धूमल को यूँ ही किनारे रखेगी भाजपा तो लोकसभा चुनाव में होगा नुकसान

By विजय शर्मा | Apr 25, 2018

हिमाचल प्रदेश भाजपा ने तीन दिन तक चले मंडी अधिवेशन के बाद हिमाचल के भगवा रंग के नक्शे के साथ 4/4 का नारा देते हुए ऐलान किया है कि 2014 के लोकसभा चुनावों की भांति इस बार भी वह चारों सीटों पर भगवा फहरायेगी। भाजपा नेताओं के दावे में कितना दम है यह तो चुनाव बाद ही चलेगा लेकिन इतना तय है कि इस बार लड़ाई उतनी आसान नहीं है। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को गत विधानसभा चुनाव अभी भूले नहीं होंगे जिनमें अपराजेय कहलाने नाले बड़े−बड़े धुरंधरों को वोटरों ने झटके से धूल चटा दी। प्रदेश की जनता ने बड़े उत्साह से अपने नेताओं का चुनाव किया और हिमाचल के राजनीतिक परिदृश्य को इस उम्मीद से बदला था कि शायद लंबी और बड़ी रात के बाद सुहावनी सुबह होगी लेकिन ऐसा लगता है कि बादलों के धुंधलके ने सुहावनी सुबह को ढंकना शुरू कर दिया है, तभी तो जमीन पर कुछ ठोस दिखाई नहीं दे रहा है। सिर्फ एक शोर सुनाई पड़ रहा है कि भाजपा ने 4/4 के नारे के साथ आने वाले लोकसभा चुनावों में प्रदेश की चारों सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है।

हिमाचल प्रदेश में भले ही भाजपा की सरकार बन गई हो लेकिन विधानसभा चुनावों में पार्टी के बड़े नेताओं की हार से प्रदेश भाजपा के कार्यकर्ता अभी तक सदमे में हैं। प्रदेश भाजपा के नेताओं ने भले ही अपने मंडी अधिवेशन में भगवा रंग के हिमाचल के नक्शे के साथ 4/4 का लोगो जारी करके ऐलान किया है कि वह पिछले लोकसभा चुनावों की तरह इस बार भी चारों सीटों पर भगवा फहरायेंगे लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता अंदरखाने इस बात को मानते हैं कि इस बार मुकाबला कड़ा है और पार्टी ने चारों सीटें जीतने का लक्ष्य भले ही रखा हो लेकिन पार्टी के लिए पिछली जीत दोहराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। प्रदेश के चारों सांसद भले ही रेल विस्तार और एम्स हिमाचल में खुलवाने को अपनी उपलब्धि बता रहे हों लेकिन जमीनी स्तर पर आम जनता के जीवन में केन्द्र की भाजपा सरकार बनने के बाद कोई बदलाव नहीं आया है।

 

वैसे भी आज का युवा वोटर लम्बी प्रतीक्षा नहीं करता, उसे जल्दी परिणाम चाहिए जो राजनीति में संभव नहीं है। राजनैतिक दलों की तो यह परिपाटी हो गई है कि चुनावों में वायदे करो, वोट बटोरो और भूल जाओ। सभी राजनैतिक पार्टियां यही कर रही हैं। यही कारण है कि जनता का भाजपा से भी मोहभंग हो रहा है। भाजपा की सरकार बनने के बाद महंगाई, जीएसटी और नोटबंदी की वजह से तकलीफें बढ़ी हैं, रोजगार के अवसर घटे हैं, आंकड़ों और जमीनी हकीकत में भारी अंतर है। दूसरा पिछले कुछ समय से दलितों में आरक्षण को लेकर विपक्ष द्वारा जो भ्रम फैलाया जा रहा है उससे भी भाजपा को नुकसान होने का अंदेशा बढ़ गया है क्योंकि दलितों के अखिलव्यापी अंदोलन के दौरान हिमाचल प्रदेश में भी आंदोलन की लपटें पहुंची थीं। इसके अलावा इस बात की चर्चा जोरों पर है कि हिमाचल प्रदेश के दो सांसदों के टिकट बदले जा सकते हैं। कहा जा रहा है कि शांता कुमार चुनाव लड़ने से मना कर चुके हैं और शिमला के सांसद वीरेन्द्र कश्यप के खिलाफ आपराधिक मामले में आरोपपत्र दाखिल हो चुका है।

