साक्षात्कारः जितिन प्रसाद ने कहा- परिस्थितियां बदलवाती हैं सियासत में भूमिकाएं

By डॉ. रमेश ठाकुर | Jun 14, 2021

राजनीतिक ककहरा सिखाने वाली राजधानी दिल्ली हमेशा से सियासी रूप से गैर भरोसे की जमीन रही है। उस जमीन पर गैर भरोसे की फसलें राजनेताओं ने ही उगाई, इसलिए यथावत रहने की परमानेंट गारंटी वह खुद भी नहीं दे सकते। कौन कब कहां चला जाए, पता नहीं? वैसे, राजनीति में अवसरवादिता और मौकापरस्त इन दोनों विधाओं की संभावनाएं हमेशा प्रबल रहती हैं। उसी का ताजा उदाहरण कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए जितिन प्रसाद हैं। कांग्रेस ने उन्हें सबकुछ दिया, वहां मंत्री बने, पार्टी के उच्च पदों पर रहे, आलाकमान तक बिना रूकावट पहुंचते थे। बावजूद इसके उन्होंने पाला बदला। सवाल उठता है, क्या पूर्व पार्टी जैसा मान-सम्मान उन्हें भाजपा में मिल पाएगा। इन्हीं तमाम मुद्दों पर रमेश ठाकुर ने जितिन प्रसाद से की बातचीत। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-

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प्रश्न- ऐसी कौन-सी परिस्थिति आन पड़ी, जिससे आपको पार्टी बदलनी पड़ी?


उत्तर- देखिए, परिस्थितियां कभी ऐसा भी करा देती हैं जब भावनाओं को जाहिर करने में खामोशी खर्च हो जाती है और शब्द शेष रह जाते हैं। तब इंसान ना चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता और न ही बोल पाता है। उन परिस्थितियों में भलाई इसी में होती है कि इंसान को चुपके से किनारा कर लेना चाहिए। मेरी अंतरआत्मा ने भी कुछ ऐसा ही करने को कहा। कांग्रेस छोड़ना और भाजपा का दामन थामना मेरा अपना व्यक्तिगत फैसला है जिसमें किसी तरह का कोई लालच-दबाव नहीं। दरअसल, माहौल कुछ ऐसा बना जिसमें मैं सवाल और समाधान के बीच असंतुलन की खाई को और गहरा नहीं करना चाहता था। देशहित के लिए जो सेवा कांग्रेस में रहकर कर रहा था, वह भाजपा के जरिए आगे भी निरंतर जारी रहेगी। देखते हैं आगे क्या होता है, किस्मत कहां ले जाती है।


प्रश्न- आपके हाशिए पर चले जाने का कारण कांग्रेस में पनपे वंशवाद को आपके द्वारा चुनौती देना तो नहीं रहा?

  

उत्तर- वहां वंशवाद और शीर्ष स्तर को चुनौती मैं अकेला नहीं दे रहा था। लंबी कतार लगी है। कई सालों तक इसके खिलाफ लड़ाई जारी रही। मेरे पिता जितेंद्र प्रसाद ने भी कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सोनिया गांधी के विरुद्ध चुनाव लड़ा था। उनके लिए भी तब माहौल ऐसा ही बना था। देखिए, मैंने पहले भी कहा कि दलों को संस्थागत होना चाहिए, एक किले में नहीं बंधा रहना चाहिए। सर्व सम्मान सर्वोपरि होना चाहिए। जहां अपनी बात रखने की स्वतंत्रता हो, काम करने का अनुकूल माहौल हो, वहां आपकी कार्यशैली की गुणवत्ता भी निखरती है। पार्टी सामूहिक प्रयासों से आगे बढ़ती है जिसमें सभी की सहभागिता होनी चाहिए। लेकिन जब कोई पार्टी या दल किसी व्यक्ति विशेष के ईद-गिर्द ही घूमे, तो उसके भविष्य का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

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प्रश्न- भाजपा ने शायद आप पर ब्राह्मण होने का दांव खेला है। ऐसे में क्या आप ब्राह्मणों की खोई वकत की भरपाई कर पाएंगे?


