भारतीय शोधकर्ताओं को मिले आम की पत्तियों में जंग-रोधी तत्व

By सुशीला श्रीनिवास | Jul 05, 2019

बेंगलुरु।(इंडिया साइंस वायर): भारतीय शोधकर्ताओं ने आम की पत्तियों के अर्क से एक ईको-फ्रेंडली जंग-रोधी सामग्री विकसित की है, जिसकी परत लोहे को जंग से बचा सकती है। यह जंग-रोधी सामग्री तिरुवनंतपुरम स्थित राष्ट्रीय अंतर्विषयी विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई है। 

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नई जंग-रोधी सामग्री का परीक्षण वाणिज्यिक रूप से उपयोग होने वाले लोहे पर विपरीत जलवायु परिस्थितियों में करने पर इसमें प्रभावी जंग-रोधक के गुण पाए गए हैं। आमतौर पर, लोहे के क्षरण को रोकने के लिए उस पर पेंट जैसी सिंथेटिक सामग्री की परत चढ़ाई जाती है, जो विषाक्त और पर्यावरण के प्रतिकूल होती है। लेकिन, आम की पत्तियों के अर्क से बनी कोटिंग सामग्री पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल है। 

पेड़-पौधों में जैविक रूप से सक्रिय यौगिक (फाइटोकेमिकल्स) पाए जाते हैं जो रोगजनकों एवं परभक्षियों को दूर रखते हैं और पौधों के सुरक्षा तंत्र के रूप में काम करते हैं। शोधकर्ताओं ने पौधों के इन्हीं गुणों का अध्ययन किया है और आम के पौधे में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले फाइटोकेमिकल्स का उपयोग जंग-रोधी पदार्थ विकसित करने के लिए किया है।

 

शोधकर्ताओं ने एथेनॉल के उपयोग से आम की सूखी पत्तियों से फाइटोकेमिकल्स प्राप्त किया है क्योंकि सूखी पत्तियों में अधिक मात्रा में में जैविक रूप से सक्रिय तत्व पाए जाते हैं। इसके बाद पत्तियों के अर्क की अलग-अलग मात्रा का वैद्युत-रासायनिक विश्लेषण किया गया है। 200 पीपीएम अर्क के नमूनों में सबसे अधिक जंग-रोधी गुण पाए गए हैं।

 

अध्ययनकर्ताओं में शामिल डॉ निशांत के. गोपालन ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इस शोध में हमें पता चला है कि जैविक रूप से सक्रिय तत्व मिलकर एक खास कार्बधात्विक यौगिक बनाते हैं, जिनमें जंग-रोधक गुण होते हैं।” 

 

पत्तियों के अर्क में जंग-रोधी गुणों का परीक्षण जैव-रासायनिक प्रतिबाधा स्पेक्ट्रोस्कोपी और लोहे की सतह पर जंग का मूल्यांकन एक्स-रे फोटो-इलेक्ट्रॉन स्पेक्ट्रोस्कोपी से किया गया है। इस तरह, शोधकर्ताओं को जैविक रूप से सक्रिय तत्वों की जंग-रोधी भूमिका के बारे में पता चला है। इस कोटिंग सामग्री को 99 प्रतिशत तक जंग-रोधी पाया गया है जो आम के पत्तों के अर्क के जंग-रोधक गुणों को दर्शाता है। 

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लोहे पर सिर्फ अर्क की परत टिकाऊ नहीं हो सकती। इसीलिए, शोधकर्ताओं ने अर्क को सिलिका के साथ मिलाकर मिश्रण तैयार किया गया है। इस मिश्रण को एक प्रकार की गोंद एपॉक्सी में मिलाकर कोटिंग सामग्री तैयार की गई है।

 

प्रमुख शोधकर्ता कृष्णप्रिया के. विदु ने कहा कि "हम विभिन्न तापमान और पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार आम की पत्तियों के अर्क का परीक्षण करना चाहते हैं। हमारी टीम अब इस उत्पाद के स्थायित्व का परीक्षण करने के लिए आगे प्रयोग करने की योजना बना रही है। दूसरी मिश्रित धातुओं पर भी इसकी उपयोगिता का परीक्षण किया जा सकता है।" 

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शोधकर्ताओं में डॉ निशांत के. गोपालन और कृष्णप्रिया विदु के अलावा तेजस पेरिनगट्टू कलारीक्कल और नित्या जयकुमार शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका एसीएस ओमेगा में प्रकाशित किया गया है। 

 

भाषांतरण: उमाशंकर मिश्र 

(इंडिया साइंस वायर) 

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