By अनुराग गुप्ता | Nov 29, 2021
नयी दिल्ली। देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी की नाव डूबती हुई दिखाई दे रही है और पुरानी नाव की सवारियों ने अब नई नांव तलाश की तरफ अपना रुख कर लिया है। क्योंकि पुरानी नाव में सवार लोगों को लगता है कि बिना कप्तान की नाव कभी भी पूरी तरह से डूब सकती है और वो हथियारों से लैस नाव को टक्कर नहीं दे सकती है। जी हां आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। हम देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी 'कांग्रेस' की बात कर रहे हैं जिसकी नाव सबसे पुरानी है और उसके कद्दावर सिपाही अब दूसरी नाव में सवार होने लगे हैं। इस वक्त कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी समस्या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नहीं बल्कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) बन गई है। जो कभी यूपीए में कांग्रेस के ही साथ थी और अब उनके ही सिपहसालारों को अपनी नाव में बैठा रही हैं। पहले यह सिलसिला पश्चिम बंगाल में दिखाई दिया।
कांग्रेस नेता विधानसभा चुनाव के दरमियां टीएमसी में शामिल हो गए। उस वक्त कहा जा रहा था कि बंगाल में टीएमसी सत्ता में है। इसलिए ऐसा हो रहा है फिर पूर्वोत्तर से खबर सामने आई कि पूर्व मुख्यमंत्री समेत मुकुल संगमा समेत 12 विधायक टीएमसी में शामिल हो गए और अब हिंदी भाषी राज्यों में भी यही देखने को मिल रहा है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा जैसे राज्यों के नेता भी टीएमसी की सदस्यता ले रहे हैं। हाल ही में कांग्रेस नेता कीर्ति आजाद, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर, जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व महासचिव पवन वर्मा ने ममता बनर्जी के साथ जाने का फैसला किया। दरअसल, ममता बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी सीधे भाजपा को चुनौती देना चाहती है। इसके लिए टीएमसी ने विस्तारवादी नीति अपनाई है। ममता बनर्जी लगातार दूसरे राज्यों का दौरा कर रही हैं।
माना जा रहा है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और महाराष्ट्र का जल्द ही दौरा करेंगी। इतना ही नहीं ममता बनर्जी से दिल्ली दौरे के वक्त मीडियाकर्मियों ने कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात को लेकर सवाल पूछा। जिस पर उन्होंने कहा कि इस बार मैंने मुलाकात के लिए सिर्फ प्रधानमंत्री का समय मांगा था। सभी नेता पंजाब के चुनाव में व्यस्त हैं। काम पहले है... हर बार हमें सोनिया गांधी से क्यो मिलना चाहिए? यह संवैधानिक रूप से बाध्यकारी थोड़े ही है? दरअसल, पिछली बार ममता बनर्जी जब दिल्ली दौरे पर आईं थीं उस वक्त उन्होंने सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत कई वरिष्ठ कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात की थी। जिसे विपक्षी एकता के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन फिर मानसून सत्र के दौरान कांग्रेस से टीएमसी की दूरियों ने यह स्पष्ट कर दिया कि राहुल गांधी के नेतृत्व में ममता बनर्जी आगे नहीं बढ़ना चाहती हैं।
मेघालय के बाद असम का नंबर
पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा समेत 12 विधायकों ने कांग्रेस को अलविदा कहकर टीएमसी का दामन थामा। इसे कांग्रेस के लिए एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। इतना ही नहीं ममता बनर्जी पूर्वोत्तर में खुद को मजबूत करने की कोशिशों में भी जुट गई हैं। टीएमसी में शामिल हुए मुकुल संगमा का कहना है कि ममता बनर्जी की पार्टी 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले पूरे पूर्वोत्तर में अपना राजनीतिक आधार बढ़ाने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि मैं अन्य राज्यों के नेताओं के साथ बातचीत कर रहा हूं। हमारे राजनीतिक फैसले के बाद से वे मुझसे मिल रहे हैं। यह दिखाता है कि वे अपने-अपने राज्यों में कुछ नए की तलाश कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ असम कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था लेकिन हेमंत बिस्वा सरमा को गंवाकर कांग्रेस ने अपने किले को भी ढहा दिया। भाजपा ने हेमंत बिस्वा सरमा पर विश्वास जताया। जिसकी बदौलत पूर्वोत्तर में भाजपा की पकड़ मजबूत हुई और हेमंत बिस्वा सरमा को इसका इनाम भी मिला। भाजपा ने उन्हें असम का मुख्यमंत्री बना दिया। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की नाव को पूर्वोत्तर में डुबाने के लिए टीएमसी ने सुष्मिता देव को अपनी पार्टी में शामिल कर रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया था। सुष्मिता देव ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि टीएमसी मेघालय के बाद असम की तरफ बढ़ रही है। अगर भविष्य में असम कांग्रेस नेता टीएमसी की सदस्यता ग्रहण कर ले तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए।
गोवा को नहीं संभाल पाई कांग्रेस
साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 40 में से 17 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इसके बावजूद वो सरकार बना पाने में कामयाब नहीं हो पाई और अब स्थिति ऐसी है कि 17 में से 13 विधायकों ने या तो इस्तीफा दे दिया या फिर दल बदल लिया। ऐसे में 2022 का गोवा विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए आसान नहीं होने वाला है। क्योंकि टीएमसी और आम आदमी पार्टी प्रदेश में सक्रिय हो चुकी है। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हों फलेरियो ने भी कांग्रेस को अलविदा कहकर टीएमसी पर भरोसा जताया है।