असम में नागरिकता विधेयक में संशोधन पर इसलिए बढ़ रहा है आक्रोश

By दिनकर कुमार | Jul 04, 2018

केंद्र सरकार नागरिकता विधेयक 1955 में जो संशोधन करना चाहती है उसको लेकर पिछले कुछ दिनों से असम में बवाल मचा हुआ है। इस विधेयक के जरिये केंद्र सरकार तीन पड़ोसी देशों के शरणार्थियों (गैर-मुस्लिम) को भारत की नागरिकता प्रदान करना चाहती है। प्रस्तावित विधेयक ने असम में भौगोलिक विभाजन जैसा माहौल तैयार कर दिया है। एक तरफ ब्रह्मपुत्र घाटी के लोग इसका तीव्र विरोध कर रहे हैं तो दूसरी तरफ बराक घाटी के लोग इसका हार्दिक स्वागत कर रहे हैं।

 

विगत 7 मई से 10 मई 2018 के बीच प्रस्तावित विधेयक पर आम लोगों की राय जानने के लिए संयुक्त संसदीय समिति ने असम और मेघालय का दौरा किया था। तब से लेकर अब तक विधेयक के विरोध और समर्थन में कई बार धरना-प्रदर्शन हो चुके हैं।

 

प्रस्तावित विधेयक में प्रावधान किया गया है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता पाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। मौजूदा नागरिकता अधिनियम का प्रावधान है कि अगर कोई शरणार्थी पिछले 14 सालों में से 11 सालों तक और आवेदन करने से पहले 12 महीने तक भारत में रह रहा हो तो उसे इस देश की नागरिकता मिल सकती है। 19 जुलाई 2016 को केंद्र सरकार ने संसद में संशोधन विधेयक पेश कर 3 देशों के 6 धर्मावलम्बियों के लिए समय सीमा को परिवर्तित कर दिया था। इससे पहले 2015 और 2016 में सरकार ने दो अधिसूचना जारी कर इन शरणार्थियों को विदेशी अधिनियम 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920 के प्रावधानों से रियायत दे दी, जिनके तहत उनको देश से निकाला जा सकता था और 31 दिसंबर 2014 से पहले आए ऐसे शरणार्थियों को भारत में रहने का अधिकार दे दिया।

 

भाजपा सांसद राजेन्द्र अग्रवाल की अगुवाई में 16 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति ने गुवाहाटी, सिल्चर और शिलांग का दौरा किया। गुवाहाटी में सैंकड़ों संगठनों ने विधेयक के विरोध में समिति को ज्ञापन सौंपे। एक ज्ञापन पर तो खून से भी हस्ताक्षर किए गए थे। सिल्चर में अनेक संगठनों ने विधेयक के समर्थन में समिति को ज्ञापन सौंपे। शिलांग में मेघालय मंत्रिमंडल ने विधेयक का विरोध करने का निर्णय लिया।

 

जो लोग विधेयक का विरोध कर रहे हैं उनका मानना है कि अगर विधेयक पारित हो गया तो असम में घुसपैठियों की समस्या और गंभीर हो जाएगी। जो लोग विधेयक का समर्थन कर रहे हैं उनका मानना है कि इससे असम की बराक घाटी में रह रहे बंगाली हिंदुओं के साथ न्याय हो पाएगा और अलगाव को कम किया जा सकेगा।

 

ब्रह्मपुत्र घाटी में विधेयक का विरोध कर रहे संगठनों का तर्क है कि असम में और अधिक घुसपैठियों को बसाना उचित नहीं होगा। इसके अलावा यह विधेयक 1985 के असम समझौते की मूल भावना के खिलाफ है। असम समझौता तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और अखिल असम छात्र संघ (आसू) के नेताओं के बीच हुआ था। समझौते में असम को बांग्लादेशियों से मुक्त करवाने की बात कही गई थी और उसमें किसी धर्म विशेष के लोगों को रियायत देने का प्रावधान नहीं किया गया था। समझौते में उल्लेख किया गया कि 24 मार्च 1971 की आधी रात के बाद असम आए सभी घुसपैठियों को विदेशी मानकर बहिष्कृत किया जाएगा। इसके लिए नागरिकता अधिनियम में अनुच्छेद 6 ए के तहत अलग से प्रावधान जोड़ा गया। इस संबंध में आसू के महासचिव लुरीन ज्योति गोगोई का कहना है- इसका साफ मतलब है कि विदेशियों के लिए शेष भारत में कट ऑफ वर्ष भले ही 1950 है, लेकिन असम के लिए यह 24 मार्च 1971 है।

