By Prabhasakshi News Desk | Feb 21, 2025
भारत का हरा भरा और खूबसूरत राज्य अरुणाचल प्रदेश अपना स्थापना दिवस मना रहा है। अरुणाचल का मतलब ही 'उगते सूर्य का पर्वत' है। इसके ज्यादातर भाग हिमालय से ढके हुए हैं। राज्य के पूर्वी क्षेत्र में फैली हिमालय की पर्वतमालाएं इसे चीन से अलग करती हैं। चीन के अलावा भूटान और बर्मा की सीमाओं से लगा हुआ है यह राज्य। इसकी खूबसूरती को बढ़ाने का काम करते हैं ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और हरे-भरे जंगल। 500 से भी ज्यादा प्रकार के ऑर्किड अरुणाचल प्रदेश के जंगलों में देखने को मिलते हैं।
अरुणाचल प्रदेश का जिक्र यहां तक कि कलिका पुराण और महाभारत में भी देखने को मिलता है। इसी धरती पर संत परशुराम और ऋषि व्यास ने ध्यान लगाया था और भगवान श्रीकृष्ण ने रुकमणि से शादी की थी। आध्यात्मिकता के साथ-साथ ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह जगह बहुत ही खास है।
कई वजहों से खास है यह प्रदेश
प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा अरुणाचल प्रदेश में फैली यहां मौजूद तमाम तरह के एडवेंचर स्पोट्स भी इसे खास बनाते हैं और इसी वजह यहां सालभर देश-विदेश से आने वाले सैलानियों का तांता लगा रहता है। साफ-सुथरी लोहित, सियांग और सुबनसिरी नदियों में रॉफ्टिंग और कयॉकिंग का एक्सपीरियंस जरूर लें। पहाड़ों पर ट्रैकिंग के साथ ही भालुकपोंग से तवांग और बोमडिला तक आप मोटर बाइकिंग एडवेंचर को कर सकते हैं एन्जॉय।
अरुणाचल प्रदेश का इतिहास
राजीव गाँधी की सरकार के दौरान अरुणाचल प्रदेश एक पूर्ण राज्य 20 फरवरी, 1987 को बन गया था। 1972 तक इसे नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी या NEFA के नाम से भी जाना जाता था। 20 जनवरी 1972 को अरुणाचल प्रदेश को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला और इसका नाम बदलकर अरुणाचल प्रदेश कर दिया गया। प्रशासनिक दृष्टि से राज्य को 16 जिलों में विभाजित किया गया है। राज्य की राजधानी पापुम पारे जिले में स्थित ईटानगर है ईटानगर का नाम 'ईटा फोर्ट' के नाम पर रखा गया है, जिसका अर्थ है 'ईंटों का किला', जिसे 14वीं शताब्दी ई. में बनाया गया था।
क्या है अरुणाचल प्रदेश का महत्व
पूर्वोत्तर के राज्य अरुणाचल प्रदेश स्थापना दिवस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 20 फरवरी, 1987 को अरुणाचल प्रदेश को एक राज्य के रूप में आधिकारिक रूप से घोषित किये जाने की याद दिलाता है। अरुणाचल प्रदेश में विविध आदिवासी समुदाय हैं, जिनके अपने अनूठे रीति-रिवाज, परंपराएं और भाषाएं हैं। स्थापना दिवस जीवंत पारंपरिक नृत्य, संगीत और पोशाक के माध्यम से इस सांस्कृतिक संपदा को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। यह बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और पर्यटन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में राज्य की उपलब्धियों का भी जश्न मनाता है।