जानवर है सज़ा के लिए (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Nov 25, 2021

इंसान, इंसान को सज़ा देने के लिए नए नए आरोप गढ़ता है। अच्छे से अच्छा, महंगा वकील करता है। बहुत कोशिश करता है कि उसे सजा न मिल पाए। ज्योतिषी से मिलता है। सालों साल मुक्कदमा चलता है बस फैसला नहीं होता। आमतौर पर इधर वाला वकील कोशिश करता है कि सज़ा उधर चली जाए या केस चलता रहे। अब एक नया सामाजिक व्यवहार आया है कि इंसान के इल्ज़ाम जानवर पर लगा कर उसे सज़ा दिलवा दी जाए। इंसानियत के नुमायंदों के लिए बढ़िया उपहार है। जानवर को फंसा दो और इंसान को बचाए रखो। जानवर के पास कहने के लिए बहुत कुछ होता है लेकिन ज़बान नहीं होती जो इंसान की जिरह का जवाब दे।

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इंसान कहो, हैवान कहो, शैतान कहो कितने जुर्म कर राजनीति की कंटीली बाढ़ उगा कर बचा रहता है। मुक्कदमे बेहोश रहते हैं। बंदा छोटी सभा से बड़ी सभा में पहुंच जाता है। कानून बनवाने में चालाकी, होशियारी, समझदारी से हिस्सेदारी करता है। करोड़पति हो जाता है। उसके बनाए गए कानून की क्या मजाल जो उसे छू भी सके। कानून लागू करवाने वालों के कारनामे वक़्त के साथ अजीब ओ गरीब होते जाते हैं और सामाजिक जानवर बचे रहते हैं।  


यह ठीक है कि अपने स्वभाव के मुताबिक जानवर भी इंसान या दूसरे जानवरों के बुरे या गलत व्यवहार की प्रतिक्रिया और सज़ा देता है। लेकिन इंसान का इंसाफ, शक्ति, भक्ति और पहुंच के कारण स्वार्थी किस्म का है।  इंसान पर जानवर को परेशान करने का मुक्कदमा दर्ज हो या न हो लेकिन जानवर द्वारा इंसान पर प्रतिक्रिया का केस दर्ज कर दिया जाता है।  कितने ही अघोषित मुजरिम बरसों खुले आम घूमते रहते हैं। इंसान और इंसानियत की हत्या करने वाले राजनीतिक हाथियों पर मुक्कदमा दर्ज करने में क़ानून और व्यवस्था के पसीने छूट जाते हैं मगर जानवर को बेड़ियां डालकर जेल में डाल दिया जाता है।

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जानवर का कोई जान पहचान का नहीं होता उसे पेड़ से बांध दिया जाता है। वह सो नहीं सकता, आराम से बैठ भी नहीं सकता। इंसान को मिल जाने वाली सुविधाओं के खिलाफ किसी अदालत में नहीं जा सकता।  उसे पता भी कहां है कि जेल में इंसानी किस्से कितने दिलचस्प हैं। यही मान लिया जाता है कि इंसान ने जानवर को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाया होगा। सारी गलती जानवर की ही होगी क्यूंकि वह जानवर है।  इंसानी वकील उसका पैरोकार हो भी गया तो सम्प्रेषण की समस्या बीच में आ खड़ी होती है। जानवर के लिए तो कुछ पशुप्रेमी ही बोलेंगे यहां तो बुद्धिजीवी भी कम ही बोलते हैं।  


इंसान ने अपने स्वार्थ के लिए जानवरों के घरौंदे नष्ट कर दिए उन्हें पूरी ज़िंदगी की सजा दे दी लेकिन इंसान को तो एक दिन की भी सज़ा नहीं मिली। इंसान की खुराफातें बढ़ती जा रही हैं। जानवर का क्या है, जानवर ही तो है। इंसान की जगह जानवर को सज़ा देने का नया विचार इंसानियत बचाने के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकता है।


- संतोष उत्सुक

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