J&K में चुनाव से पहले क्यों जरूरी है परिसीमन, इससे क्या कुछ बदल जाएगा ?

By अनुराग गुप्ता | Jun 28, 2021

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के विषय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 जून को प्रदेश के क्षेत्रीय दलों की बैठक बुलाई थी और इसी के साथ ही जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत हो गई है। लेकिन जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया के पूरा होने से पहले ही राजनीतिक दल इसका विरोध कर रहे हैं। ऐसे में हम को बता दें कि प्रदेश में परिसीमन के बाद क्या कुछ बदल जाएगा। 

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नरेंद्र मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 के प्रावधानों को समाप्त करते प्रदेश से राज्य का दर्ज वापस ले लिया था। जिसके बाद जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेश में बांट दिया गया। जिसके बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बन गए।

परिसीमन आयोग का हुआ गठन

मोदी सरकार ने परिसीमन अधिनियम 2002 की धारा 3 के तहत निहित शक्तियों से परिसीमन आयोग का गठन किया। जिसकी अध्यक्षता न्यायाधीश रंजना देसाई कर रहे हैं। इस आयोग को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून 2019 के प्रावधानों के तहत जम्मू-कश्मीर में लोकसभा और विधानसभा का परिसीमन का जिम्मा सौंपा गया। पुनर्गठन कानून लागू होने से पहले जम्मू कश्मीर की विधानसभा में 111 सीटें थीं, जिसमें से कश्मीर के खाते में 46, जम्मू के खाते में 37 और लद्दाख के खाते में 4 सीटें रहती थीं। इसके अलावा 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में पड़ती हैं। वर्तमान स्थिति में लद्दाख की 4 सीटें समाप्त हो गईं। जिसके बाद जम्मू कश्मीर की सीटें 111 से घटकर 107 रह गईं हैं।

माना जा रहा है कि परिसीमन आयोग जुलाई के आखिरी सप्ताह तक अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप सकती है। जिसके बाद विधानसभा चुनाव की तैयारियां की जाएंगी। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने सर्वदलीय बैठक में कहा था कि हमारी प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना है। परिसीमन तेज गति से होना है ताकि वहां चुनाव हो सकें और जम्मू-कश्मीर को एक निर्वाचित सरकार मिले जो जम्मू-कश्मीर के विकास को मजबूती दे। 

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7 सीटें बढ़ने की संभावना

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया के तहत 7 सीटें बढ़ने की संभावना जताई जा रही हैं। कहा जा रहा है कि ये 4 सीटें कश्मीर और 3 सीटें जम्मू के कोटे में जा सकती हैं और अगर ऐसा होता है तो कश्मीर की सीटें 50 और जम्मू की बढ़कर 40 हो जाएंगी। लेकिन परिसीमन आयोग इस तरह की अटकलों को खारिज कर रहा है। दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि बढ़ाई जाने वाली सभी 7 सीटें जम्मू के कोटे में जा सकती हैं। हालांकि कुछ भी स्पष्ट नहीं है।

कब हुआ था परिसीमन ?

आजाद भारत में जम्मू कश्मीर में 1963 और 1973 में विधानसभा सीटों का परिसीमन हुआ था। हालांकि प्रदेश में आखिरी बार 1995 में परिसीमन हुआ था। इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर प्रदेश में साल 2026 तक परिसीमन पर रोक लगा दी थी।

भाजपा को हो सकता है फायदा

अगर जम्मू को 7 सीटें मिल गईं तो भाजपा को फायदा हो सकता है। कहा जा रहा है कि घाटी में गुपकर दलों का अच्छा प्रभाव है लेकिन जम्मू में भाजपा की उपस्थिति की वजह से इनकी स्थिति काफी कमजोर है। हालांकि घाटी के दम पर ही गुपकर दल में शामिल पार्टियां सत्ता में आती थीं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भाजपा का मानना है कि जम्मू के पक्ष में अगर आंकड़ें जाते हैं तो जम्मू-कश्मीर में अकेले शासन करने का उनका रास्ता साफ हो सकता है।

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