अमेरिका में रह रहे भारतीय चुप क्यों हैं? क्या देशभक्ति सिर्फ नारों तक सीमित है?

By नीरज कुमार दुबे | Sep 04, 2025

अक्सर देखा जाता है कि 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे अवसरों पर अमेरिका में बसे भारतीय और भारतीय मूल के लोग बड़े जोश के साथ इंडिया डे परेड या अन्य सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से अपनी देशभक्ति का प्रदर्शन करते हैं। इसी तरह जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर जाते हैं, तो बड़ी संख्या में भारतीय-अमेरिकी उनके स्वागत में उमड़ पड़ते हैं और भारत माता की जय के नारों से माहौल गूंज उठता है। यह दृश्य निश्चित ही भावनाओं को छूने वाला होता है और मातृभूमि के साथ जुड़ाव को दर्शाता है।


लेकिन प्रश्न यह है कि जब वास्तविक चुनौतियाँ सामने आती हैं— जैसे डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत विरोधी रुख अपनाना और भारतीय सामानों पर भारी टैरिफ लगाना, तो वही प्रवासी भारतीय समुदाय चुप क्यों हो जाता है? यही खामोशी गंभीर सवाल खड़े करती है। देखा जाये तो देशभक्ति केवल उत्सवों और नारों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। यदि भारतीय-अमेरिकी समुदाय अमेरिकी राजनीति, मीडिया और नीतिगत हलकों में प्रभावशाली है तो इस प्रभाव का इस्तेमाल भारत की छवि और हितों की रक्षा में क्यों नहीं किया जाता? जब भारत के खिलाफ नीतिगत फैसले लिए जा रहे हैं या अमेरिकी मीडिया में भारत-विरोधी नैरेटिव सामने आ रहे हैं, तब सामूहिक और मुखर आवाज़ का अभाव कहीं न कहीं “प्रवासी देशभक्ति” की सीमाओं को उजागर करता है।

इसे भी पढ़ें: जिस चीनी नेता को ढूंढ़ रहे थे ट्रंप, वो मोदी के साथ घूमता नजर आया

संभव है कि यह चुप्पी “Dual Loyalty” यानी दोहरी निष्ठा के आरोपों से बचने की व्यावहारिक रणनीति हो। यह भी हो सकता है कि भारतीय-अमेरिकी अपने कॅरियर और सामाजिक सुरक्षा को दांव पर नहीं लगाना चाहते। लेकिन तब सवाल यह उठता है कि क्या देशभक्ति केवल सुरक्षित अवसरों तक ही सीमित रहेगी?


देखा जाये तो भारत आज वैश्विक मंच पर उभरती शक्ति है और उसे प्रवासी भारतीयों की सक्रिय भागीदारी और समर्थन की ज़रूरत है। ऐसे में भारतीय-अमेरिकियों को यह तय करना होगा कि उनकी देशभक्ति केवल परेड और नारे तक सीमित है या फिर वे कठिन समय में भी भारत के पक्ष में खड़े होने का साहस दिखाएँगे।


लेकिन भावनाओं से परे इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है। देखा जाये तो भारतीय-अमेरिकी बड़ी संख्या में अमेरिका की कॉर्पोरेट दुनिया, आईटी सेक्टर, मेडिकल प्रोफेशन और वित्तीय संस्थाओं में ऊंचे पदों पर हैं। लेकिन इन सबके बावजूद वे अमेरिकी राजनीतिक तंत्र में अभी भी अल्पसंख्यक माने जाते हैं। किसी भी राजनीतिक विवाद पर खुलकर बोलना उनके लिए कॅरियर और सामाजिक हैसियत पर असर डाल सकता है। खासकर, ट्रंप जैसे नेता जिनकी राजनीति आक्रामक और विभाजनकारी रही है, उनके खिलाफ बोलना भारतीय-अमेरिकियों को असुरक्षित कर सकता है।


