रिटेल बैंकिंग को नयी दिशा देने वालीं चंदा कोचर को भारी पड़ा हितों का टकराव

By नीरज कुमार दुबे | Oct 05, 2018

देश के निजी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक ICICI बैंक की सीईओ चंदा कोचर को आखिर अपने पद से हाथ धोना पड़ा। बैंक में 34 साल का उनका लंबा सफर यूँ खत्म होगा इसका शायद उन्हें भी अंदेशा नहीं रहा होगा। चंदा कोचर वीडियोकॉन समूह को कर्ज देने में अनियमितता बरते जाने के मामले का सामना कर रही हैं। मामले का खुलासा होने के बाद ICICI बैंक ने जाँच बैठाने का ऐलान किया था और चंदा कोचर को 18 जून, 2018 से लंबी छुट्टी पर भेज दिया गया था और यह लंबी छुट्टी आखिरकार बैंक की सीईओ और प्रबंध निदेशक पद से उनकी छुट्टी ही करा गयी। ICICI बैंक ने संदीप बक्शी को नया MD और CEO बनाया है। उनको 5 साल के लिए इस पद पर नियुक्त किया गया है। बैंक के मुताबिक चंदा कोचर के खिलाफ चल रही जांच पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। चंदा कोचर के इस्तीफे की खबर के बाद ICICI बैंक के शेयर में तेजी आ गई। 

 

 

 

मोस्ट पावरफुल बिजनेस वुमेन को जाना ही पड़ा

 

दरअसल चंदा कोचर से ICICI बैंक जल्द से जल्द इसलिए भी निजात पाना चाहता था क्योंकि जस्टिस श्रीकृष्णा आयोग के नेतृत्व में चल रही जाँच खिंचती चली जा रही थी जिससे बैंक के शेयरों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा था। यही नहीं बैंक के प्रमुख पद से इस्तीफा देने के बाद अब चंदा कोचर आईसीआईसीआई बैंक के कोड ऑफ कंडक्ट रूल से मुक्त हो गयी हैं और अपने हितों की रक्षा के लिए कदम उठा सकती हैं। चंदा कोचर को भी इस्तीफे की राह ही आसान लगी क्योंकि जिस तरह नये तथ्य सामने आते जा रहे थे उससे साफ लग रहा था कि श्रीकृष्णा आयोग की रिपोर्ट में उन्हें किसी तरह की क्लीन चिट नहीं मिलने वाली है। दुर्भाग्यूपर्ण है कि चंदा कोचर आईसीआईसीआई बैंक के विश्वास को कायम नहीं रख पाईं और कथित रूप से वंशवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उनकी विदाई हुई।

 

बड़ी प्रेरणास्त्रोत आखिर कैसे विवादों में घिरीं

 

चंदा कोचर ने जिस तरह 1984 में मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर ICICI बैंक से कॅरियर की शुरुआत करके इसके सीईओ और एमडी पद तक का सफर तय किया उसके चलते वह देश-विदेश में महिलाओं के लिए एक बड़ी प्रेरणा बनकर उभरी थीं। खुद चंदा कोचर ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में काफी प्रयास किये। बैंक के कारोबार को देश और विदेश में नयी ऊँचाई पर पहुँचाया और बैंक की शाखाओं का ही विकास नहीं किया बल्कि तकनीक के उपयोग के मामले में भी ICICI बैंक अन्य बैंकों से काफी आगे निकल गया। कोचर को 1 मई 2009 को आईसीआईसीआई बैंक का सीईओ बनाया गया था और उन्होंने भारत में रिटेल बैंकिंग को नयी दिशा देने में बड़ा योगदान दिया। चंदा कोचर का नाम कई बार वैश्विक पत्रिकाओं ने दुनिया की शक्तिशाली महिलाओं की सूची में भी शुमार किया।

 

लेकिन आईसीआईसीआई बैंक के बढ़ते एनपीए जब खतरे के निशान से ऊपर जाने लगे और वीडियोकॉन समूह को कर्ज देने के मामले में हितों के टकराव का मुद्दा सामने आया तो सिर्फ चंदा कोचर की ही नहीं बल्कि पूरे बैंक की छवि प्रभावित हुई। अगर इस मामले को समझने का प्रयास करें तो जो कुछ बातें स्पष्ट तौर पर नजर आती हैं वह यह हैं कि-

 

-दिसंबर 2008 में चंदा कोचर के पति दीपक कोचर ने नू पावर रिन्यूएबल नाम की कंपनी का गठन वीडियोकॉन समूह के चेयरमैन वेणु गोपाल धूत के साथ मिलकर किया।

 

-जनवरी 2009 में वेणु गोपाल धूत ने कंपनी के निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया और अपने हिस्से के 25 हजार शेयर दीपक कोचर को 2.5 लाख रुपए में हस्तांतरित कर दिये।

 

-मई 2009 में चंदा कोचर ने आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ और एमडी का पद संभाला।

 

-इसके बाद मार्च 2010 में भी कुछ नई कंपनियों के गठन और शेयरों के हस्तांतरण का खेल चला।

