By कमलेश पांडे | Dec 15, 2025
समकालीन भाजपा के कुशल सियासी शिल्पी समझे जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी का चाणक्य करार दिए जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की युगल प्रभावशाली जोड़ी ने 14 दिसंबर को यकायक पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में तीसरी पीढ़ी के कद्दावर और सूझबूझ वाले युवा नेता नितिन नबीन के नाम की घोषणा करवाकर न केवल सबको चौंकाया है, बल्कि एक तीर से कई सियासी निशाने भी साधे हैं। इसके सियासी मायने भी दूरगामी और दिलचस्प साबित होंगे, क्योंकि मोदी-शाह के सियासी तरकश से निकले इस प्रभावी तीर ने आरएसएस-भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को भी आश्चर्य चकित कर दिया है।
बताते चलें कि भारतीय जनता पार्टी ने बिहार में सत्तारूढ़ राजग के नीतीश सरकार में भाजपा कोटे के कैबिनेट मंत्री नितिन नबीन को गत दिनोंतत्काल प्रभाव से राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है, जिससे खुद पार्टी के कार्यकर्ता भी पशोपेश में पड़कर चौंक गए हैं और इस अप्रत्याशित निर्णय को सराहा, क्योंकि यह नियुक्ति राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के कार्यकाल की समाप्ति और उनको मिले बार-बार कार्य विस्तार की अवधि के दौरान आई है, जो नए पूर्णकालिक अध्यक्ष के चुनाव तक संगठन की कमान संभालेंगे। हालांकि, इस बात की सुगबुगाहट लंबे अरसे से जारी थी और बड़े-बड़े नाम इस होड़ में शामिल थे। इसलिए नितिन नबीन की नियुक्ति से मोदी-शाह का सियासी पलड़ा पुनः भारी प्रतीत हुआ है।
जहां तक इस नियुक्ति के कारण की बात है तो पार्टी ने नितिन नबीन के संगठनात्मक अनुभव, जमीनी पकड़, प्रशासनिक क्षमता और सिक्किम/छत्तीसगढ़ में प्रभारी/सह-प्रभारी के रूप में उनकी उल्लेखनीय सफलता को आधार बनाया है। बताया जाता है कि पांच बार विधायक और तीन बार मंत्री रह चुके नितिन नबीन बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र, पटना पश्चिम इलाके से हैं तथा बूथ स्तर प्रबंधन में माहिर माने जाते हैं। यही वजह है कि उनकी इस नई नियुक्ति का बिहार सहित पूर्वी भारत की सियासत पर भी इसका एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
देखा जाए तो भाजपा आलाकमान का यह कदम बिहार में भाजपा की मजबूती को राष्ट्रीय स्तर पर जोड़ता है, जहां नितिन नबीन कायस्थ समाज से आते हैं जो पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक है। वहीं, बिहार सरकार में मंत्री रहते हुए उन्हें दिल्ली में आधिकारिक आवास और केंद्रीय मंत्री जैसी सुविधाएं मिलेंगी। दरअसल पार्टी उनके मनोनयन की राष्ट्रीय रणनीति से सुपरिचित है जोकि जेनरेशन नेक्स्ट को बढ़ावा देती है तथा बंगाल चुनाव जैसी चुनौतियों के लिए समय रहते ही तैयार करती है। यह पीएम मोदी और एचएम अमित शाह की प्रभावशाली सियासी दिशा में एक नई निरंतरता का संकेत है, जिसमें युवा नेतृत्व से नई ऊर्जा की उम्मीद है।
पार्टी मामलों के जानकार बताते हैं कि नितिन नबीन की नई नियुक्ति बिहार की राजनीति में पार्टी के संगठनात्मक विस्तार और कायस्थ वोट बैंक को मजबूत करने का संकेत देती है। यह कदम बिहार को राष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिनिधित्व दिलाता है, जहां नबीन की जमीनी पकड़ और बांकीपुर सीट पर लगातार जीत भाजपा के लिए मॉडल बनी हुई है। जहां तक भाजपा की मजबूती की बात है तो इस नियुक्ति से बिहार में भाजपा का कैडर प्रबंधन और चुनावी रणनीति तेज होगी, खासकर नीतीश कुमार सरकार में मंत्री रहते हुए। यही नहीं, भारत का सर्वाधिक प्रबुद्ध और प्रशासनिक प्रभाव रखने वाला कायस्थ समुदाय, जो भाजपा का कोर वोटर है, इससे प्रेरित होगा तथा पार्टी का शहरी आधार पटना जैसे इलाकों में और सशक्त बनेगा।
