By अनन्या मिश्रा | Nov 01, 2025
द्वापर युग में घटित कंस वध सिर्फ एक सामान्य घटना नहीं थी, बल्कि यह धर्म और अधर्म के संघर्ष का प्रतीक थी। भगवान श्रीहरि विष्णु ने इस युग में जब श्रीकृष्ण रूप में अवतार लिया था। तो उनका मुख्य उद्देश्य था पृथ्वी को अत्याचारों से मुक्त करना और धर्म की स्थापना करना। मथुरा का अत्याचारी राजा कंस अपने ही पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर उनके राज्य पर शासन कर रहा था। कंस ने देवताओं को भी भयभीत कर चुका था, जिससे लोग त्राहिमाम कर रहे थे।
हिंदू पंचांग के मुताबिक कंस वध उत्सव कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन दीपावली के करीब 10 दिन बाद आता है। इसलिए कई स्थानों पर दीपावली से जुड़े अनुष्ठान दशमी तिथि तक जारी रहते हैं। वहीं कंस वध की पवित्र श्रृंखला के साथ इस पर्व का समापन करते हैं। द्रिक पंचांग के अनुसार इस बार 01 नवंबर 2025 को कंस वध का पर्व मनाया जा रहा है।
मथुरा के राजा कंस की बहन देवकी का विवाह जब वसुदेव से संपन्न हुआ, तो उसी समय आकाशवाणी हुई, 'हे कंस तुम्हारी बहन देवकी की आठवीं संतान तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगी।' यह आकाशवाणी सुनकर कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और एक-एककर देवकी की हर संतान को जन्म लेते ही मार दिया। लेकिन आठवीं संतान श्रीकृष्ण देव योग से बच गए और वसुदेव ने उनको गोकुल पहुंचा दिया। जहां पर श्रीकृष्ण का पालन नंदबाबा और मां यशोदा ने किया। बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण ने पूतना वध, कालिया दमन जैसे कई कारनामे किए।
इस तरह से श्रीकृष्ण के पराक्रम के चर्चे चारों ओर फैल गए। आखिर में कंस ने श्रीकृष्ण को मथुरा बिलाने का षडयंत्र रचा। जिससे कि श्रीकृष्ण को कुश्ती के बहाने मारा जा सके। लेकिन श्रीकृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे, तो भला उनको कौन मार सकता था। ऐसे में बुलावा आने पर श्रीकृष्ण और बलराम मथुरा पहुंचे और उन्होंने अपने पराक्रम से कंस के हाथी कुवलयापीड को मार दिया। फिर श्रीकृष्ण ने चाणूर और मुष्टिक जैसे पहलवानों को मार गिराया।
अपने महाबलियों को परास्त होता देखकर कंस स्वयं अखाड़े में उतर आया। इस पर श्रीकृष्ण ने बिना विलंब के कंस का भी वध कर दिया। इसके बाद श्रीकृष्ण ने अपने नाना उग्रसेन को पुन: सिंहासन पर बिठाया और प्रजा को भयमुक्त जीवन जीने का वचन दिया।
बता दें कि कंस वध सिर्फ एक युद्ध नहीं बल्कि अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। कंस वध कथा हमें यह सिखाती है कि जब भी धर्म डगमगाने लगता है, तब श्रीकृष्ण स्वयं हमारे भीतर जन्म लेते हैं। कंस वध के अगले दिन देव उत्थान एकादशी का पर्व मनाया जाता है।