By अभिनय आकाश | Jul 03, 2025
जियोपॉलिटिक्स को अक्सर शतरंज के खेल के समान माना जाता है, जिसमें खामोशी के साथ अंदर ही अंदर कोई गेम कर रहा होता है। चीन में कुछ ऐसा ही गेम हो रहा है। 25 जून को साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के हवाले से एक खबर सामने आती है कि ब्राजील में 6-7 जुलाई को आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग नहीं जाएंगे। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने इसके भी संकेत दिए हैं कि ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा द्वारा ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजकीय रात्रिभोज के लिए आमंत्रित करने की वजह से बीजिंग की तरफ से इस तरह का कदम उठाया जा रहा है। रिपोर्ट में तर्क दिया गया कि चीनी पक्ष को डर है कि लूला-मोदी की मुलाकात सुर्खियों में आ सकती है और शी एक सपोर्टिंग एक्टर के रूप में नजर आ सकते हैं। लेकिन ये कोई पहला मौका नहीं था। आपको याद होगा कि जी 20 के लिए शी जिनपिंग को बुलाया जाता है। लेकिन वो इसमें शामिल होने के लिए नहीं जाते हैं। वहीं डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से इनोग्रेशन डे यानी 20 जनवरी को ग्रेस्ट ऑफ ऑनर की तरह बुलाते हैं। लेकिन शी जिनपिंग वहां भी नहीं जाते हैं। उस वक्त लोगों को लगा कि शी जिनपिंग का अपना ही स्वैग है, अपना ही टशन है कि वो खुद को बड़ा नेता समझते हैं। अमेरिका की कोई परवाह नहीं है। लेकिन मामला ऐसा भी नहीं है, जैसा एकदम सरल दिख रहा है। पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय में ये पहली बार हो रहा है कि शी जिनपिंग गायब हैं। कई महीने से शी जिनपिंग को एक से दो बार ही किसी मीटिंग या कार्यक्रम में देखा गया है।
जिनपिंग जब नजर भी आए तो बेहद सुस्त और अलग थलग दिखें। मई के आखिर में जिनपिंग की मौजूदगी एकदम से चली गई। वो न ही किसी परेड में नजर आए। न कोई भाषण दे रहें हैं और न किसी सरकारी मीडिया में दिखाई दिए। एक मीडिया रिपोर्ट की माने तो टॉप खुफिया अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि जिनपिंग की अनुपस्थिति में कुछ नया नहीं है। चीन में बड़े नेताओं को साइडलाइन करने का इसी तरह का इतिहास रहा है। तो क्या चीन के अंदर तख्तापवट हो रहा है। चीन में जब किसी बड़े लीडर को कुर्सी से हटाया जाता है तो इसे पब्लिक नहीं किया जाता है। यानी की चीन में संस्थानों की बड़ी रिसपेक्ट है। लीडर वो अपने आप में चलता-फिरता इंस्टीट्यूशन है। ऐसे में उनकी बेइज्जती करना, उन्हें जेल में डालना ऐसा कुछ चीन में नहीं होता है। चीन में धीरे धीरे उस नेता को गैर जरूरी करना शुरू कर देते हैं। जिससे उसे सिग्नल मिलना शुरू हो जाता है कि अब कुर्सी और नेता के रिलेशन का कनेक्शन लूज हो गया है। ऐसा ही कुछ चीन में चल रहा है और कहा जा रहा है कि शी जिनपिंग के सत्ता के दिन अब पुरे हो गए हैं।
चीनी फौज गलवान घाटी पर हमला करती है। उससे पहले डोकलाम की बातें होती हैं। ताइवान को जबरन अपने में मिला लेंगे जैसे दावे किए जाते हैं। अगले तीन सालों में ताइवान पर हमला हो जाएंगे। ये सारा नैरेटिव शी जिनपिंग के ऑफिस से गढ़ा गया। ये सारी चीजें शी जिनपिंग ने अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए कही थी। पहलगाम में आसिम मुनीर ने अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए आतंकी भेजे। ये जानते हुए कि इससे विवाद बढ़ेगा। आसिम मुनीर ने जानते हुए कि ऐसा करने पर भारत जवाब देगा फिर भी ऐसा कदम उठाया है। इसके पीछे की एक बड़ी वजह ये थी कि मुनीर को ये भी ज्ञात था कि भारत के तगड़े रिएक्शन के बाद पूरी पाकिस्तानी कौम मेरे पीछे आकर खड़ी हो जाएगी। आसिम मुनीर पहले से मजबूत हो गया। यही काम शी जिनपिंग ने डोकलाम और गलवान में करने की कोशिश की थी। यही काम वो ताइवान में करने की कोशिश कर रहे हैं। जब देश में लड़ाई होती है तो नेता को चाहे लोग पसंद करे या न करे उसके ईर्द गिर्द इकट्ठा होना शुरू हो जाते हैं। आपको इजरायल का ताजा उदाहरण तो याद ही होगा। जिसको लेकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने दावा तक कर दिया था कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए ईरान पर हमले शुरू किए। दावा किया गया कि घरेलू राजनीतिक चुनौतियों से ध्यान हटाने और अपनी गठबंधन सरकार को बचाने के लिए नेतन्याहू ने ईरान पर हमले का कदम उठाया।
सीसीपी की स्ट्रैटर्जी नेताओं को साइडलाइन करने की रही है। हू जिंताओ, शू रोंगी, जाओ जियांग इन सभी की ऑपरेशनल ऑथरिटी हटाकर इन्हें साइडलाइन किया। आपको हू जिंताओ का वायरल वीडियो तो याद ही होगा। जब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की एक बैठक के दौरान हू जिंताओ राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बगल में बैठे हैं और तभी दो लोग उनके पास आते हैं और उन्हें इस बैठक से बाहर जाने के लिए कहते हैं। ये दोनों लोग हू जिंताओ को बैठक से जबरन बाहर ले जाते हैं। हू जिंताओ भी चीन के किसी दौर में राष्ट्रपति रह चुके हैं।
फिलहाल भले ही जिनपिंग के हाथों में सत्ता है। लेकिन पैसले लेने की ताकत कहीं और शिफ्ट होती नजर आ रही है। इसमें एक नाम सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के फर्स्ट वाइस चेयरमैन जनरल झांग यूक्सिया का आ रहा है। माना जा रहा है कि वे और उनके समर्थक जिनपिंग से कुछ कम सख्त हैं। इससे पहले जिनपिंग पर आरोप लगे कि वे अपनी सोच को स्कूल कॉलेज की किताबों में शामिल करा रहे हैं। जिससे बच्चों में भी वहीं आइडियोलॉजी डाली जा सके। इसके अलावा वेंग यांग का नाम भी चर्चा में है। वेंग यांग टेक्नोक्रेट रह चुके हैं। जिनपिंग की जगह उन्हे भी आगे लाया जा सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यांग को हाल में कम्युनिस्ट पार्टी का हेड बनाया गया।
For detailed delhi political news in hindi