तीन राज्यों में पदों की बंटरबांट में पांच कीमती दिन खराब कर दिये कांग्रेस ने

By योगेन्द्र योगी | Dec 18, 2018

देश में राजनीतिक दलों को यह गलतफहमी है कि मतदाता की समझ कमजोर है। मतदाता एक बार सत्ता सौंप देने के बाद पांच साल तक उनके किए−धरे को याद नहीं रखता है। मतदाताओं के बारे में इस तरह की गलतफहमियां पालने का ही परिणाम है कि ऐसा वहम पालने वाले राजनीतिक दल सत्ता से बाहर होते दिखाई देते हैं। दरअसल सत्ता में आते ही मतदाताओं की समझ को कमजोर आंकने की गलती करना दलों के लिए महंगा सौदा साबित हुआ है। आश्चर्य तो यह है कि राजनीतिक दल ऐसी पुनरावृत्तियों से बाज नहीं आते।

 

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तीन राज्यों में सत्ता हासिल करने के बाद यही हाल कांग्रेस का हो रहा है। चुनाव पूर्व कई तरह की कसमें−वादे खाने वाली कांग्रेस ने सत्ता में आते ही रंग बदलना शुरू कर दिया। होना तो यह चाहिए कि जिस दिन इन राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम आए उसके अगले ही दिन ईमानदारी से मतदाताओं से किए गए वायदों को जमीन पर उतारने के लिए कार्रवाई प्रारंभ हो जाती। इसके विपरीत इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री पद को लेकर घमासान मच गया। मतदाताओं को दरकिनार कर कांग्रेस गुटबंदी का शिकार हो गई। जिसकी पहले से ही आशंका थी, बहुमत से तीन राज्यों में सत्ता में आने के बावजूद कांग्रेस को मुख्यमंत्री चयन करने में पसीने आ गए।

 

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के कई−कई दावेदार मैदान में आ गए। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की इन राज्यों के दावेदारों के साथ चली मैराथन बैठकों के बाद बड़ी मुश्किलों से समस्या का समाधान तलाशा गया। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ आमने−सामने आ गए। दोनों में पार्टी की जीत का श्रेय लेने की होड़ मच गई। कुछ ऐसा ही हाल राजस्थान का रहा। यहां पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने अपनी−अपनी दावेदारी पेश की। कई दिनों तक गतिरोध बना रहा। मुख्यमंत्री चयन की इस सारी लंबी कवायद के बीच मध्यप्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत को जिम्मेदारी दी गई। राजस्थान में सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री का पद देकर पार्टी में संभावित कलह को टाला गया।  मुख्यमंत्री पद को लेकर नेताओं में मची जंग का कुछ ऐसा ही हाल छत्तीसगढ़ में भी रहा। यहां मुख्यमंत्री पद के चार दावेदार सामने आ गए। लग यही रहा था कि चारों ही नेता छत्तीसगढ़ के विकास और भलाई के प्रतिबद्ध हैं, इसलिए मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। बाकी और कोई ऐसा नहीं कर सकता। ऐसे में पार्टी हाईकमान ने जैसे−तैसे तीन को संतुष्ट करके भूपेष बघेल का रास्ता साफ किया। इस सारी कवायद में पांच दिन लग गए। राहुल गांधी के लिए किसी का एक चयन करना आसान नहीं रहा।

 

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इन तीनों राज्यों में कई बार कांग्रेस के केन्द्रीय पर्यवेक्षकों को भेजा गया। आखिरकार जब किसी के नाम पर सहमति नहीं बनी तो राहुल गांधी ने सारे समीकरणों को साधते हुए अंतिम निर्णय लिया। चुनाव पूर्व ही इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री पद को लेकर घुड़दौड़ की आशंका जताई जा रही थी, वह सही साबित हुई। मुख्यमंत्री का पद पार्टी के जी का जंजाल बन गया। भाजपा के पास इन तीनों राज्यों में निर्वतमान मुख्यमंत्रियों के चेहरे थे। संकट में कांग्रेस रही। कांग्रेस में घरेलू कलह के मद्देनजर किसी एक नेता को सामने रखकर चुनाव नहीं लड़ा गया। राहुल गांधी को आशंका थी कि यदि चुनाव पूर्व प्रदेश के किसी नेता का चेहरा सामने रखकर चुनाव लड़ा गया तो गुटबंदी में कांग्रेस को नुकसान होगा।

 

सत्ता के प्रलोभन में कांग्रेसी भी चुप रहे। सत्ता आते ही कांग्रेस में कलह उजागर हो गई। विधान सभा चुनावों में कहने को कांग्रेस बेशक साफ−सुथरा और विकासवादी शासन देने का दंभ भरती रही हो, किन्तु सत्ता में आते ही असली चेहरा सामने आ गया। मतदाताओं को भूल कर नेता मुख्यमंत्री की कतार में शामिल हो गए। कांग्रेस यह भूल गई कि लगभग पूरे देश से सफाए के बाद जैसे−तैसे नए सिरे से तीन राज्यों में सत्ता में वापसी हुई है। कांग्रेस ने तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री के चुनाव में पांच दिन बर्बाद कर दिए। चुनाव पूर्व आचार संहिता लगने से पहले से ही इन तीनों राज्यों में विकास कार्य प्रायः ठप्प पड़ गए। इसके बाद भी पांच दिन काम और विकास नहीं हो सके।

 

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इससे जाहिर है कि राजनीतिक दलों को समय की कीमत का अंदाजा नहीं है। ऐसे में जबकि तीनों ही प्रदेश लगभग बीमारू हालत में हैं। राष्ट्रीय−अंतरराष्ट्रीय विभिन्न मापदंडों में तीनों ही प्रदेश बुरी तरह पिछड़े हुए हैं। दस सालों तक दिन−रात लगातार काम करने से इनकी सेहत को सुधारा जा सकता है। ऐसे में पांच दिन जाया होना कितना नुकसानदेह है, इसका अंदाजा कांग्रेस को नहीं है। इन तीनों ही प्रदेशों में किसानों को खाद की कमी का सामना करना पड़ रहा है। जबकि चुनाव में कांग्रेस ने किसानों की चिंता को मुख्य मुद्दा बनाया था। इसकी चिंता करने की बजाए कांग्रेस मुख्यमंत्रियों की समस्या सुलझाने में उलझी रही। सवाल यह भी है कि आखिर मुख्यमंत्री पद इतना महत्वपूर्ण क्यों है। राज्य का संचालन संपूर्ण मंत्रिमंडल करता है।

 

 

इससे जाहिर है कि कांग्रेस ने अपने अतीत से सबक नहीं सीखा है। अभी भी पार्टी में मंत्री और मुख्यमंत्री के पद महत्वपूर्ण बने हुए हैं। सत्ता मिलते ही कांग्रेस की असलियत उजागर हो गई। इन पांच दिनों की अवधि में कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर चली उठापठक को करोड़ों मतदाताओं ने देखा−समझा है। कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए आगामी छह माह बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में इसका जवाब देना पड़ेगा। मतदाताओं की समझ को कमजोर समझने की भूल करना पहले ही कांग्रेस को भारी पड़ चुका है। मतदाताओं ने तीनों राज्यों में कांग्रेस को सत्ता सौंप कर संजीवनी देने का काम किया है। इसका उपयोग समस्याएं सुलझाने की बजाए मुख्यमंत्री पदों की बंदरबांट के लिए करना कांग्रेस को फिर से इतिहास की याद दिला सकता है।

 

-योगेन्द्र योगी

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