उत्तर- बीते एकाध वर्षों से ब्राह्मण चेतना परिषद् के जरिए मैंने ब्राह्मणों के मन को टटोला है, विशेषकर उत्तर प्रदेश में, जिसमें यह पाया कि ब्राह्मणों को उनकी वास्तविक हैसियत से कमतर आंका गया। जबकि, इनकी संख्या आज भी किसी सरकार को बनाने में मुख्य भूमिका निभा सकती है। इतने बड़े वर्ग को कोई कैसे नकार सकता है। मेरी कोशिश रहेगी, सभी को एकजुट कर पाउं। ब्राह्मणों की नाराजगी को मैंने अच्छे से महसूस किया है। हाशिए पर गई उनकी हिस्सेदारी और भागीदारी को वापस लाने का प्रयास करूंगा। लेकिन इतना तय है ब्राह्मणों के हितों के लिए जितना भाजपा सोच सकती है, उतना कोई दूसरी पार्टी कल्याण नहीं कर सकती?

     

प्रश्न- आपके उपनाम ‘प्रसाद’ से लोग कन्फ्यूज थे, ज्यादातरों को अब पता चला कि आप ब्राह्मण हैं?


उत्तर- परिवार में कई पीढ़ियों से उपनाम लिखने की परंपरा नहीं रही। मेरे परदादा ज्वाला प्रसाद के समय से ही ऐसा चला आया है। मेरी परदादी पूर्णिमा देवी प्रसिद्ध महाकवि रवींद्र नाथ टैगोर की भतीजी थीं। जबकि, दादी सिख थीं। उस लिहाज से परिवार में कई धर्मों का समावेश रहा। वैसे, मैं जातिवाद की राजनीति के पक्ष में कभी नहीं रहा। हमेशा सभी धर्मों व जाति समुदायों की खुशहाली की वकालत की है। पहले के मुकाबले अब अगड़ी जातियां भी पिछड़ रही हैं। राजनैतिक और रोजगार की हिस्सेदारी आर्थिक व सामाजिक समीक्षाओं के आधार पर रेखांकित की जाए तो बेहतर होगा।


प्रश्न- पार्टी और आगामी यूपी विधानसभा चुनाव के लिए अभी तक आपकी भूमिका साफ नहीं हुई?

  

उत्तर- इसका उत्तर आपको शीर्ष स्तर से मिलेगा। भूमिका क्या होगी फिलहाल मैं इस ओर ध्यान नहीं दे रहा। पार्टी मुझे जो भी जिम्मेदारी देगी, उसका ईमानदारी से निवर्हन करूंगा। पद-प्रतिष्ठा की चाह न पहले रही और न आगे रहेगी। भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है, पार्टी से जुड़ना ही मेरे लिए गर्व की बात है। अगले सात-आठ महीने बाद यूपी में चुनाव होने हैं। पार्टी का पूरा फोकस फिलहाल चुनाव पर है। लेकिन उम्मीद यही रहेगी कि तब तक कोरोना संकट खत्म हो जाए।


प्रश्न- आपकी नियुक्ति और यूपी सरकार में मची खलबली, कहीं कोविड कुप्रबंधन और बढ़ती महंगाई से केंद्र सरकार का ध्यान हटाना तो नहीं है?


उत्तर- मेरी नियुक्ति का दूसरे मसलों से कोई लेना-देना नहीं और किसी अन्य मसले से जोड़ना भी नहीं चाहिए। ये पार्ट ऑफ सियासत है। रही बात महंगाई की, तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन कोविड ऐसी आपदा है जिसकी दूसरी लहर ने हमें गहरे जख्म दिए। ऐसी तबाही मचाई जिसके समक्ष सभी बेबस हो गए। संकटकाल में सरकार क्या कोई भी असंवेदन नहीं हो सकता। कोरोना की दूसरी लहर जब पीक पर थी, तो सभी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। केंद्र सरकार अपने प्रयासों से पीछे नहीं हटी। सभी लोग समस्याओं से मुकाबला कर रहे थे। कोरोना से हमने जो कुछ खोया है उससे सरकार भी चिंतित है।


-बातचीत में जैसा जितिन प्रसाद ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा।

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