मध्य प्रदेश में सवर्ण समाज की नाराजगी के चलते जीती बाजी हार गयी भाजपा

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सबका साथ सबका विकास के ध्येय को लेकर आगे बढ़ने का दावा करने वाली मोदी सरकार को पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मुँह की खानी पड़ी है। उसका अपना वोट बैंक तो सरका ही है साथ ही चुनावों के दौरान उसने कई आत्मघाती कदम भी उठाये।

सबका साथ सबका विकास के ध्येय को लेकर आगे बढ़ने का दावा करने वाली मोदी सरकार को पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मुँह की खानी पड़ी है। उसका अपना वोट बैंक तो सरका ही है साथ ही चुनावों के दौरान उसने कई आत्मघाती कदम भी उठाये। भारतीय निर्वाचन आयोग ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के जो परिणाम जारी किये हैं उनका विश्लेषण करने पर प्रतीत होता है कि भले संख्या के मामले में कांग्रेस आगे निकल गयी हो लेकिन 15 साल शासन में रहने के बावजूद उसने कांग्रेस को जबरदस्त टक्कर दी है। राजनीति चूँकि अंकगणित का खेल है इसलिए भले कोई एक सीट ज्यादा जीते गद्दी उसे ही मिलती है।

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जरा आंकड़ों पर गौर कर लें 

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों को मिले मतों पर नजर डालें तो भाजपा 41 प्रतिशत मतों के साथ पहले नंबर पर रही और उसे कुल 15642980 मत प्राप्त हुए। कांग्रेस 40.9 प्रतिशत मतों के साथ दूसरे नंबर पर रही और उसे कुल 15595153 मत मिले। यानि भाजपा को कांग्रेस से मात्र 47827 मत मिले। अब क्षेत्रीय दलों को कितने मत मिले इसको अगर छोड़ भी दें तो दो आंकड़े जरूर चौंकाते हैं। पहला यह कि SC-ST एक्ट मामले से नाराज सवर्णों की जो पार्टी सपाक्स नाम से विधानसभा चुनाव लड़ रही थी उसने कुल 156486 मत हासिल किये। यानि अगर सपाक्स के मत भाजपा के साथ जुड़ जाते तो स्थिति बदल सकती थी। यही नहीं नोटा को बड़ी संख्या में (542295) मत मिले। यानि इतने ज्यादा मतदाता किसी भी दल के उम्मीदवार से खुश नहीं थे। मतदाताओं की उम्मीदवारों के प्रति यह नाखुशी राजनीतिक दलों के लिए चेतावनी होनी चाहिए। मतदाता अब यह सहन नहीं करता कि आप किसी को भी उम्मीदवार बना दें तो लोग उसे या इसे मतदान करने को बाध्य होंगे ही। नोटा के प्रति मतदाताओं का यह आकर्षण यदि लोकसभा चुनावों में भी जारी रहा तो नुकसान सभी दलों को होना तय है।


सवर्ण समाज का गुस्सा भारी पड़ा

अब बात जरा सपाक्स की हो जाये। यह सही है कि सरकार को सभी जातियों और वर्गों का ध्यान रखना है। कोई वर्ग उपेक्षित है तो उसे राहत भी प्रदान करनी है। लेकिन उपेक्षितों को आगे लाते समय अन्यों की चिंताओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। ऐसा लगता है एससी-एसटी एक्ट मामले में केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय का जो फैसला पलटा था उसका सवर्णों में गलत संदेश गया और सरकार इस वर्ग की चिंताओं को दूर करने में नाकामयाब रही। ऐसे में सवर्णों की ओर से कई प्रदेशों में नोटा पर बटन दबाने का अभियान चलाया गया और अलग से पार्टी सपाक्स बनाकर उम्मीदवार मैदान में उतारे गये जिसने भाजपा का मूल वोट बैंक समझे जाने वाले सवर्ण समाज में सेंध लगा दी। नतीजा सामने है। ऐसा भी नहीं है कि भाजपा को एक सबक देकर यह लोग संतुष्ट हो गये हों आगे के चुनावों में क्या हो सकता है इसके प्रति भी चिंता करनी चाहिए। यदि एससी-एसटी एक्ट मामले से पहले के राज्य के माहौल पर गौर किया जाये तो शिवराज सरकार के खिलाफ नाराजगी का माहौल इतना नहीं था कि सत्ता पलट जाये।


