विधानसभा चुनावों में सभी राजनीतिक दलों ने गाय को जमकर दुहा

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कल्पना करें यदि गाय चुनाव लड़ रही होती तो क्या होता ? राजनीतिक दलों के नेता चुनावी मैदान में उसकी टांग−पूंछ−सींग मरोड़ते नजर आते। राज्यों के विधानसभा चुनाव में यह मूक जीव चुनावी घोषणा पत्रों का अहम् मुद्दा बना हुआ है।

कल्पना करें यदि गाय चुनाव लड़ रही होती तो क्या होता ? राजनीतिक दलों के नेता चुनावी मैदान में उसकी टांग−पूंछ−सींग मरोड़ते नजर आते। राज्यों के विधानसभा चुनाव में यह मूक जीव चुनावी घोषणा पत्रों का अहम् मुद्दा बना हुआ है। गायों की दिखावटी चिंता कागजों में दिखाई जा रही है। गायों की वास्तविक स्थिति के विपरीत हर राजनीतिक दल हिन्दू वोट बैंक को लुभाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इसके नाम पर भावनाएं भुनाने में कोई भी दल पीछे नहीं रहना चाहता।

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भाजपा की राजनीति हिन्दुत्व का चोला पहनने के कारण गाय भी चुनावी आधार बनी हुई है। भाजपा कई मंचों से गाय के राग अलापती रही है। भाजपा की तर्ज पर ही नरम हिन्दुत्व के जरिए सत्ता पाने की कवायद कर रही कांग्रेस के लिए भी अचानक गाय महत्वपूर्ण बन गई। यही वजह है कि मौजूदा चुनावी दौर में यथार्थ में हाशिये पर पड़ी गाय प्रासांगिक हो उठी है। पिछले चुनावों तक कांग्रेस या दूसरे क्षेत्रीय दलों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। गैर भाजपा दलों को अंदाजा हो गया कि गाय के मुद्दे पर भाजपा के हथियाए हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण में सेंध लगाई जा सकती है। यही वजह है कि है कि अभी तक बिसरा दी गई गाय चुनावी घोषणा पत्रों में महत्वपूर्ण स्थान पर पहुंच गई। चुनावी घोषणा पत्रों में कांग्रेस गायों की भलाई को लेकर वादे−दावों में भाजपा से मुकाबला कर रही है।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के घोषणा पत्र में प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक गौशाला बनाने का वायदा किया है। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में मप्र में गाय की स्वदेशी नस्लों के संरक्षण और प्रचार के लिए प्रदेश में राष्ट्रीय गोकुल मिशन की तर्ज पर पचास गोकुल ग्राम का विकास और दूसरी सभी सुविधाएं से लैस गौशालाओं की संख्या बढ़ाने का वायदा किया। प्रत्येक सम्भाग में एक गौअभ्यारण्य बनाने की बात कही गई। इसके विपरीत चुनाव पूर्व मध्य प्रदेश में गायों को लेकर भाजपा सरकार की किरकिरी हो चुकी है। गौशालाओं में पिछले छह महीने पहले तक गाय पर व्यय एक रूपया था, जब विवाद हुआ तब 7 रूपए प्रति गाय किया गया। गौअभ्यारण्य आगर जिले में बनाया, उसमें सैंकड़ों गाय देखरेख के अभाव में कालकलवित हो गईं।

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छत्तीसगढ़ में नेताओं को गाय के जरिए वोट लुभाने में दम नजर नहीं आया। इसीलिए चुनावी घोषणा पत्र से गाय गौण हो गई। जबकि राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलगांना में गाय के जरिए वोटों की फसल नजर आई। राजस्थान में कांग्रेस ने गौशालाओं के अनुदान बढ़ाने और निराश्रित गायों की समस्या को हल करने का वायदा किया। गोचर भूमि बनाने की भी घोषणा की गई। जबकि गाय का भजन जपने वाली भाजपा गोचर भूमि विकास बोर्ड के दावों तक ही सिमट कर रह गई। दरअसल राजस्थान में भाजपा ने गाय के मुद्दे से परहेज बरता। भाजपा के नगर निगम बोर्ड द्वारा संचालित सरकारी हिंगोनिया गौशाला में हजारों गायों की बीमारी और भूख−प्यास से मौत हो गई। इस मुद्दे पर बोर्ड और प्रदेश भाजपा सरकार की खूब किरकिरी हुई।

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भाजपा ने जहां राजस्थान में गाय को बिसरा दिया वहीं तेलंगाना में गाय को प्रमुख राजनीतिक आधार बना लिया। तेलंगाना में भाजपा ने हर साल एक लाख लोगों को गाय मुफ्त में देने की घोषणा करके वोट बैंक को एकजुट करने की रणनीति अपनाई। गाय रूपी यह पुराना चुनावी हथियार मतदाताओं को कितना बरगला सकेगा, इसका पता तो चुनाव परिणामों से ही चलेगा किन्तु यह निश्चित है कि भोली−भाली गाय की जीर्ण−शीर्ण होती हालत से किसी भी राजनीतिक दल का वास्ता नहीं रह गया है। नेताओं द्वारा गाय चुनावी मौसम में हर बार दुही जाती और कमजोर की जाती रही है।

-योगेन्द्र योगी

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