जहां तक एनडीए पर प्रभाव की बात है तो नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में भाजपा की स्थिति मजबूत होगी, क्योंकि नबीन का राष्ट्रीय पद बिहार में केंद्रीय नेतृत्व की निगरानी बढ़ाएगा। साथ ही युवा नेतृत्व का उदाहरण स्थापित कर अन्य दलों को चुनौती मिलेगी, विशेषकर आगामी विधानसभा चुनावों में। वहीं, संभावित चुनौतियां यह हैं कि मंत्री पद के साथ राष्ट्रीय जिम्मेदारी से बिहार फोकस कम न हो, यह चिंता बनी रहेगी, हालांकि उनका छत्तीसगढ़ प्रभारी वाला अनुभव आश्वासन देता है। विपक्षी दल इसे भाजपा की बिहार-केंद्रित रणनीति के रूप में देखकर जवाबी हमला बोल सकते हैं।
नितिन नबीन भाजपा की नई रणनीति में युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने, संगठनात्मक मजबूती और पूर्वी भारत में विस्तार के प्रमुख स्तंभ बनेंगे। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में वे बूथ स्तर प्रबंधन, चुनावी तालमेल और राज्य इकाइयों के बीच समन्वय संभालेंगे। इससे पार्टी में युवा जुड़ाव बढ़ेगा। नबीन की नियुक्ति से भाजपा 2029 लोकसभा चुनावों के लिए नेक्स्ट जेन लीडरशिप तैयार करेगी, जहां युवाओं से कनेक्ट करना प्राथमिकता होगी। वहीं,, छत्तीसगढ़ प्रभारी के अनुभव से बूथ मजबूती का मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर लागू होगा।
जहां तक चुनावी रणनीति की बात है तो 2026 में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव, तमिलनाडु विधानसभा चुनाव और असम विधानसभा चुनावों में नितिन नबीन संगठन विस्तार व तालमेल प्रबंधन करेंगे, और बिहार में मिली हालिया सफलता को दोहराने का लक्ष्य रखेंगे। इससे पूर्वी भारत पर फोकस से पार्टी का क्षेत्रीय आधार सशक्त बनेगा। जहां तक संगठनात्मक भूमिका की बात है तो जेपी नड्डा के बाद वे केंद्रीय नेतृत्व व राज्य नेताओं के बीच पुल का काम करेंगे, और पीएम मोदी की दृष्टि को जमीन पर उतारेंगे। वहीं कायस्थ (पश्चिम बंगाल में राढ़ी कायस्थ) जैसे कोर वोट बैंक को साधते हुए सामाजिक समीकरण मजबूत होंगे।
नितिन नबीन की प्रमुख प्राथमिकताएँ भाजपा के संगठन को मजबूत करना, बूथ स्तर पर कार्यकर्ता सक्रियता बढ़ाना और युवा नेतृत्व को बढ़ावा देना रहेंगी। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में वे पार्टी के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने पर जोर देंगे, जिसमें राष्ट्र निर्माण और जनकल्याण शामिल हैं। वहीं संगठनात्मक मजबूती के लिए वे बूथ प्रबंधन मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करेंगे, जैसा छत्तीसगढ़ में सफल रहा, तथा राज्य इकाइयों में समन्वय सुनिश्चित करेंगे। साथ ही कायस्थ जैसे कोर वोट बैंक को साधते हुए शहरी और प्रबुद्ध मतदाताओं से जुड़ाव बढ़ाना लक्ष्य होगा।
