19 साल की उम्र में देश के लिए फाँसी के फंदे पर झूल गये थे खुदीराम

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Aug 11, 2017

स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में खुदीराम बोस एक ऐसा नाम है जो देशवासियों को हमेशा देशभक्ति की प्रेरणा देता रहेगा। इस नौजवान ने मात्र 19 साल की उम्र में ही वतन के लिए अपना बलिदान दे दिया था। तीन दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर में जन्मे खुदीराम ने आजादी की लड़ाई में शामिल होने की ख्वाहिश के चलते नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी थी। खुदीराम स्वदेशी आंदोलन में कूद गए और रिवोल्यूशनरी पार्टी का सदस्य बनकर वंदे मातरम् पेंफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में भड़के आंदोलन में खुदीराम बोस ने बढ़−चढ़ कर हिस्सा लिया। अंग्रेजों ने 28 फरवरी 1906 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया लेकिन वह कैद से भाग निकले। दो महीने बाद वह फिर से पकड़े गए।

 

हुकूमत ने उन्हें आजादी की राह से भटकाने की कोशश की लेकिन इस नौजवान के इरादों और हौसलों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। अंततः 16 मई 1906 को उन्हें रिहा कर दिया गया। इतिहासवेत्ता शिरोल के अनुसार खुदीराम बंगाल ही नहीं बल्कि पूरे देश में अत्यधिक लोकप्रिय थे जिनकी शहादत के बाद नौजवानों में देशभक्ति की जबर्दस्त उमंग पैदा हो गई थी। छह दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के तत्कालीन गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया लेकिन वह बाल−बाल बच गया।

 

खुदीराम ने 1908 में दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर हमला किया लेकिन वे भी बच निकले। वह मुजफ्फरपुर के सेशन जज किंग्सफोर्ड से बेहद खफा थे जिसने क्रांतिकारियों को कठोर सजा दी थी। उन्होंने अपने साथी प्रफुल्ल चंद्र चाकी के साथ मिलकर सेशन जज से बदला लेने की ठानी। दोनों मुजफ्फरपुर आए और 30 अप्रैल 1908 को जज की गाड़ी पर बम से हमला किया लेकिन उस समय इस गाड़ी में जज की जगह दो यूरोपीय महिलाएं सवार थीं।

 

किंग्सफोर्ड के धोखे में दोनों महिलाएं मारी गईं जिसका खुदीराम और चाकी को बहुत अफसोस हुआ। पुलिस उनके पीछे लग गई और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। अपने को घिरा देख प्रफुल्ल चंद्र चाकी ने खुद को गाली मारकर शहादत दे दी जबकि खुदीराम पकड़े गए। 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई। फांसी के वक्त उनकी उम्र मात्र 19 साल थी। इतिहासवेत्ता शिरोल के अनुसार फांसी के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे ऐसी धोती बुनने लगे जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था। राष्ट्रवादियों ने शोक मनाया और विद्यार्थियों ने कई दिनों तक स्कूल−कॉलेजों का बहिष्कार किया।

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