By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Oct 13, 2022
उन्होंने कहा, ‘‘स्कूलों में यूनिफॉर्म का मतलब है छात्रों के बीच एक समान भाव को बढ़ावा देना। मेरा मानना है कि बुर्का या हिजाब जैसे मुद्दों की आड़ में अलगाववाद को बढ़ावा दिया जाता है। भारत के बंटवारे के पीछे भी यही मानसिकता थी। यह अलगाववाद उत्तरोत्तर अतिवाद में तब्दील हो जाता है, जोआतंकवाद का स्रोत हो सकता है।’’ भाजपा महासचिव ने कहा कि कर्नाटक में 1965 से ही स्कूलों में यूनिफॉर्म पहनने के नियम लागू हैं। ईरान में हिजाब के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों का उल्लेख करते हुए रवि ने दावा किया कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ ‘‘अलगाववादी’’ संरचना को बढ़ावा देना कतई नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि मामला स्कूलों में हिजाब पहनने या ना पहनने का नहीं है बल्कि क्या पहनना है ये है। इसलिए स्कूलों में यूनिफॉर्म ही होने चाहिए ना कि हिजाब या कोई अन्य पोशाक। न्यायालय ने इस मामले को प्रधान न्यायाधीश के पास भेज दिया ताकि एक वृहद पीठ का गठन किया जा सके। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाएं खारिज कर दीं, जबकि न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने उन्हें स्वीकार किया और कहा कि यह अंतत: ‘‘पसंद का मामला’’ है।
उच्च न्यायालय ने प्रतिबंध हटाने से इनकार करते हुए कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम में ‘‘अनिवार्य धार्मिक प्रथा’’ का हिस्सा नहीं है। पीठ की अगुवाई कर रहे न्यायमूर्ति गुप्ता ने 26 याचिकाओं के समूह पर फैसला सुनाते हुए शुरुआत में कहा, ‘‘इस मामले में अलग-अलग मत हैं।’’ उन्होंने कहा कि उन्होंने इस फैसले में 11 प्रश्न तैयार किए हैं और उनके जवाब याचिकाकर्ताओं के खिलाफ हैं। इस सूची में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और अनिवार्य धार्मिक प्रथाओं के अधिकार के दायरे और गुंजाइश संबंधी प्रश्न शामिल हैं। पीठ ने खंडित फैसले के मद्देनजर निर्देश दिया कि उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली इन याचिकाओं को एक उचित वृहद पीठ के गठन के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए। न्यायमूर्ति धूलिया ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ‘‘गलत रास्ता’’ अपनाया।