कौन है शीतल देवी? जानें महिला तीरंदाज के बारे में ये पांच तथ्य

By Kusum | Oct 27, 2023

शीतल देवी ने एशियाई पैरा गेम्स 2023 में एक बार फिर कामयाबी हासिल की है। शीतल ने हांगझोऊ में महिलाओं की व्यक्तिगत कंपाउंट तीरंदाजी स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता है। इसके साथ ही वो दुनिया की पहली बिना हाथ वाली महिला तीरंदाज भी हैं। उन्होंने सिंगापुर की अलीम नूर सयाहिदा को 144-142 से मात देकर टॉप स्थान हासिल किया। 


तो आइए आपको बताते हैं, शीतल देवी के बारे में पांच अनछुए तथ्य जिन्हें आप नहीं जानते हैं। 


फोकोमेलिया से पीड़ित

निशानेबाज शीतल देवी का जन्म फोकोमेलिया के साथ हुआ था। ये एक गंभीर बीमारी है जिसमें अंग अविकसित होते हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' को बताया कि, शुरुआत में तो मैं धनुष ठीक से उठा भी नहीं पाती थी, लेकिन कुछ महीनों के प्रयास के बाद ये आसान हो गया। 


2 साल पहले की ट्रेनिंग शुरू 

शीतल देवी ने महज 2 साल पहले ही धनुष-बाण के साथ अपनी ट्रेनिंग शुरू की थी। इतने कम समय की मेहमनत के बाद भी उन्होंने कई मेडल अपने नाम किए। हांगझू में शीतल ने सरिता के साथ जोड़ी बनाते हुए महिला टीम में सिल्वर मेडल जीता और राकेश कुमार के साथ मिश्रित में गोल्ड मेडल अपने नाम किया।

 

खेलने की एक अनोखी शैली

बिना हाथों के शीतल मुंह और पैरों की मदद से कमाल करती हैं। वो अपने दाहिने पैर से 27.5 किलोग्राम के धनुष को पकड़ती हैं और संतुलित करती है। अपने दाहिए कंधे से जुड़े एक मैनुअल रिलीजर का इस्तेमाल करके स्ट्रिंग को पीछे खींचती हैं और लक्ष्य को भेदने के लिए मुंह में रखे ट्रिगर का इस्तेमाल करती हैं। हालांकि, इस दौरान वह पूरे समय अपने बाएं पैर के बल सीट पर खुद को सीधा रखती हैं।


उपलब्धियां

महज 16 साल की उम्र में शीतल ने अपने नाम उपलब्धियां की हैं। ट्रेनिंग के 6 महीने बाद शीतल ने वो कर दिखाया जिसका इंतजार सबको था। उन्होंने सोनीपत में पैरा ओपन नेशनल्स में सिल्वर मेडल हासिल किया। इस साल की शुरुआत में शीतल ने चेक गणराज्य के पिलसेन में वर्लड कप तीरंदाजी चैंपियन में भी सिल्वर मेडल जीता। वह फाइनल में तुर्की की ओजनूर क्योर से हार गईं लेकिन वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली बिना हाथों वाली पहली महिला तीरंदाज बन गईं। 


कोच कुलदीप का समर्थन

वहीं शीतल ने कभी भी इस खेल को खेलने के बारे में नहीं सोचा था। जबतक कि कोच कुलदीप कुमार ने उनमें क्षमता नहीं देखी और उन्हें अकादमी का दौरा करने के लिए नहीं कहा, जिससे अंततः उन्हें प्रेरणा मिली और उन्हें यह उपलब्धि हासिल करने में मदद मिली।

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