 

सांसद अनुराग ठाकुर को लेकर तरह−तरह की चर्चाएं हैं कि उनका संसदीय क्षेत्र बदला जा सकता है। हालांकि विधानसभा चुनावों में उनके पिता तथा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के चुनाव हारने के बाद वह क्षेत्र में काफी सक्रिय हो गये हैं और अपनी जीत की संभावनाओं को तलाश रहे हैं। उधर प्रेम कुमार धूमल पहले मुख्यमंत्री तथा बाद में विपक्ष का नेता होने के नाते पूरे प्रदेश में सक्रिय रहते थे लेकिन अब हमीरपुर तथा सुजानपुर तक ही सीमित हो गये हैं और 2019 के लोकसभा चुनावों में हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय हैं। हालांकि पार्टी के एक वर्ग का कहना है कि उनको लोकसभा चुनाव लड़वाया जा सकता है। कार्यकर्ताओं में वह अभी भी लोकप्रिय हैं लेकिन भाजपा की सरकार में अब उनकी भूमिका नगण्य हो गई है जिसकी वजह से भाजपा कार्यकर्ताओं का उत्साह कम हुआ है।

 

हिमाचल में भाजपा की नई सरकार बनने के बाद नई बात यह हुई है कि मंडी अब राजनीतिक रणनीति का अखाड़ा बन गई है। कांग्रेस ने पहल करते हुए लोकसभा चुनावों की तैयारियों के मद्देनजर मंडी में पार्टी का प्रादेशिक अधिवेशन बुलाया और भाजपा के खिलाफ व्यापक रणनीति तैयार की तथा केन्द्र सरकार पर हमले किये और अब उसके बाद प्रदेश भाजपा ने भी मंडी में तीन दिवसीय अधिवेशन किया और भगवा रंग का 4/4 का लोगो जारी कर चारों सीटें जीतने के दावा किया। शिमला, धर्मशाला के बाद अब मंडी नया राजनीतिक अखाड़ा बन गई है, लेकिन अब देखना यह है कि इस अखाड़े में बाजी कौन मारता है।

 

हिमाचल प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियों ने चुनावी रणनीति का खाका तैयार कर लिया है। नेता अब कार्यकर्ताओं के बीच जाकर जनता की नब्ज टटोल रहे हैं। लोकसभा चुनावों की तैयारियों के मद्देनजर भाजपा एवं कांग्रेस के नेता आलाकमान के साथ लम्बी बैठकें कर 2019 के लोकसभा चुनावों को लेकर सक्रिय हो गये हैं। सांसदों, विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों को साफ निर्देश दिया गया है कि वह बूथ स्तर पर हर कार्यकर्ता से फीडबैक लेकर आगामी रणनीति बनाएं। 2019 के लोकसभा चुनावों को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की दिल्ली में कई बैठकें हो चुकी हैं। कांग्रेस दो खेमों में बंटी नजर आ रही है। वीरभद्र सिंह प्रदेश अध्यक्ष सुखू को बदले बगैर लोकसभा चुनावों में सक्रिय भूमिका निभाने से इन्कार कर चुके हैं और कांग्रेस आलाकमान नेतृत्व बदलने को लेकर पेशोपेश में है। ऐसा माना जा रहा है कि वीरभद्र सिंह की सक्रिय भूमिका के बिना कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है। अतः पार्टी चुनावों से पूर्व पार्टी की कमान किसी सर्वमान्य वरिष्ठ नेता को देने पर विचार कर रही है। 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के नाम पर भाजपा ने चारों सीटें जीत ली थीं लेकिन इस बार पार्टी को विरोध झेलना पड़ सकता है। हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद न तो अपराधों में कमी आई है और न महंगाई कम हुई है। उल्टे शराब के दामों में 25 प्रतिशत की भारी−भरकम बढ़ोत्तरी कर दी गई है।

 

