पौधा लगाना आसान कहां (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Jan 23, 2025

हर पौधे को बाज़ार की नज़र से देखना है क्यूंकि वह बिकने के लिए उगा है। घर की बची खुची हरियाली में खाली पड़े गमले में नया पौधा खुद लगा सकते हैं तो जरुर लगाएं। समय न रहते किसी अनुभवी पौधे लगाने वाले की सेवाएं लेंगे तो वह अपने तरीके से काम करेगा क्यूंकि उसका मूल कर्तव्य घर में उदास पड़े गमले में पौधा रोपना नहीं, पौधा रोपकर एक नया ग्राहक बनाना है जो भविष्य में भी उसे और अवसर दे सकता है।  


दूसरे गमले के पास बैठी मां चुपचाप देख रही है। पौधा लगाते हुए वह बिना पूछे समझाते हैं, सबसे पहले प्लास्टिक पॉट या पाली ग्रो बैग को हल्के हाथों से हिलाते हुए पौधे को बाहर निकालें। ध्यान रखें, उसकी जड़ें न टूटें। जड़ों में से कोकोपीट को निकाल दें। नए गमले में लगाते समय पौधे के चारों तरफ पोषक तत्वों से भरपूर मिटटी को अच्छी तरह ऐसे दबाएं। मां गौर से देख रही है। पौधा लगाने वाले ने मिटटी दबाई, फिर कहा अब इसकी हल्की सिंचाई कर देते हैं। कहने लगे इस पौधे में नियमित अंतराल पर पोषक तत्वों से भरपूर खाद ज़रूर डालें। दो मुट्ठी गोबर खाद, एक मुट्ठी केंचुआ खाद, एक मुट्ठी नीम की खली तथा एक मुट्ठी सरसों की खली मिलाकर, उचित मात्रा में खाद डालेंगे तो पौधा तंदरुस्त रहेगा । मां के चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कराहट उगने लगी है। पौधा लगाना और बड़ा करना कितना मुश्किल काम हो गया है। वह बोले घबराइए नहीं, यह सब अब ऑनलाइन मिल जाता है। 

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पौधा लगाकर, अनुभवी हाथ धोते हुए बताने लगे, पौधों के बेहतर विकास के लिए घुलनशील उर्वरकों में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश दो ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर महीने में दो बार छिडकाव करना चाहिए। यह तो मानवीय शरीर को चुस्त दरुस्त रखने जैसा ही हुआ, जिसका ख्याल हम अपने अस्त व्यस्त जीवन में मुश्किल से रख पाते हैं। कहने लगे खाद डालने के एकदम बाद पानी नहीं डालना चाहिए। मां को पुरानी रसोई के साथ बना किचन गार्डन याद आने लगा। 

  

सबसे दिलचस्प उनका यह बताना रहा कि कैक्टस, सक्युलेंट और आर्किड्स जैसे कई पौधों को अगर पानी में मिनरल वाटर मिलाकर पिलाएंगे तो उनकी जड़ें मज़बूत होंगी, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। वक़्त सचमुच बदल गया है अब पौधों को भी मिनरल वाटर पिलाना होगा।  फिर कहने लगे कुछ पौधों को भूलकर भी मिनरल वाटर न दें, इससे उनकी जड़ों का विकास रुक जाता है, फूल और फल भी कम लगते हैं।  

 

मां सोच रही है , मिटटी की मिटटी खराब कर दी, अनगिनत रसायन उसमें मिला दिए, ज्यादा उत्पादन के लिए, तकनीक की बढ़ती पैदावार ने, फूल पौधों को भी नहीं बख्शा। पहले कुदरत खुद देखभाल करती थी, अब इतना कुछ करना पड़ता है फिर भी संतुष्टि नहीं। विकास कुदरत को परेशान कर रहा है।


- संतोष उत्सुक

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