विकास के दौर में नासूर बनती बाल विवाह जैसी कुप्रथा

child marriage
Creative Commons licenses

देश में बाल विवाह के 50 प्रतिशत से अधिक मामले केवल 5 राज्यों से संबंधित हैं जिनमें उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है। शेष चार राज्यों में बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शामिल हैं। वर्तमान में भारत में बाल विवाह के लगभग 22 प्रतिशत मामले हैं जो कि लगातार कम हो रहे हैं।

हमारे देश में प्राचीन समय से कुछ ऐसी प्रथाएं चली आ रही है। जिसका लोगों के दैनिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जिनमें बाल विवाह भी एक हैं। किसी भी बच्चे की शादी उसके निश्चित आयु से पहले यानी बाल्यकाल में होना बाल विवाह कहलाता है। यह एक रूढ़िवादी प्रथा है। यह प्रथा बच्चों की सारे मनवा अधिकारों को खत्म कर देता है। जैसे- खेलकूद, मनोरंजन, शिक्षा आदि के अधिकारों को समाप्त कर उन्हें ऐसे बंधन में बांध दिया जाता है, जिसके बारे में उन्हें बिल्कुल भी ज्ञान नहीं होता है। प्राचीन सभी प्रथाओं में बाल विवाह सबसे बड़ा कुप्रथा है। क्योंकि कम उम्र में बच्चों की शादी कर देने से उनके स्वास्थ्य, शारीरिक और मानसिक विकास के साथ-साथ उनके खुशहाल जीवन पर असर पड़ता है। साथ ही वह अपने शिक्षा और खेलकूद के अधिकारों आदि से वंचित रह जाते हैं। इस कुप्रथा का शिकार ज्यादातर कम उम्र की लड़कियां होती है। बाल्यकाल में विवाह होने से बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास नहीं हो पाता है।

विकास के दौर में बाल विवाह एक नासूर के समान है। देश में हर व्यक्ति को शिक्षित करने की मुहिम चल रही है। हर व्यक्ति को उत्तम स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में बाल विवाह होना समाज के माथे पर एक कलंक के समान है। देश में अक्षय तृतीया (आखा तीज) पर हर वर्ष हजारों की संख्या में बाल विवाह किए जाते हैं। तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अन्त नही हो पा रहा है। भारत में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान के शुरू होने के बावजूद एक नाबालिग बेटी की जबर्दस्ती शादी करा दी जा रही है। बाल विवाह मनुष्य जाति के लिए एक अभिशाप है। यह जीवन का एक कड़वा सच है कि आज भी छोटे-छोटे बच्चे इस प्रथा की भेंट चढ़े जा रहे हैं।

इसे भी पढ़ें: Rajasthan Child Marriage: बाल विवाह रोकने के लिए हाई कोर्ट ने सुनाया गजब का आदेश, पंच-सरपंच होंगे जिम्मेदार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर जगह बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देते हैं। देश के सभी प्रदेशों में बेटियां शिक्षित हो रही है। ऐसे में समाज को आगे आकर कम उम्र में लड़कियों के होने वाले बाल विवाह रुकवाने के प्रयास करने होंगे। आजकल कई लड़कियां खुद भी आगे आकर अपना बाल विवाह रुकवाने का प्रयास करने लगी है। भारत में यह प्रथा लम्बे समय से चली आ रही है जिसके तहत छोटे बच्चों का विवाह कर दिया जाता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि आज के पढ़े लिखे समाज में भी यह प्रथा अपना स्थान बनाए हुए है। जो बच्चे अभी खुद को भी अच्छे से नहीं समझते। जिन्हें जिन्दगी की कड़वी सच्चाईयों का कोई ज्ञान नहीं। जिनकी उम्र अभी पढने लिखने की होती है। उन्हे बाल विवाह के बंधन में बांधकर क्यों उनका जीवन बर्बाद कर दिया जाता है।

देश में बाल विवाह के 50 प्रतिशत से अधिक मामले केवल 5 राज्यों से संबंधित हैं जिनमें उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है। शेष चार राज्यों में बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शामिल हैं। वर्तमान में भारत में बाल विवाह के लगभग 22 प्रतिशत मामले हैं जो कि लगातार कम हो रहे हैं। इसके प्रमुख कारणों में महिलाओं में साक्षरता और जागरूकता का बढ़ना, शिक्षा के प्रसार के कारण लड़कियों के प्रति अभिभावकों की सोच में परिवर्तन आना, शहरीकरण में वृद्धि तथा कठोर कानूनों की उपस्थिति को माना जा सकता है। 