 

-वर्ष 2012 में आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन समूह को 3250 करोड़ रुपए का कर्ज मंजूर किया।

 

-वर्ष 2016 में व्हिसलब्लोअर अरविंद गुप्ता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिख कर वीडियोकॉन समूह को कर्ज मंजूरी प्रक्रिया में अनियमितता की बात सामने रखी।

 

-वर्ष 2017 में वीडियोकॉन कंपनी के खाते को एनपीए घोषित कर दिया गया।

 

-मार्च 2018 में सोशल मीडिया पर एक पत्र जारी हुआ जिसमें आरोप लगाया गया था कि चंदा कोचर के पास भी नू पावर रिन्यूएबल कंपनी में हिस्सेदारी तब से थी जब वह 2008 में आईसीआईसीआई बैंक की संयुक्त प्रबंध निदेशक थीं।

 

-मार्च महीने में ही आईसीआईसीआई बैंक ने एक बयान जारी कर कहा कि उसकी प्रबंध निदेशक के खिलाफ लगाये जा रहे आरोप निराधार हैं और उनके खिलाफ दुष्प्रचार फैलाया जा रहा है। बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने चंदा कोचर के प्रति विश्वास व्यक्त किया।

 

-मार्च 2018 में एक प्रमुख समाचार-पत्र में प्रकाशित रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि कैसे वीडियोकॉन समूह को मंजूर किया गया कर्ज हितों के टकराव का गंभीर मामला है।

 

-अप्रैल महीने में सीबीआई ने वेणु गोपाल धूत, चंदा कोचर और दीपक कोचर के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया। सीबीआई ने इस मामले को अपने हाथ में लेते हुए चंदा कोचर के पति दीपक कोचर तथा वीडियोकॉन ग्रुप समेत कुछ अज्ञात लोगों के बीच हुए लेनदेन की शुरुआती जांच शुरू कर दी और साथ ही आयकर विभाग ने भी दीपक कोचर को नोटिस जारी करके कई प्रकार की जानकारियाँ मांगीं। इस मामले में सीबीआई ने चंदा कोचर के देवर राजीव कोचर से भी पूछताछ की। यही नहीं जब राजीव कोचर कथित रूप से देश छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे थे उसी समय आव्रजन विभाग ने उन्हें हवाई अड्डे से हिरासत में ले लिया। सीबीआई ने दीपक कोचर और वेणुगोपाल धूत का आमना-सामना भी कराया।

 

-मामले को गरमाता देख और रोजाना नये तथ्यों के सामने आने से 25 मई को सेबी ने ICICI बैंक और उसकी प्रबंध निदेशक चंदा कोचर को वीडियोकॉन कर्ज मामले में नोटिस जारी करके जवाब मांगा।

 

-मई 2018 को ICICI बैंक ने वीडियोकॉन समूह को कर्ज देने के मामले में चंदा कोचर की भूमिका की जांच करने का ऐलान किया और उन्हें लंबी छुट्टी पर भेज दिया गया। हालांकि पहले ICICI बैंक ने चंदा कोचर के प्रति पूर्ण समर्थन और विश्वास व्यक्त किया था लेकिन जैसे-जैसे इस मामले की परतें उतरती गयीं शायद बैंक के लिए चंदा कोचर का पक्ष लेना मुश्किल होता जा रहा था और इसीलिए उनसे निजात पा लिया गया।

 

बहरहाल, चंदा कोचर का देश के सबसे बड़े निजी बैंक के प्रमुख पद से इस तरह के आरोपों के चलते पद छोड़ना हमारे बैंकिंग तंत्र की उन खामियों को उजागर करता हैं जिसमें एक ही पद को इतना शक्तिशाली बना दिया जाता है कि अनियमितताओं का जब तक खुलासा होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। यह कर्ज का मामला हालांकि कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान का है इसलिए भाजपा कह सकती है कि हमारे कार्यकाल में कार्यवाही हुई। यहां कहीं ना कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन आरोपों की पुष्टि होती है जिसमें वह संप्रग सरकार के दौरान 'फोन बैंकिंग' के जरिये बड़े खेल होने का आरोप लगाते हैं। चंदा कोचर मामले में भी जो सत्य हो, उम्मीद की जानी चाहिए कि वह जल्द सामने आयेगा और जो लोग भी आम जनता के पैसे को डुबाने के आरोपी हैं उन्हें न्याय के कठघरे में लाया जायेगा। वैसे देखा जाये तो पिछले कुछ माह देश के टॉप बैंकरों के लिए अनुकूल नहीं रहे क्योंकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने शिखा शर्मा की एक्सिस बैंक और राणा कपूर की यस बैंक के प्रमुख पद पर कार्यकाल बढ़ाने से साफ इंकार कर दिया। और यदि आरबीआई ने इंकार किया है तो यकीनन इसके पीछे कुछ बड़े कारण रहे ही होंगे।

 

-नीरज कुमार दुबे

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