जनरल मोटर्स, हार्ले डेविडसन और अब फोर्ड मोटर...क्यों भारत छोड़ रही हैं विदेशी ऑटोमोबाइल कंपनियाँ

By नीरज कुमार दुबे | Sep 10, 2021

विदेशी ऑटोमोबाइल कंपनियां भारत में आती तो बड़े जोरशोर से हैं लेकिन सही रणनीति नहीं होने के चलते उन्हें अपना कारोबार समेटना पड़ जाता है। जनरल मोटर्स और हार्ले डेविडसन के बाद इस सूची में नाम जुड़ गया है फोर्ड मोटर का। देखा जाये तो कोरोना से उपजे हालात और ऑटोमोबाइल सेक्टर में चल रही मंदी से अमेरिकी ऑटोमोबाइल कंपनी फोर्ड की कमर टूट गयी है और उसने भारत में अपने संयंत्रों पर ताला लगाने का फैसला किया है। बताया गया है कि दो अरब डॉलर का नुकसान झेलने से कंपनी की हालत पतली हो गयी है। हालांकि कंपनी के इस ऐलान से उन लोगों की चिंता बढ़ गयी है जिनके पास फोर्ड मोटर की गाड़ी है। लेकिन कंपनी ने ऐलान किया है कि जिन लोगों के पास फोर्ड की गाड़ी है उन्हें सर्विस पहले की तरह मिलती रहेगी।

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चिंता की लहर क्यों दौड़ी


लगभग तीन दशकों से भारतीय बाजार में मौजूद अमेरिका की प्रमुख वाहन कंपनी फोर्ड मोटर कंपनी ने जब कहा कि वह देश के अपने दो संयंत्रों में वाहन उत्पादन बंद कर देगी और केवल आयातित वाहनों को ही बेचेगी तो एक चिंता की लहर तो दौड़ी ही साथ ही भारत में निवेश को उत्सुक ऑटोमोबाइल कंपनियों को भी अपनी रणनीति पर पुनर्विचार पर मजबूर होना पड़ा। फोर्ड कंपनी ने अपने चेन्नई (तमिलनाडु) और साणंद (गुजरात) संयंत्रों में लगभग 2.5 अरब डॉलर का निवेश किया है, मगर भारत में कड़ी प्रतिस्पर्धा में वह टिक नहीं पाई और उसे विगत 10 वर्षों के दौरान करीब दो अरब डॉलर का नुकसान हुआ। अब कंपनी ने अपना कारोबार समेटने का जो फैसला किया है उससे करीब 4,000 कर्मचारी और ऐसे 150 डीलर प्रभावित होंगे जो करीब 300 बिक्री केन्द्रों का कामकाज संभालते हैं।


फोर्ड कंपनी का क्या कहना है?


फोर्ड कंपनी अपने साणंद संयंत्र से इंजन का निर्माण जारी रखेगी जिसे कंपनी के वैश्विक परिचालन के लिए निर्यात किया जाएगा। वाहन विनिर्माण परिचालन को बंद करने के साथ ही फोर्ड इन संयंत्रों से उत्पादित इकोस्पोर्ट, फिगो और एस्पायर जैसे वाहनों की बिक्री अब बंद कर देगी। फोर्ड मोटर कंपनी के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिम फ़ार्ले ने एक बयान में बताया है कि फोर्ड प्लस योजना के हिस्से के रूप में, हम दीर्घकालिक तौर पर टिकाऊ लाभदायक व्यवसाय करने के लिए कठिन लेकिन आवश्यक कार्रवाई कर रहे हैं और अपनी पूंजी को सही क्षेत्रों में बढ़ने और मूल्य सृजित करने के लिए आवंटित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि नए वाहनों की मांग पूर्वानुमान की तुलना में बहुत कमजोर रही है। कंपनी ने कहा है कि रोजगार गंवाने वाले कर्मचारियों को "एक समान और उचित पैकेज की पेशकश की जाएगी।" 


फोर्ड कंपनी की वर्तमान क्षमता क्या है?


हम आपको बता दें कि फोर्ड इंडिया के पास सालाना 6,10,000 इंजन और 4,40,000 वाहनों की स्थापित विनिर्माण क्षमता है। कंपनी ने फिगो, एस्पायर और इकोस्पोर्ट जैसे अपने मॉडलों को दुनिया भर के 70 से अधिक बाजारों में निर्यात किया है। इस साल जनवरी में फोर्ड मोटर कंपनी और महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अपने पूर्व में घोषित वाहन संयुक्त उद्यम को समाप्त करने और भारत में स्वतंत्र परिचालन जारी रखने का फैसला किया था। लेकिन अब फोर्ड ने स्वतंत्र परिचालन को भी बंद करने का ऐलान कर दिया है।


जनरल मोटर्स और हार्ले डेविडसन के बाद फोर्ड


देखा जाये तो जनरल मोटर्स के बाद भारत में कारखाना बंद करने वाली फोर्ड दूसरी अमेरिकी वाहन कंपनी है। वर्ष 2017 में जनरल मोटर्स ने घोषणा की थी कि वह भारत में वाहनों की बिक्री बंद कर देगी क्योंकि दो दशकों से अधिक समय तक संघर्ष करने के बाद भी उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। इसके साथ ही पिछले साल हार्ले डेविडसन ने भी भारत में बढ़ते घाटे को देखते हुए अपना कारोबार यहां से समेटने और सिर्फ विदेशी बाजारों पर ही फोकस रखने का निर्णय किया था।

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विदेशी ऑटोमोबाइल कंपनियों की यह हालत क्यों?


विदेशी ऑटोमोबाइल कंपनियों के बढ़ते घाटे का असल कारण देखा जाये तो यह है कि भारतीय बाजार पर कब्जा करने की रणनीति वह लंदन, वाशिंगटन या पेरिस आदि जैसे बड़े शहरों में बैठकर बनाते हैं जबकि भारतीय बाजार को समझने और उस पर छा जाने के लिए यहां मध्यवर्ग की नब्ज पकड़ने की जरूरत है। भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सा अपने नाम लंबे समय से रखने वाली मारुति सुजुकी इंडिया ने भारतीयों की जरूरत, उनकी पसंद और उनके बजट को सबसे अच्छे तरीके से समझा है और उनकी मांग पूरी की है। अगर किसी भी महीने की टॉप टेन गाड़ियों की बिक्री की सूची देखेंगे तो उसमें से छह या सात मारुति सुजुकी इंडिया की ही होती हैं। मारुति ने हाल ही में अपने वाहनों की कीमतों में इजाफे की घोषणा की है लेकिन देखियेगा इससे कोई नहीं पड़ेगा और उसकी बिक्री तेज होती रहेगी क्योंकि इस कंपनी पर मध्यम वर्ग का भरोसा कायम है। भारत में देखा जाये तो मारुति के साथ ही अन्य भारतीय कंपनियां टाटा मोटर्स और महिन्द्रा भी ग्राहकों के बीच तेजी से अपना आधार बढ़ा रही हैं और उनके नये प्रयोग भी सफल हो रहे हैं। बहरहाल, जहां तक फोर्ड के ऐलान की बात है तो इसका बड़ा नुकसान यह होगा कि ग्राहकों के मन में विदेशी कंपनियों की गाड़ियां खरीदने के प्रति हिचक बढ़ेगी क्योंकि उन्हें लगेगा कि अगर उस कंपनी ने अपना कारोबार समेटा तो सर्विस मिलना मुश्किल हो जायेगा और वाहन के कलपुर्जों को बदलवाना महंगा पड़ेगा।


-नीरज कुमार दुबे

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