By नीरज कुमार दुबे | Sep 19, 2025
जनवरी 2023 में अमेरिकी शॉर्ट-सेलर कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने भारतीय उद्योग जगत के सबसे बड़े नामों में शुमार अडाणी समूह पर गंभीर आरोप लगाए। आरोपों का स्वरूप इतना सनसनीखेज था कि देखते ही देखते शेयर बाज़ार में भूचाल आ गया। करोड़ों निवेशकों की मेहनत की कमाई रातों-रात डूब गई और भारत की वैश्विक आर्थिक साख पर प्रश्नचिह्न लगाने की कोशिश हुई। यह केवल एक कॉर्पोरेट विवाद नहीं था, बल्कि भारत की औद्योगिक प्रगति को बदनाम करने की सुनियोजित साजिश थी।
हम आपको याद दिला दें कि हिंडनबर्ग ने अपने तथाकथित रिसर्च रिपोर्ट में अडाणी समूह पर स्टॉक मैनिपुलेशन और फर्जी अकाउंटिंग के आरोप लगाए। रिपोर्ट ऐसे समय में जारी की गई जब अडाणी एंटरप्राइजेज अपना 20,000 करोड़ रुपये का मेगा पब्लिक ऑफर लाने जा रही थी। इसका सीधा असर यह हुआ कि निवेशकों का विश्वास हिल गया और शेयरों में भारी गिरावट दर्ज हुई। चिंता की बात यह थी कि भारत के कुछ विपक्षी दलों ने भी इस रिपोर्ट को सच मानकर इतना दुष्प्रचार किया मानो पूरा अडाणी समूह भ्रष्टाचार और घोटालों का अड्डा हो। संसद से लेकर सड़क तक इस रिपोर्ट को हथियार बनाकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश हुई। इस राजनीतिकरण ने विदेशी निवेशकों में भी भ्रम फैलाया और भारत के कॉर्पोरेट जगत की विश्वसनीयता पर आघात पहुँचा।
लेकिन लगभग दो साल की लंबी और गहन जाँच के बाद भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने साफ कह दिया है कि अडाणी समूह के खिलाफ लगाए गए आरोप निराधार और आधारहीन थे। जाँच में पाया गया कि जिन वित्तीय लेन-देन को हिंडनबर्ग ने “फर्जी” बताया, वे सब कानूनी रूप से वैध ऋण और पुनर्भुगतान थे। न तो धन का गबन हुआ, न ही किसी अवैध पार्टी को फायदा पहुँचाया गया। यहाँ तक कि जाँच के दौरान लिए गए सभी ऋण ब्याज समेत वापस किए गए। SEBI ने अपने आदेश में यह भी कहा कि इन लेन-देन को “रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शन” या “फर्जीवाड़ा” नहीं कहा जा सकता। यानी, आरोपों का कोई कानूनी या आर्थिक आधार ही नहीं था।
देखा जाये तो हिंडनबर्ग रिपोर्ट के चलते जो हुआ, वह किसी भी देश के उद्योग जगत के लिए चेतावनी है। अडाणी समूह के शेयरों में अचानक भारी गिरावट आई। छोटे-बड़े करोड़ों निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ा। यह नुकसान केवल अडाणी का नहीं था, बल्कि भारत के वित्तीय बाजार और निवेश माहौल का भी था। गौतम अडाणी ने स्वयं कहा कि इस विवाद से उन्हें सबसे अधिक दुख इस बात का है कि आम निवेशकों को भारी नुकसान झेलना पड़ा। यह कथन उनकी व्यक्तिगत पीड़ा को दर्शाता है और यह भी बताता है कि एक सुनियोजित झूठ कितनी बड़ी आर्थिक तबाही ला सकता है।
देखा जाये तो हिंडनबर्ग की यह रिपोर्ट मात्र एक रिसर्च डॉक्युमेंट नहीं थी। यह स्पष्ट था कि इसके पीछे राजनीतिक और आर्थिक स्वार्थ छिपे हुए थे। एक तरफ अमेरिकी और पश्चिमी ताकतें भारत की तेज़ आर्थिक वृद्धि और उसके वैश्विक प्रभाव से चिंतित थीं, दूसरी तरफ कुछ घरेलू राजनीतिक दलों ने इसे अपने लाभ के लिए हथियार बना लिया। इस साजिश का परिणाम यह हुआ कि भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने की कोशिश हुई। विदेशी मीडिया ने भी इस विवाद को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया। परंतु समय ने साबित कर दिया कि यह सब केवल भारत की औद्योगिक क्षमता को चोट पहुँचाने का प्रयास था।
अब जबकि सेबी की रिपोर्ट ने सभी आरोपों को झूठा सिद्ध कर दिया है, तो सबसे पहला कर्तव्य हिंडनबर्ग और उनके समर्थकों का बनता है कि वे भारत और निवेशकों से माफी मांगें। इसके साथ ही, भारत के विपक्षी दलों को भी आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या केवल राजनीतिक विरोध के लिए वे ऐसी अंतरराष्ट्रीय साजिशों का हिस्सा बन सकते हैं? लोकतंत्र में असहमति और आलोचना जरूरी है, लेकिन जब बात राष्ट्रहित और निवेशकों के विश्वास की हो, तो विपक्ष को भी जिम्मेदारी दिखानी चाहिए।
हिंडनबर्ग रिसर्च तो अपनी कंपनी बंद कर चुका है, लेकिन उसकी अप्रमाणित रिपोर्ट के आधार पर देश की संसद का पूरा सत्र ठप करने वाले विपक्षी दल आज भी सक्रिय हैं। उस समय जिस तरह से उन्होंने निराधार आरोपों को हवा दी, विदेशी एजेंडे को ताक़त दी और करोड़ों निवेशकों के भरोसे को चोट पहुँचाई, वह केवल राजनीतिक अवसरवाद नहीं बल्कि राष्ट्रीय हितों के साथ खिलवाड़ था। आज जबकि सच सामने आ चुका है और नियामक संस्था ने सभी आरोपों को खारिज कर दिया है, विपक्षी दलों को कम से कम देश और जनता से माफी माँगनी चाहिए।
बहरहाल, हिंडनबर्ग प्रकरण ने हमें यह सिखाया है कि किसी विदेशी रिपोर्ट या आरोप को आँख मूँदकर सच नहीं मान लेना चाहिए। इस मामले ने करोड़ों निवेशकों को झकझोरा, अडाणी समूह की छवि को धक्का पहुँचाया और भारत की साख को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनौती दी। परंतु अंततः सच्चाई सामने आई और स्पष्ट हुआ कि यह सब एक रचा-बसा षड्यंत्र था। अब समय आ गया है कि न केवल हिंडनबर्ग, बल्कि इस साजिश में शामिल राजनीतिक ताकतें भी देश और निवेशकों से सार्वजनिक रूप से माफी माँगें। क्योंकि भारत की औद्योगिक प्रगति किसी एक कंपनी की नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की आर्थिक शक्ति का प्रतीक है। और उस पर चोट करना सीधे-सीधे राष्ट्रहित पर चोट करना है।
-नीरज कुमार दुबे