भारतीय-अमेरिकी समुदाय को अमेरिका में अक्सर “Model Minority” कहा जाता है— यानि एक अनुशासित, मेहनती और कानून का पालन करने वाला समुदाय। इस छवि को बनाए रखना उनके लिए सामाजिक पूंजी का हिस्सा है। यदि वे अमेरिकी नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं, तो यह छवि टूट सकती है और उन्हें “असहज अल्पसंख्यक” के रूप में देखा जा सकता है। अधिकांश भारतीय-अमेरिकी यह मानते हैं कि राजनीतिक बयानों और नीतिगत असहमति के बावजूद, अमेरिका में उनकी प्राथमिक पहचान एक पेशेवर और नागरिक की है। भारत के प्रति सहानुभूति तो है, लेकिन वे अपने कॅरियर और आर्थिक सुरक्षा को दांव पर लगाकर राजनीतिक बयानबाज़ी से बचते हैं। उनके लिए मौन ही सुरक्षित रास्ता है।


भारतीय-अमेरिकियों के लिए यह भी चुनौती है कि यदि वह भारत के समर्थन में खुलकर बोलें तो उन पर “दोहरी निष्ठा” (Dual Loyalty) का आरोप लग सकता है। अमेरिकी राजनीति में यह एक संवेदनशील मुद्दा है। जैसे-जैसे भारत की वैश्विक भूमिका बढ़ रही है, भारतीय-अमेरिकी खुद को एक “संतुलनकारी स्थिति” में रखना चाहते हैं— जहाँ न अमेरिका की मुख्यधारा उनसे असहज हो और न ही वे अपनी जन्मभूमि के प्रति उदासीन दिखाई दें।


कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय-अमेरिकियों की यह खामोशी “रणनीतिक मौन” है। वह सार्वजनिक रूप से प्रतिक्रिया न देकर पर्दे के पीछे लॉबिंग और नेटवर्किंग के जरिए भारत के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करते हैं। यह उनकी अमेरिकी राजनीति में परिपक्वता का भी संकेत है— जहाँ शोर-शराबे से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है प्रभावी लॉबिंग। हालांकि कई लोग इससे विपरीत मत भी रखते हैं। भारतीय वायुसेना के पूर्व अधिकारी संजीव कपूर ने अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों की कड़ी आलोचना करते हुए आरोप लगाया है कि यह समुदाय “चुप” है और “मातृभूमि का साथ देने में नाकाम” रहा है। उन्होंने तर्क दिया कि भारतीय डायस्पोरा “जब सबसे ज़रूरी समय होता है तो चुप हो जाता है” और भारत की विकास गाथा को केवल “ड्राइंग रूम की चर्चा” तक सीमित कर देता है।


बहरहाल, भारतीय-अमेरिकियों की खामोशी को केवल डर या कायरता के चश्मे से नहीं देखा जा सकता। यह कहीं न कहीं उनकी दोहरी ज़िम्मेदारी का परिणाम है— एक ओर अमेरिका में सुरक्षित और सम्मानित जीवन, दूसरी ओर भारत के साथ भावनात्मक जुड़ाव। वह जानते हैं कि राजनीति में बयानबाज़ी से ज्यादा असर संगठित लॉबिंग और चुपचाप किए गए प्रयासों का होता है। इसलिए यह खामोशी दरअसल रणनीतिक चुप्पी भी हो सकती है, जो समय आने पर भारत-अमेरिका संबंधों में पुल बनाने का काम करे।


-नीरज कुमार दुबे

प्रमुख खबरें

RBI MPC Meeting 2025 | आरबीआई की बड़ी राहत! होम लोन हुआ सस्ता, रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती, आर्थिक विकास को मिलेगी गति

Putin India Visit: Rajghat पहुंचकर President Putin ने दी राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि, विजिटर बुक में लिखा संदेश

Ginger and Garlic Soup: ठंड में बार-बार बीमार पड़ते हैं, घर पर बनाएं ये जादुई अदरक-लहसुन सूप, डायबिटीज और हार्ट के लिए भी वरदान

Dhurandhar रिलीज से पहले Yami Gautam का बड़ा बयान, फिल्मों के पेड प्रमोशन पर साधा निशाना, ऋतिक रोशन ने भी किया समर्थन