2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2017 के विधानसभा चुनावों में प्रदेश के सांसदों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। सबसे ज्यादा नुकसान हमीरपुर और शिमला लोकसभा सीटों पर हुआ है। मंडी लोकसभा सीट की विधानसभा सीटों पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुखराम एवं उनके बेटे अनिल शर्मा के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने से फायदा हुआ है जिसे सांसद रामस्वरूप शर्मा अपनी जीत बता रहे हैं। मंडी जिले की सभी 10 विधानसभा सीटें जीतने का फायदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को मिला है जिसके कारण उनका मुख्यमंत्री बनना निश्चित हुआ है। मंडी की कुल 17 विधानसभा सीटों में से पिछले 2014 के लोकसभा चुनावों में 5 विधानसभा सीटों पर हार मिली थी जबकि विधानसभा में इस बार 4 सीटों पर पार्टी को हार मिली है। कांगड़ा संसदीय सीट पर 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को सभी विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी जबकि इस बार 4 विधानसभा सीटों पर भाजपा की हार हुई है।

 

विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान हमीरपुर संसदीय क्षेत्र की 17 विधानसभा सीटों पर हुआ है। हर विधानसभा क्षेत्र के मतदान प्रतिशत में गिरावट आई है। हमीरपुर संसदीय सीट पिछले काफी अरसे से  भाजपा का गढ़ रही है। विधानसभा सीटों पर कम प्रतिशत मतदान होना वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। हालांकि विधानसभा चुनावों के बाद अनुराग ठाकुर अधिक सक्रिय होकर अपने संसदीय क्षेत्र में काम कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव में प्रेम कुमार धूमल की हार से पूरे हमीरपुर जिले में सन्नाटा था। भारतीय जनता पार्टी, स्वयं धूमल और अनुराग ठाकुर ने भी सपने में भी नहीं सोचा था कि हमीरपुर जिले की पांच सीटों में से तीन पर भाजपा की हार होगी और धूमल स्वयं भी हार जाएंगे। हमीरपुर लोकसभा सीट पर प्रेम कुमार धूमल का दबदबा रहा है और दशकों से यहां भाजपा का कब्जा है। हमीरपुर ही नहीं पूरे प्रदेश में धूमल की लोकप्रियता है लेकिन हार के बाद वह ज्यादातर हमीरपुर संसदीय सीट तक ही सीमित हो गये हैं। प्रदेश को अभी बड़े एवं प्रभावशाली परिपक्व नेता की कमी खल रही है।  प्रेम कुमार धूमल के भविष्य के लेकर भाजपा आलाकमान अभी खामोश है हालांकि जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री नियुक्त करने के बाद पार्टी आलाकमान ने धूमल को दिल्ली बुला कर भविष्य के लिए आश्वस्त किया था लेकिन भाजपा संगठन या सरकार में उनकी भूमिका फिलहाल नदारद है जिससे उनके शुभचिन्तक निराश हैं। लेकिन यह तय है कि उनको साइडलाइन करने से भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। वैसे कहा जा रहा है कि शांता कुमार के चुनाव न लड़ने की स्थिति में धूमल को कांगड़ा से चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। धूमल ने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया है कि वह उनकी हार को भूल कर लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुट जाएं।

 

सांसद अनुराग की संसदीय की सीट की विधानसभा सीट से उनके पिता और मुख्यमंत्री प्रत्याशी प्रेम कुमार धूमल, ऊना से प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती, नदौन से विजय अग्निहोत्री और पांच बार से देहरा से विधायक एवं मंत्री रहे रविंद्र रवि चुनाव हार गए। शिमला में भी भाजपा पहले की अपेक्षा कमजोर हुई है जबकि विधानसभा सीटों के हिसाब से कांग्रेस ने अपने प्रदर्शन में सुधार किया है। आरक्षित शिमला संसदीय सीट पर वीरेंद्र कश्यप वर्ष 2014 में 17 में से 3 विधानसभा सीटों पर हारे थे जबकि इस बार 9 विधानसभा सीटों पर भाजपा को हारी मिली है। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में भाजपा एक भी सीट नहीं हारी थी, जबकि इस बार भाजपा चार सीटों पर हारी है।

 

-विजय शर्मा

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