By नीरज कुमार दुबे | Dec 12, 2025
हिंदी फिल्म धुरंधर को लेकर जो बवंडर उठा है, वह सिर्फ एक फिल्म का विवाद नहीं है बल्कि यह उस बदलती दुनिया की कहानी है जहाँ भारत का पक्ष मज़बूती से उभर रहा है और कुछ देशों को यह हक़ीक़त पच नहीं रही है। सबसे पहले एक बात साफ है कि धुरंधर कोई फैंटेसी नहीं है, यह एक रील रूप है उस हकीकत का, जिसे भारत ने ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाई के जरिए दुनिया के समक्ष रखा है। यही वजह है कि पाकिस्तान और उसके समर्थकों के दिल में यह फिल्म काँटे की तरह चुभ रही है।
लेकिन असली सवाल पाकिस्तान से भी बड़ा है। भारत के दोस्त कहे जाने वाले खाड़ी देश आखिर पाकिस्तान की राय से इतने प्रभावित क्यों हैं कि उन्होंने फिल्म को सीधे-सीधे बैन कर दिया? यह वही खाड़ी देश हैं जिनके साथ भारत आज रणनीतिक साझेदारी, ऊर्जा सहयोग, व्यापार और सुरक्षा रिश्ते मजबूत कर चुका है। फिर सिर्फ इसलिए कि एक फिल्म पाकिस्तान के इस्लामवादी ढांचे को बेनकाब करती है, वह भारत के पक्ष की बजाय पाकिस्तान के दबाव में क्यों झुक गए? क्या दोस्ती इतनी कमजोर थी? या यह डर कहीं गहरा बैठा है कि भारत का मजबूत नैरेटिव मुसलमानों के नाम पर राजनीति चलाने वाले देशों को असुविधा में डाल देता है?
खाड़ी देशों की यह स्थिति एक और सच्चाई उजागर करती है कि भारत जब अपने मन की कहानी कहने लगता है, तो दुनिया के कई शक्ति-केन्द्र असहज होने लगते हैं। चूंकि यह कहानी अब किसी पश्चिमी देश ने नहीं, बल्कि भारत ने लिखी है और वह भी बेबाकी के साथ इसलिए इसे 'संवेदनशील', 'विवादास्पद' और 'राजनीतिक' कहकर दबाने की कोशिश हो रही है। देखा जाये तो हॉलीवुड की फिल्में जब नाज़ियों पर चलती थीं या आतंकियों पर बनती थीं, तब किसी को समस्या नहीं थी। Inglourious Basterds या Zero Dark Thirty पर किसी खाड़ी देश ने बैन नहीं लगाया। लेकिन जैसे ही भारत उसी भाषा में अपना सच बोलता है तो कुछ देशों को मानो बुखार चढ़ जाता है।
असल बात यह है कि अगर रील में दिखाई गई भारत की शक्ति से ही इतनी घबराहट है, तो असली भारत का सामना करने का साहस कहाँ से आएगा? आज का भारत वह नहीं रहा जिसे डराया जा सके या जिसकी आवाज़ रोकी जा सके। यह नया भारत अपने सैनिक अभियान भी दिखाता है, आतंकवाद के खिलाफ अपनी नीति भी स्पष्ट रखता है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर किसी के लिहाज में झुकता नहीं। खाड़ी देशों को यह समझ लेना चाहिए कि इस भारत के साथ खड़ा होना फायदे का सौदा है और पाकिस्तान जैसे असफल, कट्टरतावादी ढाँचे को खुश करने के लिए भारत से दूरी बनाना भविष्य में उन्हें और महंगा पड़ेगा।
फिल्म धुरंधर को लेकर जो हंगामा हो रहा है, वह यह साबित करता है कि पाकिस्तान का नैरेटिव अब कमजोर हो रहा है और भारत का नैरेटिव ताकत पकड़ रहा है। वह देश जो पाकिस्तान के पारंपरिक प्रभाव में थे, वह इस बदलाव को देखकर घबराए हुए हैं। लेकिन घबराहट से ज्यादा यह उनकी कमजोरी दिखाती है क्योंकि सच्चाई से डरने वाले ही आवाज़ों को दबाते हैं।
दूसरी ओर, भारत को इस बहिष्कार से विचलित होने की जरूरत नहीं है। बल्कि यह तो संकेत है कि भारत की सांस्कृतिक और रणनीतिक ताकत सीधे सही जगह चोट कर रही है। अगर सिर्फ एक फिल्म से इतनी बेचैनी है, तो भारत के वास्तविक संकल्प और शक्ति का असर कितना गहरा होगा, यह दुनिया अच्छी तरह समझ चुकी है। इसलिए, पाकिस्तान और उसके प्रभाव में चलने वाले देशों को एक सलाह है कि डरते रहिए। क्योंकि नए भारत की राह में अब न आपका नैरेटिव चलेगा, न आपकी शर्तें। अब भारत अपनी कहानी खुद लिखता है और पूरी दुनिया उसे सुनने को मजबूर है।
-नीरज कुमार दुबे