Lala Lajpat Rai Death Anniversary: लाला लाजपत राय पर हुई लाठीचार्ज से हिल गया था पूरा देश, जानिए महान क्रांतिकारी से जुड़ी खास बातें

By अनन्या मिश्रा | Nov 17, 2024

आज ही के दिन यानी की 17 नवंबर को लाला लाजपत राय का निधन हो गया था। भारत को अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने में लाजपत राय ने अहम भूमिका निभाई थी। वह अंग्रेजों के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन उस दौरान अंग्रेजों द्वारा किए गए लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय बुरी तरह से घायल हो गई थे। इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उनका निधन हो गया था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर लाला लाजपत राय के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और परिवार

जाब के मोगा जिले के अग्रवाल परिवार में 28 जनवरी 1865 को लाला लाजपत राय का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम मुंशी राधाकृष्ण आजाद था, जोकि उर्दु के टीचर थे। लाला लाजपत ने कानून की पढ़ाई की थी और इसी दौरान वह आर्य़समाज के संपर्क में आए थे। साल 1885 में कांग्रेस की स्थापना के दौरान वह उसके प्रमुख सदस्य बने थे।

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देश में प्रदर्शन

बता दें कि कांग्रेस ने गांधी जी के नेतृत्व में पूरे देश में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन करने का फैसला लिया। इस दौरान देशभर में 'साइमन गो बैक' का नारा गूंजने लगा। वहीं पंजाब में लाला लाजपत राय ने इस विरोध प्रदर्शन के नेतृत्व का जिम्मा उठाया। जब पंजाब के लाहौर में लाला लाजपत राय साइमन कमीशन का विरोध करते हुए काले झंडे दिखाकर विरोध जता रहे थे, तो बौखलाई ब्रिटिश सरकार ने भीड़ पर लाठी चार्ज कर दिया। 


हमले में गंभीर रूप से घायल हुए लाजपत राय

इस दौरान हुए लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए थे। यह लाठी चार्ज लाहौर पुलिस के SP James A Scott के नेतृत्व में हुआ था। ऐसे में लाला लाजपत को अस्पताल लाया गया, जहां पर वह 18 दिनों तक जिंदगी और मौत से जंग लड़ते रहे और अंत में 17 नवंबर 1928 को उन्होंने आखिरी सांस ली। उनकी मौत की खबर सुनकर पूरे देश में आक्रोश फैल गया और भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारियों ने लाला की मौत का बदला लेने का फैसला किया।


पहला स्वदेशी बैंक

बता दें कि लाल लाजपत राय ने देश को पहला स्वदेशी बैंक दिया था। अपने समय में वह कांग्रेस के गरम दल के नेता थे और फेमस तिकड़ी लाल-बाल-पाल के लाला ने देश की आजादी में अहम योगदान दिया। इसके अलावा उन्होंने पंजाब में आर्य समाज की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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