रायबरेली में 5 ब्राह्मणों की हत्या योगी सरकार के लिए नई परेशानी

By अजय कुमार | Jul 15, 2017

कभी ब्राह्मण की हत्या पर त्रिलोक के स्वामी भगवान शिव और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भले ही ब्राह्मण की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिये प्रायश्चित किया होगा, लेकिन आज उत्तर प्रदेश में 26 जून को पांच ब्राह्मणों की हत्या को लेकर कहीं कोई प्रायश्चित जैसी बात तो नहीं दिख रही है। अलबत्ता इस हत्याकांड ने राज्य की सियासत को जरूर हिलाकर रख दिया है। लम्बे समय से मुस्लिम और दलित−पिछड़ा राजनीति में सराबोर रहने वाला यह राज्य संभवतः पहली बार ब्राह्मणों की हत्या के कारण सुर्खियां बटोर रहा है। कोई भी राजनैतिक दल यह समझ ही नहीं पा रहा है कि यह मात्र कानून व्यवस्था का मसला है या फिर अगड़े (ब्राह्मण), पिछड़ों (यादव) के बीच का जातीय विद्वेष। यही वजह है एक ही दल के तमाम नेता अलग−अलग सुर अलाप रहे हैं। सभी सियासी पार्टियों में कमोबेश यही स्थिति नजर आ रही है। पार्टी की लाइन तो कोई रह नहीं गई है। सत्तारूढ़ बीजेपी भी इससे अछूती नहीं रह पाई। अपनी जाति को देखकर कोई नेता ब्राह्मण ही हत्या के पक्ष में नाराजगी जता रहा है तो कई नेता मृतकों का कथित इतिहास खंगाल कर हत्यारों के पक्ष में लामबंद नजर आ रहे हैं, जिसके चलते सड़क ही नहीं विधान सभा का बजट सत्र तक अखाड़ा बन गया। पहले−पहल जिले भर में जो मुद्दा चर्चा बटोर रहा था और जहां आरोपी के परिवार के साथ यादव एवं पिछड़ा समाज तो वहीं ब्राह्मण समाज के साथ जिले का प्रबुद्ध समाज खड़ा दिखाई पड़ा। बाद में सामूहिक हत्याकांड के चलते समाज में जातीय बंटवारे की यही तस्वीर पूरे प्रदेश में नजर आने लगी। 100 दिन के दौरान योगी सरकार ने जहां एक ओर सहारनपुर का जातीय संघर्ष झेला तो वहीं इन दिनों रायबरेली के ऊंचाहार तहसील के अप्टा गांव में हुए सामूहिक हत्याकांड ने उसे खासा परेशान कर रखा है। मुख्यमंत्री योगी के लिए सबसे मुश्किल बात यह है कि इस मुद्दे पर उसके दो मंत्रियों ने अलग−अलग रुख पकड़ रखा है। यही वजह है कि लोग रायबरेली की इस घटना को सरकार की सबसे बड़ी परीक्षा मान रहे हैं।

रायबरेली कांड के कारण विधान सभा तो अखाड़ा बन ही चुकी थी बाद में इसकी तपिश विधान परिषद में दिखाई दी। परिषद में रायबरेली हत्याकांड पर विपक्ष ने योगी सरकार को खूब खरीखोटी सुनाई। कहा कि सरकार के मंत्रियों की दोहरी बयानबाजी के कारण कोई भी एजेंसी मामले की निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती। इस मामले की सीबीआई जांच करवाई जाए। साथ ही आरोपितों की तरफदारी करने वाले मंत्री को बर्खास्त करने की भी मांग उठाई गई।

 