जहां तक चुनावी लक्ष्य की बात है तो 2026 के पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में संगठन विस्तार और तालमेल प्रबंधन उनकी प्राथमिकता रहेगा। इस निमित्त वे 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा के लिए युवा कनेक्ट पर फोकस करेंगे। इससे पूर्वी भारत में भाजपा का आधार सशक्त बनाने से पार्टी की रणनीति को एक नई दिशा मिलेगी। उनकी नेतृत्व शैली संतुलित समझी जाती है। भाजपा को आज इसी शैली की दरकार है। लिहाजा नितिन नबीन नई जिम्मेदारी को गंभीरता से निभाने का संकल्प ले चुके हैं, जिसमें सशक्त नेतृत्व और कार्यकर्ताओं से गहरा जुड़ाव प्रमुख होगा। उनका शांत स्वभाव और जमीन पर काम की छवि इन लक्ष्यों को साकार करने में सहायक बनेगी।
यहाँ भाजपा द्वारा नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने का कारण सरल और स्पष्ट है, वह यह कि उनकी नियुक्ति पार्टी की नयी रणनीति, संगठनात्मक मजबूती और नेतृत्व में बदलाव के इर्द-गिर्द केंद्रित है। सवाल है कि आखिर नितिन नबीन को ही यह अहम पद क्यों मिला? तो जवाब होगा कि भाजपा को युवा और सक्रिय नेतृत्व देने के लिए पार्टी ने यह फैसला लिया। दरअसल भाजपा नेतृत्व चाहता है कि पार्टी में युवा, गतिशील और मेहनती नेतृत्व को मौका मिले। अभी नितिन नबीन महज 45 वर्ष के हैं और उन्हें एक युवा, ऊर्जावान तथा कर्मठ नेता के रूप में देखा जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि उनका संगठनात्मक अनुभव एवं जमीनी पकड़ मजबूत है क्योंकि वे एक अनुभवी संगठनकर्ता हैं, इतनी कम उम्र में पाँच बार विधायक, मंत्री और संगठन से जुड़े रहे हैं। इस अनुभव के कारण उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय संगठन में नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी गई। वहीं, पार्टी में नई ऊर्जा और संतुलन लाने के लिए भी नेतृत्व का यह बदलाव किया गया है। इससे पार्टी में नई ऊर्जा, संतुलन और रणनीतिक सोच को बढ़ावा मिलेगा। खासकर जब अगले चुनावों से पहले संगठन को मजबूत बनाना है तो नितिन नबीन को लाकर पार्टी ने अपने मकसद को स्पष्ट कर दिया है।
निःसन्देह नितिन नबीन को मिली इस नई जिम्मेदारी से बिहार और पूर्वी भारत पर भाजपा की पैठ मजबूत होगी।ऐसा करना उनकी प्राथमिकता होगी। उनकी नियुक्ति इस बात का संकेत भी है कि भाजपा पूर्वी भारत (विशेषकर बिहार-पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड व सात बहन पूर्वोत्तर राज्यों) में अपनी पैठ और नेतृत्व को सशक्त करना चाहती है। इसलिए आगामी नेतृत्व परिवर्तन की तैयारी को उसने तेज कर दिया है। पार्टी का यह अप्रत्याशित फैसला एक
व्यवस्थापित व महत्वपूर्ण बदलाव के रूप में देखा जा रहा है- जैसे कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव तक संगठन का संचालन सुचारु रखना। इससे यह भी संकेत मिलता है कि भविष्य के नेतृत्व के लिए पार्टी तैयारी कर रही है।
यही वजह है कि पार्टी के बड़े नेताओं ने भी सधी हुई प्रतिक्रियाएँ दी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने नितिन नबीन को बधाई दी है और उन्होंने उन्हें कर्मठ, अनुभवी और प्रभावशाली नेता बताया है। क्योंकि उनकी इस नियुक्ति का मुख्य कारण उनके कार्य, संगठन क्षमता और ऊर्जा को माना गया। सरल शब्दों में कहें तो भाजपा ने नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष इसलिए बनाया क्योंकि वे युवा, अनुभवी, संगठनात्मक रूप से मजबूत और पार्टी को नई दिशा देने वाले नेता माने जाते हैं और यह नियुक्ति भाजपा की भविष्य की राजनीतिक और संगठनात्मक रणनीति का