 

बराक घाटी और ब्रह्मपुत्र घाटी की आबादी के बीच भाषाई विभाजन की शुरुआत 1947 में ही हो गई थी, जब सिलहट के अधिकतर बंगला भाषी अंचल पूर्वी पाकिस्तान में शामिल हो गए थे और एक अंचल भारत में ही रह गया था, जो बराक घाटी का अंग बना। विधेयक का समर्थन कर रहे संगठनों का तर्क है कि जिन लोगों को विभाजन की त्रासदी का सामना करना पड़ा और विस्थापित होना पड़ा, उनको मर्यादा के साथ जीने का हक मिलना चाहिए। नागरिक छात्र रक्षा संग्राम परिषद के महासचिव हरिदास दत्त का कहना है- वे लोग कहां जाएंगे ? कोई दूसरा देश उनको आश्रय नहीं देगा। हमारी मांग है कि नागरिकता देने के लिए भारत में 6 साल तक रहने की जो शर्त रखी गई है, उस अवधि को घटा कर 6 महीने कर दिया जाये।

 

विधेयक का विरोध कर रहे कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता अखिल गोगोई का कहना है- 1971 से असम में लगभग 20 लाख हिन्दू बंगलादेशी गैर कानूनी तरीके से रह रहे हैं। 2015 में हुई जनगणना के अनुसार बांग्लादेश में 1.70 करोड़ हिन्दू रहते हैं। अगर संशोधन विधेयक पारित हो गया तो वे सारे हिन्दू असम आकर भारत की नागरिकता प्राप्त कर लेंगे। उनका मानना है कि 31 दिसंबर 2014 की जो समय सीमा बनाई गई है, वह कोई मायने नहीं रखती।

 

भाजपा की तरफ से दावा किया जा रहा है कि बराक घाटी में ऐसे बंगलादेशी हिंदुओं की तादाद 10-15 लाख से ज्यादा नहीं है, जिनको विधेयक पारित होने पर भारत की नागरिकता मिल जाएगी। स्वाभाविक रूप से भाजपा विधेयक का समर्थन कर रही है, लेकिन असम में उसकी गठबंधन सरकार की सहयोगी एजीपी विधेयक का विरोध कर रही है। ब्रह्मपुत्र घाटी में कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ विधेयक का विरोध कर रही है। विधेयक को लेकर पार्टियों के अंदर भी भौगोलिक विभाजन स्पष्ट नजर आ रहा है। भाजपा के विधायक अतुल बोरा और भाजपा महिला शाखा की नेता मीरा बरठाकुर ने सोशल मीडिया पर विधेयक का विरोध जताया है। बराक घाटी के कांग्रेसी विधायक गौतम राय और कामाख्या दे पुरकायस्थ ने विधेयक का समर्थन किया है।

 

राज्य के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने कहा है कि अगर उनकी सरकार असम के नागरिकों के हितों की रक्षा करने में नाकाम रहेगी तो वह त्यागपत्र दे देंगे। राज्य के प्रभावशाली मंत्री हिमन्त विश्व शर्मा ने कहा है कि राज्य में एनआरसी के प्रकाशन का काम पूरा होने पर सरकार अपना पक्ष स्पष्ट करेगी। असम में 1951 के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अद्यतन करने का काम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहा है। इसके लिए भी समय सीमा 24 मार्च 1971 निर्धारित की गई है। विधेयक का विरोध कर रहे तबके का मानना है कि विधेयक के जरिये एनआरसी को निष्प्रभावी बनाने की कोशिश की जा रही है। विधेयक के विरोध में यह तर्क भी दिया जा रहा है कि यह संविधान के उस प्रावधान का उल्लंघन करता है जिसमें धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करने की बात कही गई है।

 

-दिनकर कुमार

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