एंबेसडर: कहानी उस कार की जिसे किंग ऑफ इंडियन रोड कहा जाता था

By अंकित सिंह | Mar 12, 2022

समय के साथ दुनिया ने कई बदलाव देखे। भारत में भी कई बदलाव हुए। वाहनों की दुनिया में कई कारों ने अपनी अलग स्थान बनाई है। आज बाजार में एक से एक नई और बेहतरीन कार मौजूद हैं। लेकिन एक वक्त था जब आम हो या फिर खास, सभी को एक कार काफी आकर्षित करती थी। वह कार थी एंबेसडर। उस कार में एक छोटी सी दुकान चलाने वाला व्यापारी भी बैठता था और वही कार देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की सवारी भी हुआ करती थी। हालांकि अब यह कार बाजार में उपलब्ध नहीं है। हिंदुस्तान मोटर्स ने 2014 में इस कार के प्रोडक्शन को बंद कर दिया। जबकि 2017 में सीए बिरला ग्रुप ने एंबेसडर ब्रांड को फ्रांस की एक कंपनी से बेच दिया। इसका मतलब साफ है कि अब यह कार वापस मार्केट में नहीं आएगी।

 

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एक वक्त था जब एंबेसडर की लोकप्रियता अपने चरम पर थी। सफेद रंग की कार जहां सड़कों पर खूब दिखती थी तो वहीं काले रंग की कार सेना के अधिकारियों के पास होती थी। टैक्सी में भी एंबेसडर कारों का बोलबाला था। जबकि इसी एंबेसडर गाड़ी पर लाल बत्ती, पीली बत्ती भी चमचमाती थी। इंदिरा गांधी से लेकर इंद्र कुमार गुजराल तक और पीवी नरसिम्हा राव से लेकर अटल बिहारी वाजपेई तक सभी दिग्गज प्रधानमंत्रियों ने इसी कार को अपना सवारी बनाया।

 

एंबेसडर कार की कहानी

एंबेसडर कार की कहानी 1958 में शुरू होती है। 60 और 70 के दशक में इसने बाजार में अपना दबदबा बना लिया। बताया जाता है कि एंबेसडर कार ब्रिटेन के मॉरिस ऑक्सफोर्ड सीरीज 3 कार से प्रभावित थी। यानि कि इसी कार के तर्ज पर एंबेसडर का निर्माण किया गया था। आज मेक इन इंडिया की बात होती है। लेकिन उस वक्त एंबेसडर पहली ऐसी कार थी जिसका निर्माण भारत में किया गया था। एंबेसडर कार शानो-शौकत की पहचान हुआ करती थी। समय के साथ इस गाड़ी में बदलाव भी होते गए और यह आम लोगों में अपनी पकड़ भी बनाती गई। इसे किंग ऑफ इंडियन रोड भी कहा जाने लगा। इस कार्य के भी कई वैरीअंट और वर्जन आए। इनमें मार्क 1, मार्क 2, मार्क 3, मार्क 4, एंबेसेडर नोवा, एंबेसेडर 1800 आईएसजेड प्रमुख हैं। क्लासिक (1992 से 2011), ग्रैंड (2003 से 2013), एविगो (2004 से 2007) और इनकॉर (2013 से 2014) इसके लेटेस्ट वर्जन थे। 

 

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60 और 70 के दशक में एंबेसडर की बिक्री अपने चरम पर थी। हालांकि 80 के दशक में इसका रुतबा कम होने लगा। बाजार में मारुति की सबसे छोटी गाड़ी मारुति-800 आ चुकी थी। मारुति-800 के आने के बाद से भारतीय कार बाजार का गणित ही बदल गया। सस्ती कीमत पर मारुति-800 बाजार में उपलब्ध हो जाती थी जबकि एंबेस्डर थोड़ी महंगी थी। यही कारण रहा कि एंबेसडर का रुतबा धीरे-धीरे कम होता चला गया। 90 के दशक में कई और विदेशी कंपनियों ने भारत में अपने कार बाजार की शुरुआत कर दी और लोगों के पास विकल्प काफी हो गए। कभी साल में 25000 तक बिकने वाली एंबेसडर कार 2013-14 में महज 2500 ही बिक पाई जिसके बाद इसकी मैन्युफैक्चरिंग को बंद कर दिया गया।


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