हिस्सा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा के मोदी-शाह गुट ने नितिन नबीन जैसे उभरते हुए युवा नेता को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर इस अहम पद हेतु पूर्व राष्ट्रीय संगठन मंत्री संजय जोशी जैसे तपे-तपाए नेता की दावेदारी को हाशिए पर डाल दिया है, जबकि उनको आरएसएस का शह प्राप्त था। लेकिन महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी जैसे तीसरी पीढ़ी के नेताओं को मजबूती प्रदान करने हेतु पार्टी ने यह संतुलित रणनीति अख्तियार की है, क्योंकि यह पार्टी युवा, जमीनी नेतृत्व की ओर बढ़ रही है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि जेपी नड्डा जैसे लक्की राष्ट्रीय अध्यक्ष के उत्तराधिकारी के रूप में नितिन नबीन का चयन उनकी बूथ स्तर की मजबूती, छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार बनवाने की सफलता और बिहार-बंगाल में कायस्थ वोट बैंक प्रबंधन ने उन्हें प्राथमिकता दी। कुल मिलाकर संजय जोशी के व्यापक अनुभव के बावजूद नितिन नबीन के ऊपर दांव खेलना अमित शाह का वह तुरुप का पत्ता है जिसके लिए वह मशहूर समझे जाते हैं। ऐसा करवाकर उन्होंने युवा नेतृत्व पर फोकस बढ़ाया है जो महज 45 वर्षीय भाजपा के सबसे युवा कार्यकारी अध्यक्ष हैं, और जेपी नड्डा के बाद जेनरेशन नेक्स्ट के रूप में नितिन नबीन
को सत्ता सौंपने का संकेत देते हैं।
ऐसा इसलिए भी कि संजय जोशी जैसे वरिष्ठ नेता के मुकाबले नबीन का शांत स्वभाव और संगठनात्मक कुशलता पार्टी में एक नई ऊर्जा लाएगी। जहां तक रणनीतिक कारण की बात है तो इससे पार्टी ने पूर्वी भारत विस्तार, 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव, 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा आम चुनाव के लिए नबीन का चयन किया है, जहां उनकी प्रशासनिक पकड़ बंगाल-असम जैसे राज्यों में उपयोगी साबित होगी। इस प्रकार नितिन नबीन द्वारा संजय जोशी की जगह लेने से बिहार-केंद्रित रणनीति मजबूत हुई, क्योंकि केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा नितिन नबीन पर अधिक है।
एक प्रकार से यह पार्टी के सियासी पैटर्न में उम्दा बदलाव का भी द्योतक है, क्योंकि उनकी यह नियुक्ति भाजपा के पुराने पैटर्न से हटकर बिहार से पांचवें बड़े नेता को राष्ट्रीय मंच देती है, जो नड्डा-जोशी जैसे तपे तपाए नेता के एक लंबे कार्यकाल के बाद पार्टी शीर्ष के लिए एक नई ताजगी लाएगी। वहीं पीएम मोदी-अमित शाह की पसंद नितिन नबीन को आरएसएस समर्थित युवा चेहरा बनाती है। बताया जाता है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने नितिन नबीन की नियुक्ति के पीछे उनकी ऊर्जावान छवि, संगठनात्मक क्षमता और केंद्रीय निर्देशों पर पूर्ण आज्ञाकारिता को प्रमुख तर्क बनाया।
बताया जाता है कि पीएम मोदी ने उनकी ऊर्जा को पार्टी मजबूती का आधार बताया, जबकि अमित शाह का अटूट विश्वास उन्हें भरोसेमंद चेहरा बनाता है। चूंकि नितिन नवीन पार्टी की तीसरी पीढ़ी के सक्षम युवा नेतृत्व के रूप में स्थापित हो चुके हैं। इस प्रकार से भाजपा ने मात्र दो दशकों में ही तीसरी पीढ़ी को अवसर देकर नितिन नबीन को चुना, जो वाजपेयी-आडवाणी के बाद मोदी-शाह के नेतृत्व को एक नई ऊर्जा देंगे और पूरब से पश्चिम तक उत्तर से दक्षिण तक भाजपा में एक नई गति लाएंगे। वाकई 45 वर्ष की उम्र में सबसे युवा कार्यकारी अध्यक्ष बनना पूर्वी भारत रणनीति और 2026 चुनावों के लिए तैयार करने का संकेत है।
