मुस्लिम विरोध...26/11 के बाद क्यों नहीं लिया एक्शन? ओबामा के सवाल पर हैरान कर देगा मनमोहन सिंह का जवाब

By अभिनय आकाश | Apr 11, 2025

"रात सा दिन हो गया फिर रात आई और काली 

लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा" 

एक क्रूर आतंकी हमला जिसने इस देश की सामूहिक चेतना को छलनी कर दिया। जिसने न जाने कितने निर्दोषों को उनके अपनों से छीन लिया। एक ऐसा जख्म जिसके घाव अब भी हरे हैं। 26/11 हमले की हम बात कर रहे हैं। इस बर्बता का एक साजिशकर्ता तहव्वुर राणा भारत के शिकंजे में आ गया है। कानून की देवी अब खुली आंखों से उसका इंतजार कर रही है और इंतजार कर रहे हैं इस हमले के पीड़ित इस उम्मीद के साथ कि न्याय तो अब होकर ही रहेगा। तहव्वुर के प्रत्यर्पण को मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा रही है। वहीं कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार के दौरान ही सभी जरूरी दस्तावेज दे दिए गए थे। 

तहव्वुर के प्रत्यर्पण पर कांग्रेस ने क्या कहा?

कांग्रेस ने कहा कि तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया मोदी सरकार ने न तो शुरू की थी और न ही उसने कोई नई सफलता पुर हासिल की। यूपीए के समय किए गए कूटनीतिक प्रयासों का लाभ हुआ है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस बात पर पर हुई जोर दिया कि यह प्रत्यर्पण डेढ़ दशक के कठिन कूटनीतिक, कानूनी और नीति खुफिया प्रयासों का नतीजा है। चिदंबरम ने कहा कि मुझे खुशी है कि 26/11 मुंबई आतंकी हमले के मुख्य आरोपियों में से एक तहव्वुप हुसैन राणा को भारत प्रत्यर्पित किया गया, लेकिन पूरी कहानी बताई जानी चाहिए।

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मुस्लिमों के नाराज होने के डर से नहीं लिया कोई एक्शन?

डेमेक्रेट नेता और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की किताब में एक बड़ा खुलासा किया गया था। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत के उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बातचीत में पूछा था कि मुंबई हमले के बाद आपने पाकिस्तान के खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं लिया? इस पर मनमोहन सिंह ने जो कहा वो सभी को हैरान कर देगा। मनमोहन सिंह ने इस बात पर भी चिंता जताई थी कि मुस्लिम-विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं। ओबामा ने अपनी किताब ए प्रॉमिस्ड लैंड में इस वाक्या का जिक्र करते हुए बताया था कि उन्हें (मनमोहन को) डर था कि देश में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के असर से मुस्लिम-विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं।'  वहीं, ओबामा ने यह भी कहा है कि राजनीतिक दलों के बीच कटु विवादों, विभिन्न सशस्त्र अलगाववादी आंदोलनों और भ्रष्टाचार घोटालों के बावजूद आधुनिक भारत की कहानी को कई मायनों में सफल कहा जा सकता है।

26/11 को कांग्रेस नेता ने बताया था आरएसएस की साजिश

हमारे देश-दुनिया में कई कहावतें हैं जैसे पीठ में छुरा घोंपना, विभीषण होना, जयचंद होना, मान सिंह होना और मीर जाफर होना। इन सारी कहावतों का जो व्यापकता में अर्थ निकल कर आता है उसमें यह बात साफ़ तौर पर निकल कर बाहर आती है कि इन्हें धोखेबाजी के पर्याय के तौर पर जाना जाता है। ऐसे ही लोगों की वजह से हम पहले मुगलों से हारे और ऐसे ही लोगों की वजह से हम अंग्रेजों के गुलाम बन गए। वर्तमान में भी हम अपने ही देश के कुछ ऐसे ही लोगों से दो-चार होते रहते हैं। साल 2008 में 26 नवंबर को मुंबई में जो आतंकी हमला हुआ था उसकी कलई तो पहले ही खुल चुकी थी। कांग्रेस ने इस हमले को लेकर पाकिस्तान को क्लीन चिट दे दी थी। उस समय दिग्विजय सिंह ने आरएसएस पर साजिश करने का आरोप लगाया था। उस वक्त एक मुस्लिम पत्रकार अजीज बर्नी ने एक किताब लिखी थी। जिस किताब का नाम था 26/11 आरएसएस की साजिश? खास बात ये कि इस किताब का विमोचन दिग्विजय सिंह ने किया था। हिन्दू आतंकवाद कांग्रेस का पसंदीदा टू लाइनर रहा है और दिग्विजय सिंह इसके चैंपियन रहे हैं। एटीएस प्रमुख शहीद हेमंत करकरे ने आपको याद ही होंगे। दिग्विजय सिंह ने उनके सहारे भी हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी प्लांट करने की नाकाम कोशिश की थी। नाकाम इसलिए कि करकरे की पत्नी ने दिग्विजय के बयान के बाद साफ कहा कि उनके पति की शहादत का मजाक नहीं बनाया जाए। कविता करकरे ने कहा, यह कहना गलत है कि मेरे पति को हिंदू संगठनों ने मारा है। वह आतंकी हमले में शहीद हुए हैं। बता दें कि दिग्विजय सिंह ने कहा था कि हेमंत करकरे ने मुंबई हमले से कुछ घंटे पहले मुझे फोन कर कहा था कि उन्हें हिंदू आतंकवादियों से खतरा है, सोची समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा लगता है।

