झूठ और दुष्प्रचार के बीज बोकर गांधी परिवार की चौपट राजनीतिक फसल को उगाने का प्रयास

By धरमलाल कौशिक | Oct 02, 2020

अर्थशास्त्र का दुनिया भर में एक मान्य सिद्धांत है कि जिस भी उद्यम में जितना ज्यादा जोखिम होगा, लाभ की संभावना भी उतना अधिक होगी। भारत के अन्नदाता किसान एकमात्र ऐसे उद्यमी हैं, जिन्हें कांग्रेस ने हमेशा इस नियम का अपवाद बना कर रखा। बीज बोने से लेकर फसल तैयार कर उसे बाज़ार तक पहुचाने के बीच मौसम समेत हर तरह का जोखिम उठाने के बावजूद भी किसान उस अनुपात में हमेशा लाभ से वंचित रहते रहे हैं, जबकि बिचौलिए हर तरह के उतार-चढ़ाव का फायदा उठाते रहे। भारत की सम्पूर्ण कृषि व्यवस्था की विडम्बना को हम इन्हीं कुछ शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं।

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कांग्रेस समेत हर गैर-राजग सरकारों का किसान मुद्दों पर भी सस्ती, हल्की और स्वार्थपरक राजनीति ने हालात को लगातार बदतर बनाए रखा। इसी सप्ताह छत्तीसगढ़ में लागू हुए लॉकडाउन की पूर्व संध्या पर राजधानी रायपुर में 70 रूपये किलो तक टमाटर बिकने की खबर अखबार में प्रकाशित हुई है। यह वही टमाटर है जिसे इसी छत्तीसगढ़ के जशपुर आदि इलाके में तोड़ने में लगने वाला खर्च तक नहीं निकाल पाने के कारण किसान सड़क पर फेकते रहे हैं। ज़ाहिर है पिछले दिनों अत्यधिक ऊंची कीमत पर बिकी टमाटर का लाभ उसे पैदा करने वाले माटीपुत्रों को नहीं, अपितु उसकी अवैध जमाखोरी करने वाले बिचौलियों और ट्रेडर्स को ही मिला होगा।


अपने पहले कार्यकाल से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार इस विडम्बना को बदलने और देश के विकास में समान सहभागी यहां के किसानों को बनाने की कोशिश में लगी रही है। पिछले हफ्ते कृषि सुधार और कृषकों के कल्याण से संबंधित लागू किये गए दो क़ानून भाजपा नीत सरकार की इसी मंशा का स्पष्ट प्रकटीकरण है। इसी मंशा से कृषि सुधार से सम्बंधित तीन विधेयक सदन में लाए गए, जिनमें से दो विधेयक अब क़ानून बन चुके हैं। ‘कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सरलीकरण) विधेयक’ जहां हमारे किसान बंधुओं को ऐसे बिचौलियों से मुक्त कराने का विकल्प देगा वहीं ‘कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020’ नामक दूसरा विधेयक बोनी के समय ही फसलों की कीमत का निर्धारण कर किसान को ऊपर वर्णित जोखिमों से राहत प्रदान करेगा।


इन दोनों नए कानून के संबंध में ढेर सारी बातें कही गयी हैं लेकिन, अपनी जिज्ञासा खासकर यह है कि देश में दशकों तक किसानों के नाम पर राजनीति चमकाते रहने और बावजूद उसके उन्हें मुफलिसी और गरीबी में रख, आत्महत्या तक करने पर विवश करते रहने वाली कांग्रेस को इस विधेयक के प्रावधानों से समस्या है। कुछेक दुष्प्रचारों को छोड़ दें तो एक भी तार्किक तथ्य इन कानूनों के खिलाफ कांग्रेस सदन या उससे बाहर बता नहीं पायी है लेकिन, इसके बहाने अपनी खोयी हुई राजनीतिक ज़मीन पाने या देश भर में चौपट हुई गांधी परिवार की राजनीतिक फसल को वापस उगाने की ज़द्दोजहद में कांग्रेसी लग गये हैं। दुखद विडम्बना है कि जिन सुधारों की कांग्रेस खुद वकालत करती रही है, जिन-जिन वादों और मुद्दों को लेकर किसानों के पास ये वोट मांगने जाते रहे हैं, आज उन्हीं सुधारों के लागू हो जाने के बाद उसके विरोध में वह किसानों को गुमराह कर रही है।