इससे पार्टी का सामाजिक आधार दृढ़ होते हुए भी संगठनात्मक संतुलन कायम करता है। एक प्रकार से कायस्थ समाज से नया नेतृत्व लाकर जहां फॉरवर्ड वोट बैंक को मजबूत करने का कार्य किया गया है, वहीं ब्राह्मण-राजपूतों के बजाए कायस्थ को महत्व देकर ओबीसी सत्ता के साथ संतुलन साधना पार्टी का मुख्य लक्ष्य रहा जो सफल प्रतीत हुआ। यह आरएसएस समर्थित भाजपा का अभिनव प्रयोग भी है, जिसके पीछे नितिन नबीन के बूथ स्तर माइक्रो मैनेजमेंट और उनकी छत्तीसगढ़ विस चुनाव वाली सफलता ने उन्हें बंगाल-असम जैसे राज्यों के आगामी चुनावों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त बनाया। इससे उन पर रणनीतिक भरोसा भी बढ़ा है।
खास बात यह है कि नितिन नबीन अब स्वतंत्र शक्ति केंद्र न बनकर मोदी-शाह की रणनीति लागू करने वाले नेता बन चुके हैं, जो नड्डा की तरह ही भाजपा के विशाल संगठन को अन्य बोझ से बचाएंगे। इसलिए यह फैसला गोपनीय रूप से लिया गया, जो केंद्रीय नेतृत्व की एकतरफा पसंद भी दर्शाता है। नितिन नबीन की भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्ति के राजनीतिक फायदे युवा नेतृत्व को मजबूत करना, पूर्वी भारत में विस्तार और कोर वोट बैंक को सशक्त बनाना बताए गए हैं। यह कदम पार्टी को बूथ स्तर मजबूती और 2026 चुनावों के लिए नई ऊर्जा प्रदान करेगा। इससे संगठनात्मक लाभ यह मिलेगा कि उनकी इस नियुक्ति से भाजपा का कैडर प्रबंधन तेज होगा, खासकर बंगाल-असम जैसे राज्यों में जहां नबीन का अनुभव उपयोगी साबित होगा।
वहीं कायस्थ समाज जैसे फॉरवर्ड वोट बैंक को राष्ट्रीय मंच देकर सामाजिक संतुलन साधा गया। जिसके चुनावी फायदे भी मिलेंगे। इससे 2029 लोकसभा और राज्य चुनावों में युवा कनेक्ट बढ़ेगा, और हालिया बिहार जीत मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर दोहराने का अवसर मिलेगा। इससे एनडीए गठबंधनों में भाजपा की स्थिति मजबूत बनेगी, और विपक्ष को नई व मजबूत चुनौती मिलेगी। उनकी रणनीतिक बढ़त से व केंद्रीय नेतृत्व की एकतरफा पसंद से पार्टी में अनुशासन और मोदी-शाह दृष्टि की निरंतरता सुनिश्चित हुई। बिहार से पांचवें बड़े नेता का उदय राज्य को राष्ट्रीय महत्व बढ़ाएगा।
दरअसल, नितिन नबीन के नाम की घोषणा इसलिए चौंकाने वाली मानी गई क्योंकि वह न तो मीडिया की सुर्खियों में संभावित दावेदार के तौर पर चल रहे थे और न ही भाजपा के भीतर चर्चित नामों की सूची में शीर्ष पर थे। फिर भी पार्टी नेतृत्व ने जिस तरह अचानक उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी देकर आगे किया, उसने पूरे राजनीतिक हलके और खुद भाजपा कार्यकर्ताओं को भी आश्चर्य में डाल दिया। क्योंकि उनके नाम को लेकर पहले कोई अटकल नहीं थी, घोषणा से पहले। जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष/कार्यकारी अध्यक्ष के लिए कई वरिष्ठ नेताओं के नाम जोरशोर से चर्चा में थे, लेकिन नितिन नबीन का नाम लगभग कहीं नहीं लिया जा रहा था।
ऐसे में अपेक्षाकृत कम चर्चित, राज्य-स्तर के नेता को सीधे राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बना देना पार्टी के “सरप्राइज फ़ैक्टर” की मिसाल बन गया। देखा जाए तो उम्र और प्रोफ़ाइल के फैक्टर के हिसाब से नितिन नबीन अपेक्षाकृत युवा हैं और बिहार की राजनीति से आते हुए भी उन्हें अचानक राष्ट्रीय स्तर की कमान सौंप दी गई, जिससे यह ‘जेनरेशन नेक्स्ट’ को आगे बढ़ाने वाला कदम माना जा रहा है। पांच बार विधायक और तीन बार मंत्री रह चुके होने के बावजूद उन्हें अब तक राष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया गया था, इसलिए उनके नाम की औपचारिक घोषणा ने चौंकाने वाला प्रभाव पैदा किया।