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तहव्वुर को कैसे घसीट लाया भारत

राणा ऐसे ही नहीं लाया गया। डोनाल्ड ट्रंप ने वादा किया था और प्रधानमंत्री मोदी हर मीटिंग हर बार उसके प्रत्यर्पण की बात करते रहे। आखिरकार 26/11 मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा को भारत लाने में कामयावी मिल गई। राष्ट्रीय जांच एजेंसी की चार सदस्यीय टीम गुरुवार शाम अमेरिका से राणा को लेकर दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरी। सुरक्षा को देखते हुए राणा को T3 टर्मिनल की वजाय टेक्निकल एरिया से बाहर निकाला गया। उसे श्री लेयर सिक्यरिटी दी गई- NIA, CRPF कमांडो और दिल्ली पुलिस का घेरा। अमेरिका से स्पेशल फ्लाइट G-550 से लाए गए राणा को प्लेन में भी स्काई मार्शल की निगरानी में रखा गया। दिल्ली पहुंचते ही उसे गिरफ्तार कर मेडिकल जांच कराई गई। तिहाड़ जेल में छोटा राजन की तरह उसे अलग सेल में रखा जाएगा ताकि अन्य कैदियों से उसकी जान को कोई खतरा न हो। राणा को भारत लाने में विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, NSA अजित डोभाल और भारतीय एजेंसियों की अहम भूमिका रही। अमेरिका में सभी कानूनी विकल्प खत्म होने के वाद, 16 साल पुराने जख्मों को न्याय दिलाने की दिशा में यह वड़ा कदम माना जा रहा है। एनआईए के मुताविक राणा 26/11 मुंबई आतंकी हमले का मुख्य साजिशकर्ता में से एक है। वह डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाउद गिलानी का बचपन का दोस्त और पाकिस्तान के इशारे पर काम कर रहा था। लश्कर-ए-तैयवा (एलईटी) और हरकत-उल-जिहादी इस्लामी (हूजी) जैसे आतंकी संगठनों के साथ मिलकर उसने हमला रचा, जिसमें 166 लोग मारे गए। अमेरिका की कैलिफोर्निया कोर्ट ने 16 मई, 2023 को राणा के भारत प्रत्यर्पण का आदेश दिया। इसके वाद राणा ने कई अदालतों में अपील की, लेकिन सभी याचिकाए खारिज हो गईं। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी अर्जियां ठुकरा दीं। एनआईए ने अमेरिकी एजेंसिय और यूएस स्काई मार्शल की मदद से उसे भारत लाने की प्रक्रिया पूरी की।

पाताल से भी ढूंढकर लाएगा भारत

2019 में प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने स्पष्ट किया था कि अगर कोई भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा या किसी भी निर्दोष नागरिक पर हमला करेगा, तो भारत उसे पाताल से भी खोजकर न्याय के दरवाजे तक लाएगा। तहव्वुर राणा अब भारत की धरती पर लाया जा चुका है। आपको ट्रंप का वो बयान तो याद ही होगा। जब पीएम मोदी के साथ मुलाकात के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने कहा था कि मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि मेरे प्रशासन ने भारत में न्याय का सामना करने के लिए 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के साजिशकर्ताओं (तहव्वुर राणा) में से एक के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है. वह न्याय का सामना करने के लिए भारत वापस जा रहा है।

बहरहाल, राजनीति में सवाल तो आसानी से खड़े किए जाते हैं, लेकिन सवालों का जवाब कोई नहीं देना चाहता है। यूपीए सरकार ने अपने राज में हिन्दू आतंकवाद नामक शब्द गढ़ा था। इस शब्द ने भारत में बड़े-बड़े सवाल खड़े किए और इस शब्द के सहारे मूल और असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की भरपूर कोशिश भी हुई। एक नैरेटिव सेट करने की कोशिश हुई। कुछ वैसा ही जैसा कि पाकिस्तान भी भारत में सेट करना चाहता था। भारत के राजनेता चाहे-अनचाहे में पाकिस्तान के एजेंडे में उसे मदद कर रहे थे और ऐसी थ्योरी देकर उसे फायदा पहुंचा रहे थे।


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