By अभिनय आकाश | Dec 06, 2025
एसिड अटैक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 16 साल से अधिक की इस देरी पर आश्चर्य जताया। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि अपराध 2009 का है और ट्रायल अभी तक पूरा नहीं हुआ। अगर राष्ट्रीय राजधानी ऐसी चुनौतियों से नहीं निपट सकती, तो कौन निपटेगा? यह सिस्टम के लिए शर्म की बात है! चीफ जस्टिस ने सभी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को उनके क्षेत्राधिकार में पेंडिंग एसिड अटैक मामलों का डेटा चाह हफ्ते में मुहैया कराने का निर्देश दिया। इस मामले में याचिकाकर्ता खुद पीड़ित हैं और व्यक्तिगत तौर पर अदालत में पेश हुई। उन्होंने कहा कि 2013 तक मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। ट्रायल रोहिणी कोर्ट में चल रहा है और अब आखिरी स्टेज पर है।
यह भी मामला अदालत में उठा कि एसिड फेंका ही नहीं जाता बल्कि पीड़ित को जबरन पिलाया भी जाता है। ऐसे पीड़ितों को लंबी अवधि की गंभीर अक्षमता का सामना करना पड़ता है। कई चल भी नहीं सकते, और आर्टिफिशल फीडिंग ट्यूब पर निर्भर रहते हैं। वर्तमान याचिका ऐसे ही पीड़ितों से संबंधित एक जनहित याचिका है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे मामलों को दिव्यांग अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत 'दिव्यांगता' माना जाना चाहिए।
मलिक ने ऐसी पीड़िताओं का जिक्र किया, जिन्हें एसिड पिलाया गया है। गंभीर दिव्यांगता की शिकार वे कृत्रिम फीडिंग ट्यूब के सहारे जीवित हैं। सीजेआई ने कहा कि एसिड फेंकने का तो सुना था। एसिड पिलाने के मामले नहीं देखे। अपराध की गंभीरता और असर देखते हुए, ट्रायल विशेष कोर्ट में होना चाहिए। ऐसे आरोपियों से कोई सहानुभूति नहीं होनी चाहिए।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक विभिन्न अदालतों में एसिड अटैक से जुड़े 844 केस लंबित हैं। 2025 में जारी रिपोर्ट में ये आंकड़े वर्ष 2023 तक के हैं। एनसीआरबी के मुताबिक देश में 2021 के बाद से एसिड अटैक के मामले लगातार बढ़े हैं। फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में एसिड अटैक के सालाना 250 से 300 केस दर्ज होते हैं। असल संख्या 1,000 से अधिक हो सकती है। कई मामले डर, सामाजिक दबाव और कानूनी झंझटों के कारण रिपोर्ट नहीं किए जाते।