चीन के आक्रामक रवैये ने यूरोप को किया दूर, ताइवन से बढ़ी नजदीकी

By अभिनय आकाश | Dec 09, 2021

चीन के आक्रमक और अतिक्रमणवादी रवैये की वजह से अब यूरोप का झुकाव ताइवान की ओर बढ़ने लगा है। 4 नवंबर को यूरोपीय संसद की एक फ्रांसीसी सदस्य, राफेल ग्लुक्समैन ने ताइवान के राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के साथ अपने प्रतिनिधिमंडल की ताइवान यात्रा का समापन यह घोषणा करते हुए किया कि यूरोप आपके साथ खड़ा है। चीन के बारे में यूरोप की सोच में बदलाव का सीधा संदेश देते हैं। शिनजियांग में मानवाधिकारों के हनन की खबर लगातार आती रहती है। यूरोप ने पहला आधिकारिक संसदीय प्रतिनिधिमंडल ताइवान भेजा है। सामान्य रूप से स्थिर यूरोपीय संघ ने दुनिया की बढ़ती महाशक्ति पर अपने रूख में बदलाव करते हुए दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए एक उदाहरण स्थापित करने की कोशिश की है। 

कैसे चीन से दूर हुआ यूरोप

यूरोपीय संघ चीन का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है बावजूद इसके हाल के दिनों में यूरोपीय महादेश में चीन के निवेश की महत्वाकांक्षाओं के साथ-साथ घरेलू मानवाधिकार के मुद्दों पर गंभीर चिंता उभर कर सामने आई हैं। दक्षिणी और पूर्वी यूरोप में चीन वन बेल्ट एंड वन रोड की पहल के जरिए निवेश बढ़ाता रहा है, जो एकीकृत यूरोप के लिए चीन के प्रति गंभीर चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। यूरोपीय संसद (एमईपी) के अधिकांश सदस्यों ने आयोग पर संयुक्त राज्य अमेरिका के विश्वास का उल्लंघन करने और मानवाधिकारों पर यूरोपीय संघ की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का आरोप लगाते हुए एक त्वरित निंदा जारी की। मार्च में, चीन के साथ यूरोपीय संघ के संबंधों ने एक मोड़ लिया जब यूरोपीय संघ ने शिनजियांग में मानवाधिकारों के हनन में शामिल चीनी सरकारी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए यूएस, यूके और कनाडा के साथ समन्वय किया। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साझा प्रयास के बाद कई तरह के प्रतिबंधों की घोषणा की गई है। चीन ने टिट फॉर टैट वाली प्रतिक्रिया अपनाते हुए इसके जवाब में यूरोपीय अधिकारियों पर अपने प्रतिबंधों की घोषणा की दी।

रूख में बदलाव

शी जिनपिंग के शासन में चीन की बढ़ती मुखरता ने यूरोपीय संघ के हृदय परिवर्तन का प्लाट तैयार किया। उसे लगा कि यूरोप अपने मानवाधिकारों और विदेश नीति की चिंताओं को चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों की वजह से नरअंदाज  कर जाएगा। चीन की घरेलू और विदेश नीति में आए आमूलचूल मोड़ ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। हांगकांग में चीन की नागरिक स्वतंत्रता को कुचलने, शिनजियांग में मानवाधिकारों के हनन और ताइवान के प्रति आक्रामकता की वजह से यूरोपीय जनता ने चीन से मुंह मोड़ने पर मजबूर किया। यूरोपीय संघ के सबसे बड़े सदस्य देशों में बहुमत अब चीन के बारे में नकारात्मक राय रखता है। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में ताइवान को जितनी तवज्जो मिल रही है, उतनी बीते कुछ दशकों के दौरान कभी नहीं मिली। जहां ताइवान के पक्ष में सकारात्मक माहौल बना है, वहीं चीन की प्रतिष्ठा घटी है। इसके बावजूद ताइवान के भविष्य को लेकर चिंता बढ़ी है, क्योंकि बीजिंग द्वारा आक्रामक सैन्य शक्ति के प्रदर्शन का सिलसिला आने वाले दिनों में और बढ़ने की आशंका है।

 

 

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