इसी मुद्दे पर बसपा ने सदन से वॉकआउट किया। सदन में बीएसपी विधान परिषद दल के नेता सुनील कुमार चित्तौड़ ने कहा कि रायबरेली की घटना शर्मनाक है। खुद सरकार के ही एक मंत्री अपराधियों के पक्ष में बयानबाजी करके उनको संरक्षण दे रहे हैं। ऐसे मंत्री को बर्खास्त किया जाए। विधान परिषद सदस्य नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि प्रदेश की कोई एजेंसी निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती। केंद्र और राज्य दोनों में एक ही पार्टी की सरकार है। ऐसे में सीबीआई जांच कराने में दिक्कत क्या है। कांग्रेस के नेता दिनेश प्रताप सिंह ने भी इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की। इस पर नेता सदन डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि रायबरेली की घटना में चारों नामजद और पांच अज्ञात गिरफ्तार किए जा चुके हैं। सरकार गंभीर है और सख्त कार्रवाई कर रही है। इस पर नेता प्रतिपक्ष अहमद हसन ने कहा कि आपने वादा किया था कि हमारे आते ही गुंडे और बदमाश यूपी छोड़ देंगे, लेकिन लग रहा है कि हिंदुस्तान भर के गुंडे प्रदेश में आ गए हैं। आरोपों के जवाब में नेता सदन डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि पिछली सरकार में मुकदमे ही दर्ज नहीं होते थे। हमारी सरकार बनी है, तब से नए और पुराने मुकदमे दर्ज होने शुरू हुए हैं। उन्होंने विपक्ष के अपराध के आंकड़ों को भी गलत बताया। कहा कि हत्या के मामलों में 4.43 प्रतिशत कमी आई है। दहेज हत्या के 88,093 मामले दर्ज हुए। इनमें से 75,436 की गिरफ्तारी हुई। महिला उत्पीड़न के 16,152 मामलों में 11,922 की गिरफ्तारी हुई।

 

उधर, वह योगी सरकार जो महज 100 दिन के अपने तमाम अहम फैसलों के जरिए और 'सबका साथ, सबका विकास' के मूलमंत्र के सहारे खुद को दूसरों दलों से अलग साबित करने में लगी थी, उसी के मंत्रियों की गलत बयानबाजी और बयानों की वजह से सरकार की किरकिरी होने लगी है। कहीं मंत्री की सिफारिशों के खिलाफ विधायक तो कहीं, मंत्री अपनी ही सरकार के स्टैंड के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। इसमें वह नेता सबसे बड़े सरदर्द बने जो चुनावी बेला में दूसरे दलों से बीजेपी में आये थे। इसके चलते पार्टी प्रवक्ताओं को भी सरकार के पक्ष में बोलते समय अपने ही मंत्रियों के बयान पर स्टैंड लेने में मुश्किलें आती दिखीं।

 

दरअसल, रायबरेली सामूहिक हत्याकांड पर योगी के मंत्री ही एक−दूसरे को पटकनी देने में लगे हुए थे। उधर समय रहते उचित कदम नहीं उठाये जाने की वजह से सामूहिक हत्याकांड को लेकर सोशल मीडिया से लेकर दूसरे मंचों पर सरकार की जमकर किरकिरी हो रही थी। इस बात का अहसास जब सरकार को हुआ था तो सीएम योगी ने न केवल पीड़ित परिवारों को आर्थिक सहायता की घोषणा की बल्कि मामले के खुलासे के लिए अधिकारियों को विशेष निर्देश जारी कर दिये। दोनों ही डिप्टी सीएम भी पीड़ित परिवारों के मदद के साथ ही आरोपितों पर कड़ी कार्रवाई की बात कह चुके थे। इससे उलट बसपाई से भाजपाई बने कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार आरोपितों के पक्ष में बयान दे रहे हैं। मौर्य इसे जातिवादी राजनीति बताते हुए कह रहे थे कि 'मृतकों के खिलाफ कई आपराधिक मुकदमे थे। ऐसे लोग किसी को गोली मारने जाएंगे तो पूजे नहीं जाएंगे। वह एक तरह से हत्यारों के पक्ष में नजर आ रहे थे। हालांकि पुलिस मरने वालों की हिस्ट्रीशीट होने से इनकार कर रही थी। इसी वजह से स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से योगी सरकार ने पल्ला झाड़ लिया। स्वामी के साथ योगी कैबिनेट में मंत्री मित्र और बीएसपी में स्वामी के साथी रह चुके कानून मंत्री और ब्राह्मण चेहरा बृजेश पाठक ने स्वामी के बयान को गैर जिम्मेदाराना बताते हुए इसकी निंदा शुरू कर दी। उनका कहना था कि पुलिस को भी स्वामी के बयान का संज्ञान नहीं लेना चाहिए। इसी तरह प्रतापगढ़ में भी योगी के मंत्री मोती सिंह और बीजेपी की गठबंधन सहयोगी अपना दल के सांसद हरिवंश सिंह के मतभेद खुलकर सार्वजनिक मंचों पर आने लगे।

 

