By नीरज कुमार दुबे | Jul 03, 2025
अगले वर्ष होने वाले असम विधानसभा चुनावों के लिए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने चुनाव प्रचार का बिगुल बजाते हुए अपने अंदाज़ में आक्रामक अभियान भी शुरू कर दिया है। हम आपको बता दें कि भाजपा के नेतृत्व वाली असम सरकार ने हाल के महीनों में "अवैध बांग्लादेशी" नागरिकों की पहचान और निष्कासन के लिए एक तीव्र कानूनी अभियान तो छेड़ा ही है साथ ही राज्य में अवैध मवेशी वध और गोमांस बेचने वालों की धरपकड़ भी तेजी से की जा रही है। यही नहीं, असम सरकार ने नलबाड़ी जिले में 82 बीघा ग्राम चरागाह आरक्षित (वीजीआर) भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए बेदखली अभियान भी सफलतापूर्वक चलाया। हम आपको यह भी बता दें कि हाल के भारत-पाक सैन्य टकराव के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले लगभग 100 लोगों की गिरफ्तारी कर हिमंत बिस्व सरमा की सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत में रह कर पाकिस्तान का गुण गाने वालों को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। इसके अलावा हाल ही में "मूल निवासी" लोगों को हथियार लाइसेंस देने का निर्णय भी अवैध बांग्लादेशियों के खिलाफ हिमंत बिस्व सरमा के एक सख्त कदम के रूप में देखा गया था।
जहां तक अवैध बांग्लादेशियों की पहचान कर उन्हें खदेड़ने के अभियान की बात है तो आपको बता दें कि हिमंत बिस्व सरमा सरकार ने अप्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 को पुनः सक्रिय किया है। यह कानून केंद्र सरकार और जिलाधिकारियों को यह अधिकार देता है कि वे ऐसे व्यक्तियों को निष्कासित कर सकें जो भारत के बाहर से असम आए हों और जिनकी उपस्थिति सार्वजनिक हितों के प्रतिकूल हो। यह विधिक मार्ग न्यायिक प्रक्रियाओं की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी है और मुख्यमंत्री सरमा के अनुसार, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने भी इस रास्ते को वैध करार दिया है।
साथ ही मुख्यमंत्री सरमा ने सुरक्षा और अवैध प्रवासन को "जनसंख्या संतुलन" से भी जोड़ दिया है। मुख्यमंत्री ने अवैध बांग्ला-भाषी मुस्लिमों द्वारा भूमि अतिक्रमण के खिलाफ भी सख्ती से कार्रवाई शुरू की है और मांस मिलने की घटनाओं से भी असम पुलिस सख्ती से निपट रही है। हम आपको बता दें कि असम मवेशी संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन के सिलसिले में लगभग 200 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और राज्य भर में 1.7 टन से अधिक संदिग्ध गोमांस जब्त किया गया। पुलिस महानिरीक्षक (कानून एवं व्यवस्था) अखिलेश कुमार सिंह के अनुसार, मवेशियों के अवैध वध और रेस्तरां में अनधिकृत रूप से गोमांस बेचने की घटनाओं की जांच के लिए मंगलवार को पूरे असम में अभियान चलाया गया। उन्होंने बताया कि पुलिस ने असम के लगभग सभी जिलों में 178 होटलों, रेस्तरां और बूचड़खानों की तलाशी ली है। उन्होंने कहा कि अधिनियम के उल्लंघन के खिलाफ अभियान आने वाले दिनों में भी जारी रहेगा। हम आपको बता दें कि असम में गोमांस का सेवन गैरकानूनी नहीं है, लेकिन असम मवेशी संरक्षण अधिनियम, 2021 उन इलाकों में मवेशी वध और गोमांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाता है जहां हिंदू, जैन और सिख बहुसंख्यक हैं। किसी मंदिर या सत्र (वैष्णव मठ) के पांच किलोमीटर के दायरे में भी ये प्रतिबंध लागू होते हैं।
इसके अलावा, असम सरकार ने नलबाड़ी जिले में 82 बीघा ग्राम चरागाह आरक्षित (वीजीआर) भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए सोमवार को बेदखली अभियान शुरू किया। बरखेत्री राजस्व क्षेत्र के अंतर्गत बाकरीकुची गांव में सुबह कड़ी सुरक्षा के बीच यह अभियान शुरू किया गया। जिला आयुक्त निबेदान दास पटवारी ने संवाददाताओं को बताया कि क्षेत्रीय कार्यालय ने तीन जून को एक नोटिस जारी कर अतिक्रमणकारियों को वीजीआर भूमि खाली करने के लिए कहा था, लेकिन वे गुवाहाटी उच्च न्यायालय चले गये थे। उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि राज्य भर में वीजीआर की सभी भूमि को खाली कराया जाए। हम आपको बता दें कि गांवों में पशुओं को चराने के उद्देश्य से आरक्षित की गई भूमि को वीजीआर कहा जाता है। क्षेत्रीय अधिकारी ने बताया कि कुल 452 बीघा जमीन पर अतिक्रमण किया गया है लेकिन लोगों ने केवल 82 बीघा जमीन पर घर बनाए हुए हैं। उन्होंने कहा कि अतिक्रमणकारी बाकी जमीन का इस्तेमाल मछली पालन और खेती के लिए कर रहे थे। हम आपको बता दें कि असम में अधिकतर सरकारी जमीन पर कब्जा कर घर बनाने वालों में बांग्लादेशी मुस्लिम ही होते हैं।
असम में इस समय जो राजनीतिक स्थिति है उसको देखते हुए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा तो राजनीतिक रूप से मजबूत नजर आ रहे हैं लेकिन विपक्षी कांग्रेस बड़े धर्मसंकट में फंस गयी है। दरअसल यदि वह सरमा के अभियानों का विरोध करने उतरती है तो उस पर “विदेशी समर्थक” होने का आरोप लगता है। यदि वह चुप रहती है, तो उसका कथित धर्मनिरपेक्ष स्वरूप प्रभावित होता है। हम आपको यह भी बता दें कि हाल ही में सांसद गौरव गोगोई को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया, लेकिन उनकी विदेशी मूल की पत्नी को लेकर भाजपा उन पर हमलावर है।
बहरहाल, कुल मिलाकर देखें तो हिमंत बिस्व सरमा की रणनीति न केवल भाजपा के परंपरागत मतदाताओं को एकजुट करने की है, बल्कि राज्य की राजनीतिक परिभाषा को भी पुनर्निर्धारित करने की है। प्रवासन, पहचान, धर्म और सुरक्षा, इन सबको मिलाकर वे एक ऐसा नैरेटिव तैयार कर रहे हैं जिससे चुनावी लाभ प्राप्त किया जा सके। हालांकि असम में हो रहा तेज विकास, राज्य को केंद्र से मिल रहा हर प्रकार का समर्थन और उग्रवाद के लगभग खत्म होने से मुख्यमंत्री की छवि एक विकास पुरुष की भी बनी है।