मुस्लिम मत एकजुट होकर कांग्रेस को गये

भाजपा की ओर से इन चुनावों में कई आत्मघाती कदमों को उठाया गया लेकिन यदि कुछ की चर्चा कर ली जाये तो उनमें से एक कमलनाथ का वह वायरल वीडियो भी है जिसमें वह मुस्लिम मतों की बात करते नजर आ रहे हैं। यह वीडियो भाजपा ने कांग्रेस को नुकसान पहुँचाने की मंशा से इतना वायरल कर दिया कि प्रदेश के कोने-कोने में यह संदेश पहुँच गया कि यदि भाजपा को हटाना है तो एकजुट होकर कांग्रेस को मतदान करना होगा। आंकड़े बता रहे हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस को मुस्लिम समाज का एकमुश्त वोट मिला है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का 'आपको अली मुबारक, हमको बजरंग बली...' वाला बयान और हनुमानजी को दलित बताने वाला बयान भी भाजपा को जबरदस्त नुकसान पहुँचाने वाला रहा है।


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शिवराज को हराने पर तुले थे भाजपा के ही नेता

यह सही है कि मध्य प्रदेश में भाजपा की कमान शिवराज सिंह चौहान के हाथों में थी लेकिन पार्टी में अब कई नेता ऐसे हो गये थे जोकि शिवराज को हराने पर तुले थे। उनका प्राथमिक उद्देश्य शिवराज को गद्दी हासिल करने से रोकना था। यहाँ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बूथ स्तर तक की तैयारियों को खुद देखा था लेकिन कांग्रेस भी बूथ मैनेजमेंट भाजपा से सीख गयी थी और सूक्ष्म स्तर तक निगरानी की जा रही थी। शिवराज सिंह चौहान ने पहले जन आशीर्वाद यात्रा और फिर चुनाव प्रचार के दौरान प्रदेश के सभी कोनों का दौरा किया लेकिन उनके साथ प्रचार के दौरान केंद्र के तो छोड़ दीजिये कई बार राज्य के नेता भी नहीं होते थे।


मैनेजमेंट में कांग्रेस निकल गयी आगे

जबकि दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया अधिकांश समय साथ में प्रचार करते हुए दिखे। यही नहीं राहुल गांधी भी जब-जब प्रचार के लिए आये तो यह दोनों नेता उनके साथ दिखे। पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान दिग्विजय सिंह को साइडलाइन कर दिया था लेकिन वह अपना मुंह बंद किये बैठे रहे ताकि पार्टी को कोई नुकसान नहीं हो। पार्टी ने राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा को भी चुनावी मैदान में पूरी तरह लगा रखा था जोकि नियमित रूप से मतदाता सूचियों का निरीक्षण कर रहे थे, गड़बड़ियों को चुनाव आयोग के संज्ञान में ला रहे थे और यदि त्रिशंकु विधानसभा बनती तो आगे की कानूनी लड़ाई के लिए अपनी टीम के साथ तैयार थे।

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नोटबंदी और जीएसटी ले डूबी

भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कहा था कि नोटबंदी के फैसले पर मुहर लग गयी और गुजरात विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने कहा था कि जीएसटी पर मुहर लग गयी। लेकिन मध्य प्रदेश के मतदाताओं की नाराजगी ने दर्शा दिया है कि नोटबंदी और जीएसटी से जनता नाराज है और इंदौर जैसे व्यापारिक शहर जिसे मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी भी कहा जाता है, के परिणामों पर गौर कर लें तो साफ है कि व्यापारियों ने भाजपा को तगड़ा झटका दिया है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा का दृष्टि पत्र जारी करने भोपाल पहुँचे वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि किसान प्रसन्न है, नोटबंदी और जीएसटी के खिलाफ कोई गुस्सा नहीं है। अब हकीकत क्या है यह सभी के सामने है।

बहरहाल, भाजपा चूँकि अंकगणित में पिछड़ने के बाद राज्य की सत्ता से बेदखल हो गयी है ऐसे में अब पार्टी को सार्थक विपक्ष की भूमिका निभानी होगी क्योंकि छह महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैं और जनादेश के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ या सरकार के साथ अन्यथा का असहयोग उसे और नुकसान पहुँचा सकता है।

-नीरज कुमार दुबे

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