योगी सरकार अपने मंत्रियों की विवादास्पद बयानबाजी से हल्कान थी तो इस मामले को तूल देने में कांग्रेस के सांसद प्रमोद तिवारी और सपा नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. मनोज पाण्डेय का नाम भी सामने आ रहा था। कहा यह जा रहा था कि पूरे मामले को कांग्रेस से राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी और सपा विधायक मनोज पाण्डेय ने ब्राह्मण बनाम यादव बनाकर तूल देने में मुख्य भूमिका निभाई थी।

 

बसपा प्रमुख मायावती ने इस बीच एक बड़ा बयान दिया और कहा कि वह रायबरेली में 26 जून की देर रात अपटा गांव में असलहों के साथ आए पांच ब्राह्मणों की कार में जलाकर मार डाले जाने के मुद्दे को सदन में उठाएंगी। इसके पहले भीम आर्मी को लेकर भी मायावती ने गैरजिम्मेदाराना बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि भीम आर्मी से उनका कोई संबंध नहीं है। मायावती ने कहा कि भाजपा सरकार में पूरे प्रदेश में जंगल राज है। वह रायबरेली में पांच ब्राह्मणों की हत्या का मुद्दा राज्यसभा में उठाएंगी। 

 

यह था पूरा मामला

 

ऊंचाहार (रायबरेली) के इटौरा बुजर्ग गांव की प्रधानी को लेकर चल रही रंजिश में 26 जून 2017 की रात सामूहिक हत्याकांड हुआ था। हत्याकांड की जड़ में जाकर देखा गया तो पता चला कि प्रतापगढ़ के संग्रामगढ़ थाना क्षेत्र अंतर्गत देवरा गांव के पूर्व प्रधान रोहित शुक्ल के भाई देवेश शुक्ल की ससुराल इटौरा बुजुर्ग के पूरे भुसई पांडेय का पुरवा में है। रोहित इटौरा बुजुर्ग से प्रधानी का चुनाव लड़ना चाहता था, इसलिए उसने पूरे भुसई में मकान बनवाना शुरू कर दिया। प्रधानी के चुनाव को लेकर रोहित की वर्तमान ग्राम प्रधान रामश्री के बेटे राजा यादव उर्फ विजय बहादुर से ठन गई थी। 

 

गांव वालों के मुताबित 26 जून की रात लगभग साढ़े 8 बजे रोहित अपने छह साथियों के साथ स्कॉर्पियो से प्रधान रामश्री के घर इटौरा बुजुर्ग गांव के मजरा आप्टा पहुंचा। यहां रोहित के कुछ साथियों ने अपना रूतबा दिखाने के लिये हवाई फायरिंग कर दहशत फैलाने की कोशिश की और प्रधान के घरवालों को बाहर निकले के लिए ललकारा। इसी बीच गांव के लोग मौके पर जुट गए उन्होंने रोहित व उसके साथियों को दौड़ा लिया। गांव वालों को अपनी ओर आता देख रोहित अपने साथियों के साथ गाड़ी पर सवार होकर हाईवे की ओर भागा, लेकिन रास्ते में ही उनकी कार बिजली के खंभे से टकराकर पलट गई। बताते हैं कि रोहित व बृजेश शुक्ल गाड़ी में ही फंसे रह गए। वहीं अनूप मिश्र, अंकुश मिश्र, नरेश शुक्ल, देवेश शुक्ल व वीरू पांडेय कार से निकलकर भागने लगे। गांव वालों ने अनूप, अंकुश और नरेश को पकड़ लिया और खेत में ही पीट−पीटकर मार डाला। भीड़ ने पेट्रोल डालकर गाड़ी में आग लगा दी, जिसमें रोहित व बृजेश जिंदा जल गए। देवेश और वीरू ने किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई। सामूहिक हत्याकांड की सूचना पर रात करीब 11 बजे पुलिस अधीक्षक गौरव सिंह पुलिस फोर्स के साथ घटना स्थल पर पहुंचे। इसके बाद जिलाधिकारी अभय भी इटौरा पहुंच गए। पांच लोगों की मौत की सूचना पर मौके पर आईजी जेएन सिंह व एडीजी अभय प्रताप भी पहुंच गए। पुलिस के मुताबिक रात में ही ग्राम प्रधान के पुत्र विजय यादव, प्रदीप यादव व कृष्ण कुमार यादव को गिरफ्तार कर लिया गया। एसपी गौरव सिंह ने भी कहा कि चुनावी रंजिश के चलते वारदात होने की बात सामने आ रही है।

 

- अजय कुमार

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