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छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने स्वामीनाथन कमिटी की रिपोर्ट लागू करने की बात की थी और जब इन कानूनों के माध्यम से उस कमिटी की कई रिपोर्टों को लागू किया गया है तब कांग्रेस विरोध कर रही है। मसलन स्वामीनाथन कमिटी की सिफारिश थी कि ‘मंडी का उपयोग करने पर ही मंडी टैक्स लिए जायें’, जिसे इस विधेयक में ज्यों का त्यों लागू किया गया है। लेकिन जिस कांग्रेस ने इससे भी आगे बढ़ कर प्रदेश में अपने घोषणा पत्र में कहा था कि– ‘मंडी शुल्क समाप्त किये जायेंगे जिससे मूल्यवृद्धि का सीधा लाभ किसानों को मिल सके और व्यापारियों को राहत पहुंचाई जा सके- वह अब कम से कम बिना उपयोग किसानों/व्यापरियों को मंडी शुल्क न देना पड़े, ऐसे न्यायोचित प्रावधान का भी विरोध कर रही है।


उल्लेखनीय है कि 2007 में स्वामीनाथन कमिटी की रिपोर्ट आयी थी लेकिन 2014 तक मनमोहन सिंह जी की सरकार के जाने तक कांग्रेस हाथ पर हाथ रखे बैठी रही। अब भाजपा सरकार द्वारा इसे लागू करने के बाद इस तरह की हरकत कर रही है कांग्रेस। ऐसा वह यह जानते हुए भी कर रही है कि सोशल मीडिया के इस ज़माने में कोई भी सच वह पहले की तरह छिपा नहीं सकती।


आज देश के सभी किसान-युवा कृषि सुधारों पर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, कपिल सिब्बल, अजय माकन आदि के बयान देख-सुन रहे हैं। एक स्वर में इन सभी ने ऐसे सुधारों की वकालत की थी। आखिर आज क्या बदल गया है इसमें? आज सत्ता और अपनी ज़मीन गंवा लेने के बाद आखिर क्यों कांग्रेस इस तरह से ग़लतबयानी पर उतर आयी है? क्यों आखिर कांग्रेस, जिसे जनता ने विपक्ष के लायक भी दो लोकसभा चुनावों में नहीं छोड़ा है, वह सदन में भी सारी मर्यादाओं को तार-तार कर रही है? जवाब शायद सबसे सटीक यही होगा कि किसानों को लगातार ठगने के अपराधबोध में और उनकी समृद्धि से संबंधित क़ानून इतनी तेज़ी से लागू होने के बाद अपनी खिसकती ज़मीन को बचाने की हड़बडी में कांग्रेस इस अजीब तरह से पेश आ रही है। विडंबना है कि 2005 में मनमोहन सिंह की सरकार ने मंडियों में संशोधन का निर्देश दिया था। अनेक राज्यों ने इसे लागू किया। आज वह उसी का विरोध कर रही है। 


लौटते हैं फिर छत्तीसगढ़! आप गौर करें, इस क़ानून में स्पष्ट प्रावधान है कि उपज बिकने के तीन दिनों के भीतर किसानों को उनकी उपज का मूल्य देना होगा। प्रदेश की पूर्व भाजपा सरकार को इस बात का गर्व है कि उसने न केवल प्रदेश के किसानों का दाना-दाना उपज खरीदने की व्यवस्था की बल्कि उनका भुगतान भी बिना किसी लीकेज के चौबीस घंटे में उनके खाते में भेजने का इंतज़ाम किया। आश्चर्य है कि कांग्रेस उस क़ानून का विरोध कर रही है जिसमें यह स्पष्ट प्रावधानित है कि तीन दिन के भीतर किसानों को उनकी उपज का भुगतान करना होगा।


कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में भी ‘फसल बिकने के बाद 48 घंटों में उठाव और निर्धारित समय में भुगतान’ का वादा किया था लेकिन यह किसान कभी नहीं भूलेंगे कि अब नयी फसल आने को है लेकिन आज तक किसानों को धान की पूरी कीमत नहीं दे पायी है प्रदेश की कांग्रेस सरकार। वह आज भी किसानों को अपनी रियाया समझती है और अपने बादशाह गांधी परिवार के सदस्यों के जन्मदिन-पुण्यतिथि आदि पर टुकड़ों में टुकड़े की तरह किसानों के फसल का भुगतान कर रही है। वह किसानों को महीनों तक प्रतीक्षा कराती है ताकि उन्हें जो भी दिक्कत हो, पर कांग्रेस का प्रचार होता रहे। आपने हाल ही में देखा ही होगा कि राजीव गांधी जी की की पुण्यतिथि पर एक किश्त देने के बाद किसान भाइयों को राजीव जी के जन्मदिन पर अगली किश्त देने के लिए महीनों इंतज़ार कराया गया। ऐसी हरकत, किसानों का ऐसा अपमान यह इस क़ानून के बाद अब नहीं कर पायेगी, इसी आशंका में दोहरे होते जा रहे हैं ये। इसी तरह भंडारण का मामला है। अंग्रेजों के ज़माने जैसे कानून होने के कारण छत्तीसगढ़ में इस बार प्रदेश में किसानों को उनके स्वयं की फसल का भण्डारण करने के लिए ऐसा उत्पीड़न किया गया जैसे उन्होंने धान की नहीं अपितु गांजा-अफीम की खेती कर ली हो। अब भण्डारण की बाध्यता समाप्त होने के बाद शायद कांग्रेस इस तरह की बर्बरता न कर पाए, इसलिए भी वह परेशान है।

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ऐसा ही दुष्प्रचार न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर कांग्रेस फैला रही है जबकि इस क़ानून में उससे सम्बंधित कोई बात ही नहीं है। ज़ाहिर है एमएसपी व्यवस्था पहले की तरह ही जारी रहेगी। विरोधों से ऐसा लगता है कि प्रदेश की सरकार इसे ख़त्म करने के लिए बहाने तलाश रही हो जैसे। ऐसा उसे किसी कीमत पर करने नहीं दिया जाएगा। आश्चर्य है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की जिस सरकार ने धान खरीदी आदि की विश्वस्तरीय व्यवस्था तैयार की, दाना-दाना फसल खरीदने का ढांचा और नेटवर्क तैयार किया, कांग्रेस के ज़माने में वर्तमान मुख्यमंत्री जिस सरकार में मंत्री थे उस सरकार के द्वारा धान पानी में डुबो-डुबो कर देखने की बर्बर कारवाई और बमुश्किल पांच लाख टन धन खरीदने की व्यवस्था करने के विरुद्ध डॉ. रमन सिंह जी की भाजपा सरकार ने जिस खरीदी को 80 लाख मीट्रिक टन तक पहुंचाया, उस भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं ये कि पार्टी एमएसपी ख़त्म करना चाहती है। इससे भद्दी बात और क्या हो सकती है। सच तो यह है कि इस क़ानून के पारित होने के बाद मोदी जी की सरकार ने रबी सीजन के लिए एमएसपी की घोषणा की है जिसमें 2014 की तुलना में कांग्रेस के मुकाबले धान का समर्थन मूल्य 43% तो गेहूं का समर्थन मूल्य 41% बढ़ाया गया है। 2014 की तुलना में गेहूं और धान की खरीद की मात्रा में भी क्रमशः 114% और 73% बढ़ाई गयी है।


ऐसे अनेक तथ्य हैं जिसका जिक्र किया जा सकता है लेकिन एक वाक्य में कहें तो प्रदेश के सीएम और स्वास्थ्य मंत्री जिन पर कोरोना की विकरालता को रोकने का दायित्व है। वे अपने ही शासन द्वारा घोषित लॉकडाउन के बावजूद अपना काम छोड़ देश भर में गांधी परिवार के लिए दुष्प्रचार की फसल बोने निकल पड़े हैं, दुर्भाग्यपूर्ण है यह। कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने किसान के विषय पर चार दिसंबर 2012 को संसद में कहा था- आठ-आठ बिचौलियों की जकड़न में 35 से 40 प्रतिशत फसल खराब कर मात्र 15 से 17 प्रतिशत दाम किसानों को मिल पाता है, शेष बिचौलियों को।’ चिदंबरम के शब्द ही दुहराते कांग्रेस से पूछना होगा कि वह तय करे कि केंद्र का विपक्ष किसानों के साथ है या बिचौलियों के साथ?


-धरमलाल कौशिक

(लेखक छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं)

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