PoK छोड़कर शहरी इलाकों में जा रहे आतंकवादी, समझिये आखिर क्यों आतंक के अड्डे अब भीड़भाड़ वाले इलाकों में बसा रहा है Pakistan?

By नीरज कुमार दुबे | Jul 19, 2025

पाकिस्तान एक बार फिर आतंकवाद के मोर्चे पर अपनी पुरानी नीति में बदलाव कर रहा है। अब तक आतंकवादी शिविर और लॉन्च पैड पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और सीमावर्ती इलाकों में हुआ करते थे, ताकि घुसपैठ को आसानी से अंजाम दिया जा सके। लेकिन हाल के महीनों में यह देखने को मिल रहा है कि इन शिविरों को पाकिस्तान ने धीरे-धीरे अपने घनी आबादी वाले पंजाब, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा के कस्बों और शहरों में शिफ्ट करना शुरू कर दिया है। इसके पीछे पाकिस्तान की एक सोची-समझी रणनीति है, जिसका असर खुद पाकिस्तान की सुरक्षा और स्थिरता पर भी गंभीर प्रभाव डालेगा।


खुफिया सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2024-2025 के दौरान पाकिस्तान ने लगभग 25 से 30 आतंकवादी शिविर और लॉन्च पैड जो पहले पीओके के नीलम घाटी, मुजफ्फराबाद, कोटली और रावलकोट जैसे इलाकों में सक्रिय थे, उन्हें अब लाहौर, गुजरांवाला, बहावलपुर, कराची, पेशावर जैसे बड़े शहरों के आसपास के इलाकों में 'डिस्पर्स्ड नेटवर्क' के रूप में फैला दिया है। रिपोर्टों के मुताबिक लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहिदीन और अल बद्र जैसे संगठनों के कैंप अब सीधे तौर पर पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के संरक्षण में शहरी बस्तियों के भीतर संचालित हो रहे हैं। इन्हें ‘मदरसों’, ‘धार्मिक केंद्रों’ और ‘सोशल वेलफेयर’ के नाम पर छिपाया जा रहा है।

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दरअसल एफएटीएफ और अमेरिका, यूरोपीय संघ जैसी संस्थाओं के दबाव के चलते पाकिस्तान अब आतंकवादी शिविरों को सीमावर्ती क्षेत्रों से हटाकर ऐसे इलाकों में ले जा रहा है जहां अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के लिए इनकी पहचान और उन पर कार्रवाई करना और भी मुश्किल हो जाए। इसके अलावा, पाकिस्तान अब यह प्रचार करेगा कि उसके शहरों में कोई आतंकी गतिविधि नहीं, ये सिर्फ मदरसे या सामाजिक संस्थान हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के लिए पाकिस्तान को आतंकवाद के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराना कठिन हो जाएगा। एफएटीएफ से राहत पाने की यह भी एक चाल है।


इसके अलावा, सीमावर्ती इलाकों में भारत और पश्चिमी देशों की सैटेलाइट व ड्रोन नजर आसानी से इन शिविरों का पता लगा लेती थी। अब भीड़भाड़ वाले इलाकों में इन्हें छिपाना आसान है क्योंकि इन्हें आम जनजीवन, धार्मिक संस्थाओं और स्कूल-कॉलेज के साथ मिला दिया गया है। इसके अलावा, शहरों के बीच इन कैंपों को रखने से किसी सैन्य कार्रवाई या एयरस्ट्राइक के खतरे में पाकिस्तान इन्हें मानवीय ढाल के तौर पर पेश कर सकता है। दरअसल 2019 की बालाकोट स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान समझ चुका है कि पीओके अब सुरक्षित नहीं रहा। इसके अलावा, लाहौर, पेशावर, कराची जैसे शहरों में पहले से मौजूद कट्टरपंथी तत्वों से नई भर्ती करना, फंड जुटाना और आतंक की विचारधारा फैलाना ज्यादा सहज हो गया है। साथ ही यह भी माना जा रहा है कि शहरों में छिपे नए प्रशिक्षित आतंकवादी अब ‘लोन वुल्फ अटैक’, ‘स्लीपर सेल’ और डिजिटल नेटवर्क के सहारे कश्मीर में हिंसा फैलाने की कोशिश करेंगे। बड़े शिविरों से सीधे भेजने की बजाय छोटे-छोटे समूहों के जरिए घुसपैठ होगी। यह खतरा ज्यादा लंबी अवधि का और खतरनाक हो सकता है। साथ ही इसके जरिये पाकिस्तान अफगानिस्तान और ईरान सीमा के आतंकवादी नेटवर्क को भी ‘शहरी रूप’ दे सकता है, जो पूरे क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ाएगा।


लेकिन पाकिस्तान जो कुछ कर रहा है उसमें उसके लिए भी बड़ा जोखिम है। दरअसल शहरी इलाकों में आतंकवाद का यह नेटवर्क भविष्य में पाकिस्तान के लिए ही बड़ा खतरा बनेगा। पाकिस्तानी सेना जिन समूहों को भारत या अफगानिस्तान के लिए पालती है, वही आतंकी गुट एक समय के बाद अपने एजेंडे के लिए पाकिस्तान के भीतर भी हमलों की नीति अपना सकते हैं। इससे देश के अंदरूनी हालात और अस्थिर होंगे।


जहां तक भारत के लिए चुनौती बढ़ने की बात है तो आपको बता दें कि अब आतंकियों के नेटवर्क को ट्रैक करना कठिन होगा। पीओके में भारत की खुफिया एजेंसियों के पास बेहतर स्रोत होते थे, लेकिन पाकिस्तान के गहरे शहरी इलाकों तक पहुंच हासिल करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण होगा। 


बहरहाल, पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी लॉन्च पैड और कैंपों को पीओके से हटा कर शहरी क्षेत्रों में छिपाना उसकी 'छद्म युद्ध नीति' का नया अध्याय है। इससे क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा कई गुना बढ़ गया है। भारत के लिए यह संकेत है कि उसे पारंपरिक सैन्य रणनीति के साथ-साथ साइबर खुफिया, डिजिटल निगरानी और वैश्विक कूटनीतिक दबाव के माध्यम से इस नए खतरे का मुकाबला करना होगा। पाकिस्तान भले इस चाल से अंतरराष्ट्रीय निगाहें भरमाना चाहे, लेकिन आतंक की सच्चाई को छिपाया नहीं जा सकता।

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