हार के भी जीतने वाले को येदियुरप्पा कहते हैं, चौथी बार संभाली कर्नाटक की कमान

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 26, 2019

बेंगलुरू। सरकारी लिपिक की नौकरी करने और फिर हार्डवेयर की दुकान चलाने के बाद राजनीति में लंबी छलांग लगाने वाले कर्नाटक के नये मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने अपने राजनीतिक जीवन में काफी उतार- चढ़ाव देखे हैं। येदियुरप्पा के चेहरे पर 14 महीने के बाद फिर से मुस्कान लौटी है। तब वह राज्य विधानसभा में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए थे। 76 वर्षीय लिंगायत नेता के लिए सत्ता के गलियारे तक पहुंचना आसान नहीं था और इस बार भी उन्हें मुख्यमंत्री बनने से पहले कानूनी लड़ाइयां लड़नी पड़ीं और हफ्तों तक राजनीतिक ड्रामा चलता रहा। सत्ता के नजदीक पहुंचकर भी मुख्यमंत्री पद से दूर रह गए येदियुरप्पा एच डी कुमारस्वामी से अपनी कुर्सी वापस पाने के लिए प्रतिबद्ध थे। कुमारस्वामी की पार्टी जद (एस) ने चुनाव के बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन कर तीन दिन पुरानी भाजपा की सरकार को 19 मई 2018 को उखाड़ फेंका था। भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद सरकार बनाने का दावा करने वाले येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था क्योंकि वह बहुमत के आवश्यक आंकड़े नहीं जुटा पाए थे। येदियुरप्पा के इस बार के सत्ता संघर्ष का एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि इसे उनके अंतिम अवसर के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि भाजपा ने 75 वर्ष से अधिक के अपने नेताओं के लिए चुनावी राजनीति से सेवानिवृत्ति की नीति बना रखी है। आरएसएस के प्रखर स्वयंसेवक 76 वर्षीय बुकानाकेरे सिद्धलिंगप्पा येदियुरप्पा महज 15 वर्ष की उम्र में हिंदू संगठन से जुड़े थे और शिवमोगा जिले के अपने गृहनगर शिकारीपुरा में जनसंघ के साथ जुड़कर उन्होंने राजनीति सीखी। वह 1970 के दशक की शुरुआत में जनसंघ के शिकारीपुरा तालुक के प्रमुख बने। 

 

येदियुरप्पा ने अपने चुनावी राजनीति की शुरुआत शिकारीपुरा में पुरासभा अध्यक्ष के रूप में की और 1983 में पहली बार शिकारीपुरा से विधानसभा के लिए चुने गए और वहां से आठ बार विधायक बने। पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष के साथ ही वह विधानसभा में विपक्ष के नेता, विधान परिषद् के सदस्य और सांसद भी बने। कला में स्नातक की डिग्री रखने वाले येदियुरप्पा आपातकाल के समय जेल में बंद रहे, समाज कल्याण विभाग में लिपिक की नौकरी की और अपने गृह नगर शिकारीपुरा के चावल मिल में भी लिपिक के पद पर काम किया। इसके बाद उन्होंने शिवमोगा में अपनी हार्डवेयर की दुकान खोल ली। उन्होंने जिस चावल मिल में काम किया उसके मालिक की बेटी मैतरादेवी से पांच मार्च 1967 को शादी की और उनके दो बेटे तथा तीन बेटियां हैं। येदियुरप्पा 2004 में ही राज्य के मुख्यमंत्री बनते जब भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी लेकिन कांग्रेस और जद (एस) ने गठबंधन कर लिया और धरम सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। राजनीतिक बाजीगरी के लिए जाने जाने वाले येदियुरप्पा ने तब देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी के साथ 2006 में हाथ मिला लिया और खनन घोटाले में धरम सिंह को कथित तौर पर लोकायुक्त द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद उनकी सरकार गिरा दी। बारी- बारी से मुख्यमंत्री पद की व्यवस्था बनने के बाद कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने और येदियुरप्पा उपमुख्यमंत्री। येदियुरप्पा नवम्बर 2007 में पहली बार मुख्यमंत्री बने लेकिन कुमारस्वामी द्वारा सत्ता बंटवारे का समझौता खत्म किए जाने के कारण सात दिन में ही उनकी सरकार गिर गई।

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वह भाजपा के बहुमत से जीत हासिल करने के बाद मई 2008 में एक बार फिर मुख्यमंत्री बने लेकिन तत्कालीन लोकायुक्त एन. संतोष हेगड़े द्वारा एक अवैध खनन मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद जुलाई 2011 में उन्हें पद छोड़ना पड़ा था। 2008 के चुनावों में येदियुरप्पा ने पार्टी को जीत दिलाई और दक्षिण में पहली बार उनके नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। सत्ता में आने के बाद येदियुरप्पा जल्द ही विवादों में घिर गए जब उन पर बेंगलुरू में अपेन बेटों को भूमि आवंटित करने के आरोप लगे और एक अवैध खनन मामले में लोकायुक्त द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद 31 जुलाई 2011 को वह इस्तीफा देने के लिए बाध्य हुए। उसी वर्ष 15 अक्टूबर को उन्होंने लोकायुक्त की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया और एक हफ्ते के लिए जेल भेज दिए गए। पद छोड़ने के लिए बाध्य किए जाने से नाराज येदियुरप्पा ने भगवा पार्टी के साथ दशकों पुराना अपना संबंध समाप्त कर लिया और कर्नाटक जनता पक्ष के नाम से अपनी पार्टी बना ली। केजेपी राज्य में राजनीतिक ताकत बनने में विफल रही और भाजपा को भी राज्य में एक ताकतवर नेता की तलाश थी जिसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले वह भगवा दल में लौट आए।

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