By निधि अविनाश | Aug 18, 2022
पेशवा बाजीराव प्रथम एक हिन्दू सेनानी सम्राट थे। 1720 से 1740 तक उन्होंने मराठा सम्राज्य के चौथे छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा का नेृत्तव किया। ब्राह्मण परिवार में जन्में बाजीराव को थोरले बाजीराव के नाम से भी जाना जाता है। अपने कौशल और तेज बुद्धि से बाजीराव ने मराठा साम्राज्य का विस्तार किया और यहीं कारण है कि पेशवा बाजीराव प्रथम को सभी 9 महान पेशवाओं में से सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। पेशवा बाजीराव के पिता पेशवा बालाजी विश्वनाथ भी छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा थे। वह बचपन से ही घूड़सवारी, तलवारा, भाला चलाने के शौकिन थे। बचपन से लेकर पेशवा जबतक 20 साल के नहीं हो गए तब तक वह अपने पिता के साथ धूमते और दरबारी चालों को देखते और समझते थे। जब बाजीराव के पिता का निधन हुआ तब उनकी उम्र केवल 20 साल की थी और उसी दौरान उन्हें पेशवा बना दिया गया। पेशवा बनने के अगले 20 सालों तक बाजीराव ने अपने तेज कौशल और साहस से मराठा सम्राज्य का नेतृत्व किया। इस दौरान उन्होंने कई लड़ाईया लड़ी और हर युद्ध को जीतते गए। एक शूरवीर योद्धा के साथ-साथ वह एक कुशल घुड़सवार भी थे। वह घोड़े पर ही बैठकर सामने दुशमन की ओर भाला फेंकते थे कि धुड़सवार अपने घोड़े सहित घायल हो जाता था। पेशवा बाजीराव का नाम इतिहास के उन महान योद्धाओं मे आता है जिन्होंने कभी भी अपने जीवन में युद्ध नहीं हारा।
मुस्लिम महिला मस्तानी से शादी
1731 को पेशवा बाजीराव ने महाराजा छत्रसाल की बेटी से विवाह किया। पेशवा ने मोहम्मद खान बंग्स की सेना को पराजित कर महाराजा छात्रासाल की जान बचाई थी और उन्हें वापस उनका बुन्देलखण्ड राज्य लौटाया था। इसी से खुश होकर उन्होंने अपनी बेटी मस्तानी की शादी पेशवा बाजीराव से करा दिया। एक मुस्लिम महिला से शादी करने और उनसे संबंध होने कारण पेशवा बाजीराव को अपने अंतिम दिनों में काफी कलेश झेलने पड़े और इसका परिणाम महाराष्ट्र के शासन को भुगतना पड़ा। 28 अप्रैल 1740 को अचानक रोग के कारण उनकी असामयिक मृत्यु हो गई।
पेशवा बाजीराव प्रथम के सैन्य अभियान
सन् 1724 में शकरखेडला में बाजीराव पेशवा ने मुबारिज़खाँ को परास्त किया था।
सन् 1724 से 1726 तक मालवा तथा कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
सन् 1731 में दभोई में त्रिंबकराव को नतमस्तक कर बाजीराव ने आंतरिक विरोध का दमन किया। सीदी, आंग्रिया तथा पुर्तगालियों एवं अंग्रेजो को भी बहुत ही बुरी तरह पराजित किया।
हैदराबाद के (प्रथम) निजाम आसफ जाह प्रथम ने छत्रपति शाहू के अधिकार को मान्यता देने से इनकार कर दिया और सिंहासन के प्रतिद्वंद्वी दावेदार को स्थापित करने के लिए मराठा क्षेत्रों पर आक्रमण किया। इस युद्ध में बाजी राव ने निजाम को हरा दिया था। इसे पालखेड़ की लड़ाई भी कहा जाता है।
अपने छोटे भाई चिमाजी अप्पा को अपनी सेना का एक बड़ा हिस्सा सौंपते हुए, मराठा सेना ने अमझेरा की लड़ाई के दौरान गिरधर बहादुर और दया बहादुर के नेतृत्व में एक बहुत बड़ी मुगल सेना को शामिल किया और हराया।
राजा छत्रसाल अपने मुगल अधिपतियों के खिलाफ विद्रोह में उठे थे और 1728 में बुंदेलखंड में अपना राज्य स्थापित किया था। बाद में मुहम्मद खान बंगश के तहत एक मुगल सेना ने राजा छात्रासाल का किला घेर लिया था। राजा छत्रसाल ने बाजी राव को सहायता के लिए एक अनुरोध भेजा लेकिन अपने मालवा अभियान के कारण वह व्यस्त थे। बाजी राव ने अंततः 1729 में 70,000 की सेना के साथ बुंदेलखंड की ओर मार्च किया। इस लड़ाई में मुहम्मद खान तुरंत हार गए और राजा छत्रसाल को उनका राज्य वापस मिल गया। इसी दौरान बाजीराव की शादी राजा छात्रासाल की बेटी मस्तानी से करा दी गई।
- निधि अविनाश