शिवपाल पर भाजपा को शुरू से था शक, इसीलिए पार्टी में नहीं किया गया था शामिल

By अजय कुमार | Nov 30, 2022

राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता है। कभी-कभी तो राजनीति की पिच पर पारिवारिक कुनबे भी आपस में भिड़ जाते हैं। सिर-फुटव्वल पर उतारू हो जाते हैं। जनता ने यह नजारा हाल फिलहाल में कांग्रेस के गांधी परिवार से लेकर बिहार में लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल, तमिलनाडु में पूर्व मुख्यमंत्री और अब दिवंगत नेता करुणानिधि, अपना दल के दिवंगत नेता सोने लाल पटेल और मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी में खूब देखा है।


खासकर समाजवादी पार्टी में चचा-भतीजे के झगड़े ने तो खूब सुर्खियां बटोरी थीं। चाचा शिवपाल यादव और भतीजे एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के झगड़े में विपक्ष ने खूब चुटकियां ली थीं। एक समय तो भतीजे अखिलेश यादव से नाराज शिवपाल यादव के भारतीय जनता पार्टी तक में जाने की चर्चा शुरू हो गई थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने यादव कुनबे की अंदरूनी जंग में चाचा शिवपाल को समय-समय पर उकसाया तो खूब लेकिन कभी भी शिवपाल को बीजेपी ज्वाइन कराने के बारे में नहीं सोचा। क्योंकि भाजपा आलाकमान जानता था कि कुनबे के दबाव में शिवपाल कभी भी पलटी मार सकते हैं, तब बीजेपी की न केवल बदनामी होगी बल्कि सियासी तौर भी इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। अब यह साबित भी हो गया है कि बीजेपी सही सोच रही थी। मैनपुरी लोकसभा चुनाव से पूर्व चाचा शिवपाल यादव ने भतीजे अखिलेश यादव से दूरी मिटाकर एक तरह से उनके सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। शिवपाल यादव ने पाला क्या बदला, भारतीय जनता पार्टी ने भी शिवपाल सिंह यादव से आंखें घुमाने में देरी नहीं की। शिवपाल को मिल रही सरकारी सुविधाओं में कटौती शुरू हो गई है तो उनके मंत्री रहते किए गए अनाप-शनाप फैसलों की जांच में तेजी लाई जा सकती है।


गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) प्रमुख शिवपाल सिंह यादव की सुरक्षा जब जेड प्लस से घटाकर वाई कर दी गई तो वह मुख्यमंत्री योगी से मिले। इस मुलाकात के बाद उनकी सुरक्षा जेड कर दी गई। उसी वक्त सपा मुखिया अखिलेश यादव से अलग होने के बाद शिवपाल अपने राजनीतिक दल के कार्यालय के लिए भटक रहे थे। सरकार में उनकी बात हुई और उन्हें लाल बहादुर शास्त्री मार्ग पर दफ्तर के लिए बंगला मिल गया। छह साल बाद जब शिवपाल मैनपुरी में सपा प्रत्याशी डिंपल यादव के लिए वोट मांग रहे हैं तो उनकी सुरक्षा फिर घटा कर वाई कर दी गई है। शिवपाल की सुरक्षा में भले 11 सुरक्षाकर्मी कम हुए हों, पर यह उन पर सरकार की ‘कृपा’ कम होने का भी संकेत है। सपा मुखिया अखिलेश यादव से दूरियों के चलते शिवपाल को सरकार में जो अहमियत हासिल हुई थी, अब उसका दूरियों में बदलना तय है। चर्चा है कि यह मामला सिर्फ सुरक्षा में कमी पर ही नहीं रुकेगा।


सरकार से दूरियां शिवपाल को लाल बहादुर शास्त्री मार्ग पर मिले बंगले पर भी भारी पड़ सकती है। दरअसल, योगी सरकार ने उन्हें यह सरकारी आवास विधायक आवास के रूप में आवंटित किया है। आवास के साथ ही यहां प्रसपा का कार्यालय भी संचालित होता है, जबकि विधायक सिर्फ इस बंगले में रहने के लिए अनुमन्य हैं। मैनपुरी के उपचुनाव में जिस तरह शिवपाल बीजेपी और योगी सरकार पर हमले कर रहे हैं, उसके बाद लग रहा है कि उनके इस आवास के आवंटन पर कभी भी संकट गहरा सकता है। सूत्रों के मुताबिक प्रसपा के कई पदाधिकारियों को सुरक्षा भी मुहैया करवाई गई है। शिवपाल के बाद उन सभी की सुरक्षा का रिव्यू किया जा रहा है। जल्द उनकी सुरक्षा हटाए जाने से जुड़े आदेश भी जारी हो सकते हैं।


इसके अलावा,गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में सीबीआई शिवपाल के सबसे करीबी कहे जाने वाले सिंचाई विभाग के तत्कालीन अधीक्षण अभियंता को जेल भेज चुकी है। कुछ माह पहले सीबीआई ने उनके एक और करीबी रिटायर्ड आईएएस अफसर दीपक सिंघल से भी पूछताछ के लिए सरकार से मंजूरी मांगी है। मंजूरी का मामला फिलहाल अटका है। दीपक से पूछताछ के बाद जाहिर है कि सीबीआई की जांच का दायरा बढ़ेगा। ऐसा हुआ तो शिवपाल उसके घेरे में आएंगे। क्योंकि कई अहम बैठकों के साथ उन्होंने मंत्री के रूप में आरोपित और जांच के घेरे में आए अफसरों के साथ विदेश यात्राएं भी की थीं। इसके साथ ही शिवपाल के करीबियों के खिलाफ जिलों में दर्ज मुकदमों में भी कार्रवाई में तेजी आने के पूरे आसार हैं। मैनपुरी चुनाव का फैसला आने के बाद शिवपाल यादव के खिलाफ जांच का दायरा और भी बढ़ सकता है।


-अजय कुमार

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