By अभिनय आकाश | Jul 18, 2025
अमेरिका द्वारा द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित किए जाने के बाद पाकिस्तान इसका नाम बदलकर कश्मीर में फिर से छद्म युद्ध को हवा देगा। सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय जाँच से बचने के लिए नाम बदलो और काम वही जारी रखो की अपनी पुरानी नीति को दोहराने वाला है। भारत का खुफिया समुदाय टीआरएफ और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े किसी भी पुनर्नामांकन प्रयास का पता लगाने के लिए सक्रिय रूप से एक डोजियर तैयार कर रहा है। सूत्रों के अनुसार, यह डोजियर अमेरिका, वैश्विक आतंकवाद-रोधी वित्तपोषण निगरानी संस्था एफएटीएफ और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ साझा किया जाएगा ताकि इन समूहों को किसी भी तरह की कूटनीतिक खामियों या कानूनी संरक्षण से बचाया जा सके। सरकार के खुफिया सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में बताया गया कि अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाए रखने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए ऐसे प्रयास बेहद ज़रूरी हैं।
भारत की एजेंसियों का कहना है कि अमेरिका की बैन के बाद पाकिस्तान टीआरएफ को नए नाम से सामने ला सकता है। वजह साफ है एफएटीएफ जैसी संस्थाओं से बचाव, और कश्मीर में 'प्रतिरोध' का झूठा नैरेटिव बनाए रखना। पाकिस्तान के लिए यह सिर्फ एक संगठन नहीं, उसकी रणनीतिक नीति का हिस्सा है। नया नाम, वही ढांचा, वही मकसद । पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) द्वारा 2019 में स्थापित टीआरएफ को व्यापक रूप से लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का विस्तार माना जाता है। भारतीय अधिकारियों के अनुसार, यह घटनाक्रम एक ऐसे पैटर्न को दर्शाता है जिसमें प्रतिबंधित समूहों का बार-बार नाम बदलकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचने के लिए उनकी मुख्य आतंकवादी गतिविधियाँ जारी रहती हैं। टीआरएफ का मौजूदा नेतृत्व सज्जाद गुल (सुप्रीम कमांडर) और अहमद खालिद (प्रवक्ता) के हाथ में है। इनके संपर्क सीधे पाकिस्तान में लश्कर के केंद्र मुरिदके और बहावलपुर से हैं। इन्हें जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत जैसे आतंकी नेटवर्क का सीधा समर्थन प्राप्त है।
इस समूह की स्थापना जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद की गई थी, जिसका उद्देश्य घाटी में आतंकवाद को विदेशी जिहाद के बजाय स्थानीय प्रतिरोध के रूप में चित्रित करना था। इस रणनीतिक चित्रण का उद्देश्य समूह के वास्तविक स्वरूप और उद्देश्यों को छिपाना था। स्वदेशी आंदोलन होने के अपने दावों के बावजूद, टीआरएफ पहलगाम घटना सहित कई हमलों में शामिल रहा है, जो लश्कर-ए-तैयबा के संचालन के तरीकों की नकल है। भारतीय एजेंसियों का कहना है कि इस समूह के उद्देश्यों में एफएटीएफ जैसी संस्थाओं की वित्तीय जाँच से बचना और संयुक्त राष्ट्र व अमेरिकी ब्लैकलिस्ट से बचना शामिल है, जबकि स्थानीय उग्रवाद के भ्रम के ज़रिए कश्मीरी युवाओं की भर्ती करने की कोशिश की जाती है। यह समूह भर्तियों को आकर्षित करने और संचालन गोपनीयता बनाए रखने के लिए परिष्कृत प्रचार का इस्तेमाल करता है।
सूत्रों के अनुसार, टीआरएफ की स्थापना मुहम्मद अब्बास शेख ने की थी, जिनकी अब मृत्यु हो चुकी है। वर्तमान नेतृत्व में शेख सज्जाद गुल कमांडर हैं और अहमद खालिद प्रवक्ता हैं। यह समूह कश्मीर में जिहाद को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान द्वारा लंबे समय से बनाए गए ढाँचे के तहत काम करता है और अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए मौजूदा नेटवर्क और संसाधनों का लाभ उठाता है। वहीं एजेंसियों की नजर अब सोशल मीडिया पर नए 'प्रतिरोध' नामों पर है, जैसे "वाइस ऑफ कश्मीर" या "यूनाइटेड फ्रंट फॉ़र फ्रीडम", जो अचानक उभर सकते हैं। इनके फंडिंग चैनल, ऑनलाइन प्रोपेगेंडा और सीमा-पार मैसेजिंग निगरानी में हैं।