Holashtak Kahani: होलाष्टक के दिनों को क्यों माना जाता है अशुभ, होलिका और भक्त प्रह्लाद से जुड़ी है कहानी

By अनन्या मिश्रा | Mar 23, 2024

विष्णु पुराण और भागवत पुराण के मुताबिक राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्लाद भगवान श्रीहरि विष्णु का अनन्य भक्त था। वह रोजाना भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के साथ उनकी आराधना मग्न रहने थे। लेकिन हिरण्यकश्यप को बेटे प्रह्लाद की यह आदत पसंद नहीं थी और भगवान विष्णु की पूजा न करने की चेतावनी दी। लेकिन प्रह्लाद ने पिता की बात नहीं मानी, तो हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रह्लाद को प्रताड़ित करना शुरूकर दिया।


जिसके कारण प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप के बीच संबंध इतने खराब हो गए कि उसने अपने पुत्र को जान से मारने का फैसला कर लिया। बताया जाता है कि हिरण्यकश्यप ने फाल्गुन माह की अष्टमी से पूर्णिमा तक 8 दिनों तक प्रह्लाद को अलग-अलग तरीके से प्रताड़ित किया। वहीं आखिरी दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने का काम बहन होलिका को दिया।

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बता दें कि होलिका को जन्म से एक वरदान प्राप्त था कि उसको आग से कोई नुकसान नहीं होगा। भाई के आदेस पर होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर उसे मारने के लिए आग पर बैठ गई। लेकिन श्रीहरि विष्णु पर अटूट श्रद्धा और विश्वास के कारण प्रह्लाद पूरी तरह सुरक्षित बच गए और होलिका आग में जलकर मर गई। प्रह्लाद को यातना देने वाली और होलिका दहन से आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। इसी वजह से हिंदू धर्म में होलाष्टक के इन 8 दिनों को बेहद अशुभ माना जाता है।


होलाष्टक को अशुभ मानने की दूसरी कहानी

शिव पुराण की कथा के मुताबिक माता सती के अग्नि में प्रवेश किए जाने के बाद भगवान शंकर ने ध्यान समाधि में जाने का फैसला किया। फिर मां सती का मां पार्वती के रूप में जन्म हुआ। पुनर्जन्म के बाद माता पार्वती शिव को अपना पति मानती थीं और उन्हीं से विवाह करना चाहती थीं। लेकिन भगवान शिव मां पार्वती की भावनाओं को नजरअंदाज करते हुए समाधि में चले गए। जिसके बाद सभी देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव को विवाह के लिए प्रेरित करने का काम सौंपा


जिसके बाद भगवान शिव पर कामदेव ने कामबाण से प्रहार किया और भोलेनाथ का ध्यान भंग हो गया। ध्यान भंग होने पर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने फाल्गुन अष्टमी के दिन कामदेव पर अपनी तीसरी आंख खोल दी। जिस कारण कामदेव भस्म हो गए। वहीं कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना पर महादेव ने भगवान कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। लेकिन तभी से इस समय को होलाष्टक माना जाता है।


अशुभ होलाष्टक की ज्योतिषीय वजह

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक इस समय अक्सर सूर्य, चंद्रमा, बुध, बृहस्पति, शनि, मंगल, राहु औऱ शुक्र जैसे ग्रह परिवर्तन से गुजरते हैं। साथ ही इन ग्रहों के परिणामों की अनिश्चितता बनी रहती है। इस वजह से इस दौरान शुभ कार्यों को टाल देना अच्छा माना जाता है।


किसके लिए अच्छा होता है होलाष्टक

धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक होलाष्टक तांत्रिकों के लिए काफी अनुकूल माना जाता है। क्योंकि इस दौरान तांत्रिक अपनी साधना से अपने लक्ष्यों को बेहद आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। होलाष्टक की शुरूआत के साथ होली का पर्व शुरू होता है और फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन यानी की धुलेंडी पर यह समाप्त होता है।

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