जहां तक राजनीतिक संदर्भ और टाइमिंग की बात है तो वह काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जेपी नड्डा के बाद नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर जो लंबे समय से कयास चल रहे थे और माना जा रहा था कि फैसला आगे टलेगा, लेकिन अचानक कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नितिन नबीन की घोषणा कर दी गई। यह फैसला ऐसे समय हुआ जब पार्टी ने ठीक एक दिन पहले यूपी में भी नया प्रदेश अध्यक्ष घोषित किया था, जिससे डबल-स्प्राइज की राजनीतिक व्याख्याएं और तेज हो गईं।
जहां तक इसके रणनीतिक संदेश की बात है तो उनका कायस्थ समाज से आना, बिहार पृष्ठभूमि और संगठनात्मक अनुभव- सिक्किम-छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में प्रभारी/सह प्रभारी की भूमिका- को मिलाकर देखा जाए तो यह कदम पूर्वी भारत व खास सामाजिक समूहों में पार्टी के विस्तार की रणनीति से भी जोड़ा जा रहा है। इसलिए घोषणा चौंकाने वाली होने के साथ-साथ यह संकेत भी देती है कि शीर्ष नेतृत्व भविष्य के पूर्णकालिक अध्यक्ष के लिए एक नए चेहऱे को टेस्ट कर रहा है।
देखा जाए तो नितिन नबीन बिहार के पटना जिले के बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक रह चुके भाजपा नेता हैं। वे बिहार सरकार में पथ निर्माण मंत्री के रूप में कार्यरत हैं तथा छात्र राजनीति से अपनी सियासत शुरू कर संगठन के विभिन्न पदों पर रहे। उनका राजनीतिक सफर भी शानदार है, क्योंकि 2006 में नितिन नबीन का राजनीतिक सफर उनके पिता नवीन किशोर सिन्हा की विरासत से शुरू हुआ, जो भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधायक रहे। तब वह पटना पश्चिम (अब बांकीपुर) से उपचुनाव जीतकर वह विधायक बने, उसके बाद 2010, 2015, 2020 और 2025 में लगातार पांचवीं बार बांकीपुर से जीते।
इसके साथ ही वह प्रमुख संगठनात्मक पद पर भाजपा युवा मोर्चा (भाजयुमो) के राष्ट्रीय महामंत्री और बिहार प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। वहीं सिक्किम प्रभारी तथा छत्तीसगढ़ सह-प्रभारी के रूप में पार्टी की चुनावी सफलताओं में योगदान दिया। जहां तक सरकारी जिम्मेदारियों की बात है तो 2021-2022 में पथ निर्माण मंत्री, 2024-2025 में नगर विकास एवं आवास तथा कानून-न्याय मंत्री रहे। वर्तमान में बिहार सरकार में पथ निर्माण मंत्री तथा 14 दिसंबर 2025 से भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष हैं। उनकी प्रमुख उपलब्धियों में बांकीपुर सहित बिहार में सड़क निर्माण ढांचा को दुरुस्त किया जाना, शहरी विकास और बुनियादी सुविधाओं पर फोकस के अलावा कानून-न्याय विभागों में मंत्री रहकर बुनियादी ढांचे का विकास किया जाना शामिल है। उनका कायस्थ समाज से जुड़ाव है और बूथ स्तर प्रबंधन में माहिर समझे जाते हैं। अब वह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की जगह लेते हुए संगठन की मजबूती और चुनावी रणनीति संभालेंगे, क्योंकि उनकी जमीनी पकड़ और अनुशासित छवि को केंद्रीय नेतृत्व ने भी सराहा है।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक