By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | Jul 09, 2025
वस्तु एवं सेवा कर यानी कि जीएसटी की चार स्लेबों में से दूसरी 12 प्रतिशत की स्लेब को लेकर जिस तरह की चर्चाएं आम हो रही है उससे मध्य व निम्न वर्ग में आशा का संचार होने लगा है। दरअसल समाज का मध्यम और निम्न वर्ग सबसे अधिक प्रभावित जीएसटी की 12 प्रतिशत वाली स्लेब से ही हो रहे हैं। इन वर्गों से जुडी वस्तुएं या सेवाओं पर लगने वाला कर सीधा सीधा इन्हें प्रभावित करता है। इसका कारण भी साफ है कि दैनिक उपभोग की अधिकांश वस्तुएं इसी स्लेब में आती है। खाने-पीने की वस्तुओं के साथ ही जूते-चप्पल, कपड़े आदि भी इसी स्लेब में आते हैं। हांलाकि विशेषज्ञों के अनुसार 12 प्रतिशत की स्लेब पर निर्णय से सरकार पर 40 से 50 हजार करोड़ रुपए के राजस्व का असर पड़ेगा पर यह भी माना जा रहा है कि बाजार में इन वस्तुओं की मांग बढ़ेगी और मांग बढ़ने से काफी मात्रा में राजस्व पूर्ति हो सकेगी। वैसे भी फ्री बीज के नाम पर बहुत कुछ जा रहा है तो फिर यदि बड़ी आबादी को राहत और लोकहित में कोई निर्णय किया जाता है तो वह अधिक लाभकारी होता है। हालांकि इस निर्णय के भी बिहार सहित अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों से जोड़कर राजनीतिक अर्थ निकाले जाएंगे पर इस तरह के निर्णयों पर राजनीति करना उचित नहीं कहा जा सकता। जानकारों के अनुसार जीएसटी काउंसिल की आगामी बैठक में 12 प्रतिशत वाली स्लेब को या तो विलोपित करने पर विचार किया जा सकता है या फिर इसमें से आम उपभोग की वस्तुओं को पांच प्रतिशत की स्लेब के दायरें में लाया जा सकता है। 12 प्रतिशत की स्लेब को विलोपित किया जाता है तो इसके दायरें में आ रही वस्तुएं या सेवाएं 5 प्रतिशत की स्लेब दायरें में आने की अधिक संभावना हैं। यदि विलोपित भी नहीं की जाती है और आज की प्रचलित चार स्लेबों 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत में से सीधे आम उपभोग की वस्तुओं और सेवाओं को नीचे वाली और शेष को अन्य स्लेबों में समायोजित किया जा सकता है। बढ़ती मंहगाई के कारण आम नागरिकों खासतौर से मध्य और निम्न मध्य वर्ग को राहत दिलाने के लिए इस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है।
जीएसटी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली होने के साथ ही समूचे देश में कर की एकरुपता के लिए 1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू की गई थी। देश में असम पहला प्रदेश था जिसने सबसे पहले जीएसटी को अपनाया। अब तो समूचे देश में जीएसटी व्यवस्था लागू हो चुकी है। अब तक जीएसटी काउंसिल की 57 बैठके हो चुकी है और इनमें अनवरत रुप से सुधार व बदलाव किया जाता रहा है। 12 प्रतिशत के बदलाव की चर्चा छेड़कर बैठक से पहले ही बहस छेड़ दी गई है। इसे सकारात्मक भी माना जाना चाहिए क्योंकि जीएसटी स्लेबों के निर्धारत में राज्यों की भी प्रमुख भूमिका होती है। जीएसटी काउंसिल में राज्यों के प्रतिनिधि भी हिस्सा लेते हैं और उसी में निर्णय किया जाता है। जीएसटी से संग्रहित होने वाली राशि राज्यों को भी मिलती है तो समूचे देश में एक वस्तु पर एक ही दर लगने से अदायगी राशि एक ही होती है। जीएसटी यानी कि एक राष्ट्र एक कर की अवधारणा अटल बिहारी वाजपेई के प्रधानमंत्री काल में सामने आई थी। डॉ. विजय केलकर की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन हुआ। समान कर की बात तो सभी सरकारों द्वारा की जाती रही पर 1 जुलाई 2017 को यह व्यवस्था लागू हो सकी। हांलाकि आमनागरिकों की भारी मांग के बावजूद पेट्रोल-डीजल को अभी तक जीएसटी के दायरें में नहीं लाया जा सका है और इसका कारण भी बड़ा साफ है कि इसमें केन्द्र राज्यों की सभी सरकारों के हित जुड़े हुए हैं। पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ने और इस पर कितना कर लग रहा है इस पर तो पक्ष विपक्ष हल्ला तो बोल लेते हैं पर कभी जीएसटी के दायरें में लाने के सार्थक प्रयास नहीं कर पाये हैं।
समान कर प्रणाली की अवधारणा सबसे पहले फ्रांस में आई। 1954 में फ्रांस में जीन वेप्टिस्ट कालवर्ट जीएसटी की अवधारणा सामने लाये और इस समान कर प्रणाली की सकारात्मकता का ही परिणाम है कि दुनिया क 160 देशों में जीएसटी जैसी समान कर प्रणाली प्रचलन में है। हमारे देश में 12 प्रतिशत की स्लेब इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है कि दैनिक उपभोग की अधिकांश वस्तुएं इसी कर दायरें में आती है। एक हजार रु. से अधिक के कपड़े जूते से लेकर घी, तेल, मक्खन, डेयरी उत्पाद, सब्जियां, फल, मेवे सहित खाद्य पदार्थ, पेय पदार्थ, 20 लीटर पैक में पीने के पानी की बोतल, कॉटन हैण्ड बैग जूट का सामान, पत्थर और लकड़ी आदि की मूर्तियां, चश्मा, बच्चों की पेंसिल स्लेट, खेल का सामान, यहां तक कि क्लीन एनर्जी डिवाइस सहित बहुत सारी वस्तुएं इस दायरें में आती है। सीधी सी बात यह है कि यह वस्तुएं ऐशो-आराम की वस्तुएं तो है नहीं और कम से कम मध्यवर्गीय परिवार तो इन्हें खरीदता ही है तो निम्न वर्ग परिवार भी दूसरी कटौती या अपना पेट काटकर इन्हें खरिदता है। ऐसे में 12 प्रतिशत की स्लेब पर विचार निश्चित रुप से सकारात्मक संदेश देता है। बैसे भी 12 प्रतिशत की स्लेब को लेकर जो बहस छिड़ी है उसमें सकारात्मक पक्ष ही खुलकर सामने आया है और विशेषज्ञों ने इस स्लेब में किसी तरह के बदलाव को लेकर नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी है। ऐसे में आगामी जीएसटी काउंसिल की बैठक में 12 प्रतिशत की स्लेब में बदलाव करते हुए देश के बड़े वर्ग को राहत दी जाती है तो यह देश की अर्थ व्यवस्था को राहत देने वाला, एमएसएमई सेक्टर को बढ़ावा देने वाला और आम जन के हित का निर्णय होगा। क्योंकि इस स्लेब के अधिकांश उत्पाद एमएसएमई सेक्टर द्वारा ही तैयार किए जाते हैं और स्लेब में बदलाव होने से इन वस्तुओं की मांग बढ़ेगी और इससे सेक्टर में ग्रोथ के साथ ही लोगों को राहत मिल सकेगी।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा