी अपनी आत्मकथा नहीं लिखेंगे। दूसरी प्रतिज्ञा ये थी कि वो कभी किसी तरह का चुनाव नहीं लड़ेंगे और तीसरी प्रतिज्ञा ये थी कि वो कभी कोई सरकारी पद नहीं हासिल करेंगे। सरकार से बाहर रहकर सरकार पर नियंत्रण रखना उनकी पहचान थी। 1966 में 'मराठा गौरव' के आधार पर शिवसेना की स्थापना करने वाले बालासाहेब ने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा और न ही कोई सरकारी पद संभाला। हालाँकि, वह महाराष्ट्र की राजनीति पर एक व्यापक छाया बने रहे क्योंकि उन्होंने 2012 में अपनी अंतिम सांस तक पार्टी का नेतृत्व करना जारी रखा।

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जब छगन भुजबल ने दी चुनौती

बाल ठाकरे के करीबी छगन भुजबल ने 1991 में शिवसेना के लिए मुसीबत खड़ी कर दी और शिवसेना-बी नाम के एक नए संगठन की घोषणा की। यह पहला विद्रोह था जिसका सामना 25 साल पुरानी पार्टी ने किया। उस समय, बाल ठाकरे ने भुजबल को 'देशद्रोही' घोषित किया और उन्हें "लाखो-बा" उपनाम दिया। 1997 में जब शिवसेना-भाजपा गठबंधन राज्य पर शासन कर रहा था, सैकड़ों शिव सैनिकों ने भुजबल के बंगले पर हमला किया था और वह मुश्किल से भागने में सफल रहे। बालासाहेब ने हमले का समर्थन करते हुए कहा कि शिवसैनिक उनके भड़काऊ भाषणों से नाराज हैं। भुजबल पर हुए हमले ने बाल ठाकरे के विरोधियों को स्पष्ट संदेश दिया कि वह अपने विरोधियों को कभी नहीं भूलते या माफ नहीं करते हैं।

जब बाला साहेब ने शिवसेना छोड़ने का ऐलान किया  

शिवसेना नेतृत्व के लिए उद्धव ठाकरे के खिलाफ आरोप नए नहीं हैं। 30 साल पहले 1992 में माधव देशपांडे ने बाल ठाकरे और उनकी कार्यशैली को लेकर सवाल उठाए थे। उन्होंने उद्धव और राज ठाकरे दोनों पर पार्टी मामलों में दखल देने का आरोप लगाया था। उसके बाद बाल ठाकरे ने शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक लेख लिखा। बाल ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना में लिखा था, ‘अगर एक भी शिवसैनिक मेरे और मेरे परिवार के खिलाफ खड़ा होकर कहता है कि मैंने आपकी वजह से शिवसेना छोड़ी या आपने हमें चोट पहुंचाई, तो मैं एक पल के लिए भी शिवसेना प्रमुख के रूप में बने रहने के लिए तैयार नहीं हूं। काडर और सरकार पर अपनी पकड़ साबित करने के लिए बाल ठाकरे ने ऐलान किया था कि मैं शिवसेना छोड़ रहा हूं। वहीं शिवसेना जिसे साठ के दशक से उन्होंने सींचा था, खड़ा किया था। लेकिन इसके बाद वह और मजबूत होकर उभरते हैं। मंत्री, पार्षद सब सुप्रीमो के पीछे और सबकी जुबान पर एक ही नारा कि हमें सरकार नहीं साहिब चाहिए।

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जब 2005 में शिवसेना को लगा दोहरा झटका

साल 2005 में शिवसेना को दोहरा झटका लगा था। पहले नारायण राणे ने 10 विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ी और फिर राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ दी। राज ठाकरे ने उस समय कहा था कि उनकी लड़ाई पार्टी नेतृत्व के खिलाफ नहीं बल्कि आसपास की मंडली से है। दो बड़े नेताओं का एक के बाद एक पार्टी छोड़ना शिवसेना के लिए बड़ा झटका था। हालांकि उस समय उद्धव कार्यकारी अध्यक्ष थे, लेकिन यह बाल ठाकरे ही थे जिन्होंने पार्टी को संभाले रखा। उन्होंने न सिर्फ बेटे उद्धव पर भरोसा जताया बल्कि पार्टी कैडर को भी साथ रखा।


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