By अभिनय आकाश | Jul 31, 2019
नरेंद्र मोदी सरकार ने लोकसभा के बाद राज्यसभा से भी ऐतिहासिक तीन तलाक बिल को पास करा लिया। राज्यसभा में अल्पमत में होने के बावजूद भी मोदी सरकार ने आसानी से इस बिल को लेकर कामयाबी हासिल की है। इससे पहले भी पोस्को एक्ट समेत कई सारे ऐसे बिल हैं जिन्हें संसद के दोनों सदनों से इस सत्र में मंजूरी मिल गई है। सदन में बिल पास कराना संख्या बल का खेल है और किसी भी बिल की सहमति और असहमति के लिए पर्याप्त सदस्यों की संख्या का होना जरूरी है। लेकिन विपक्षी दलों के सदस्यों की संख्या में ही सेंध लग जाए तो क्या होगा? वर्तमान की उंगली पकड़कर आपको थोड़ा फ्लैश बैक में घटित घटनाक्रम के दौर में लिए चलते हैं। पिछले एक-दो महीने पर ही गौर करें तो कई बड़ी पार्टियों के दिग्गज नेताओं के रूप में उदाहरण नजर आ आएंगे जिनका अपनी पार्टी से मोहभंग होता दिखा।
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जून की तपस भरी गरमी में विदेश में छुट्टिया मना रहे चंद्रबाबू नायडू को झटका देते हुए चार राज्यसभा सांसदों ने भाजपा के साथ अपनी राजनीतिक पारी शुरू की। राज्यसभा सांसद सीएम रमेश, टीजी वेंटकेश, जी मोहन राव और वाईएस चौधरी ने भारतीय जनता पार्टी पर भरोसा जताया था। जिसके बाद आईएनएलडी (इंडियन नेशनल लोकदल) के राज्यसभा सांसद रामकुमार कश्यप ने पार्टी को अलविदा कह भाजपा का दामन थाम लिया। टीडीपी और आईएनएलडी सांसदों के इस्तीफे से शुरू हुआ यह सिलसिला जुलाई के महीने में भी जारी रहा। समाजवादी पार्टी के सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर ने अखिलेश की सायकिल की सवारी से उतरकर भगवा झंडा थाम लिया। दूसरी तरफ गांधी परिवार के विश्वसनीय चेहरे और अमेठी के राजा संजय सिंह ने भी कांग्रेस पार्टी और राज्यसभा सदस्यता दोनों को ठुकरा दिया और भाजपा में शामिल होने वाले हैं। राज्यसभा सांसदों का एक के बाद एक भाजपा में शामिल होना मात्र एक संयोग नहीं है। बल्कि कुशल रणनीति और राज्यसभा का गणित बिठाने और बनाने की प्रक्रिया है। जिसमें भाजपा के तीन बड़े चेहरों की अहम भूमिका है।
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