भारत में बाल विवाह में गिरावट आई है। लेकिन देश में पांच लड़कियों में से एक और छह लड़कों में से एक की अभी भी बचपन में शादी कर दी जाती है। हाल के वर्षों में यह प्रथा कुछ राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में अधिक प्रचलित हो गई है। दिसंबर 2023 में द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार यह अनुमान लगाने वाले पहले अध्ययनों में से एक है कि राज्य व केंद्र शासित प्रदेश स्तर पर समय के साथ लड़की और लड़के के बाल विवाह की दर में क बदलाव आया है। अध्ययन में पाया गया कि 1993 से 2021 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर बाल विवाह में गिरावट आई है। बालिका बाल विवाह का प्रचलन 1993 में 49 प्रतिशत से घटकर 2021 में 22 प्रतिशत हो गया। जबकि बालक बाल विवाह 2006 में 7 प्रतिशत से घटकर 2021 में 2 प्रतिशत हो गया। बाल विवाह के प्रचलन में सबसे बड़ी कमी 2006 और 2016 के बीच हुई। सबसे कम कमी 2016 से 2021 के बीच हुई। इन बाद के वर्षों के दौरान छह राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में बालिका विवाह में वृद्धि देखी गई।

आंकड़ों से साफ है कि आजादी के 77 साल बाद भी इस देश में महिलाओं की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं आया है। हम अपनी बेटियों को बाल विवाह और कम उम्र की गर्भावस्था से नहीं बचा पाए हैं। यही कारण है कि इस देश में 50 फीसदी से ज्यादा महिलाएं और बच्चे एनीमिया (रक्ताल्पता) के शिकार हैं। यूनिसेफ द्धारा जारी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत के कई क्षेत्रों में अब भी बाल विवाह हो रहा है। इसमें कहा गया है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत में बाल विवाह की दर में कमी आई है। लेकिन कई प्रदेशों में यह प्रथा अब भी जारी है। रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह की यह कुप्रथा आदिवासी समुदायों सहित कुछ विशेष जातियों के बीच प्रचलित है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बालिका शिक्षा की दर में सुधार, किशोरियों के कल्याण के लिये सरकार द्वारा किये गए निवेश व कल्याणकारी कार्यक्रम और इस कुप्रथा के खिलाफ सार्वजनिक रूप से प्रभावी संदेश देने जैसे कदमों के चलते बाल विवाह की दर में कमी देखने को मिली है। यूनिसेफ के अनुसार अन्य सभी राज्यों में बाल विवाह की दर में गिरावट लाए जाने की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। किंतु कुछ जिलों में बाल विवाह का प्रचलन अब भी उच्च स्तर पर बना हुआ है।

यह रिपोर्ट हमारे सामाजिक जीवन के उस स्याह पहलू कि ओर इशारा करती हैं। जिसे अक्सर हम रीति-रिवाज व परम्परा के नाम पर अनदेखा करते हैं। देश में बाल विवाह के खिलाफ कानून बने हैं और समय-समय पर उसमें संशोधन कर उसे ओर प्रभावशाली बनाया गया हैं। फिर भी लगातार बाल विवाह हो रहे हैं। भारत में बाल विवाह पर रोक संबंधी कानून सर्वप्रथम सन् 1929 में पारित किया गया था। बाद में सन् 1949, 1978 और 2006 में इसमें संशोधन किये गए। बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत बाल विवाह कराने पर 2 साल की जेल व एक लाख रुपए का दंड निर्धारित किया है।

अगर सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अन्त नही हो पा रहा है। तो इस असफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण है इसके प्रति सामाजिक जागरुकता की कमी। जब तक समाज में बाल विवाह रोकने के प्रति जागरूकता नहीं आएगी तब तक यह कुरीति खत्म नही होने वाली है। बाल विवाह एक सामाजिक समस्या है। सिर्फ कानून के भरोसे बाल विवाह जैसी कुप्रथा को नहीं रोका जा सकता है। देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा को जड़ से खत्म करना है तो इसके लिए समाज को ही आगे आना होगा तथा बालिकाओं के पोषण, स्वास्थ्य, सुरक्षा और शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करना होगा।

समाज में शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। अभिभावकों को बाल विवाह के दुष्परिणामों के प्रति जागरुक करना होगा। सरकार को भी बाल विवाह की रोकथाम के लिये बने कानून का कड़ाई से पालन करवाना होगा। बाल विवाह प्रथा के खिलाफ समाज में जोरदार अभियान चलाना होगा। साथ ही सरकार को विभिन्न रोजगार के कार्यक्रम भी चलाने होंगे ताकि गरीब परिवार गरीब परिवारों की बच्चियां बाल विवाह का निशाना न बन पाएं।

रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़