निर्भया मामले में न्याय तंत्र को धोखा देने की साजिश भी की गयी

By सुरेश हिंदुस्थानी | Mar 24, 2020

भारतीय संस्कृति में यह अकाट्य मान्यता रही है कि आज नहीं तो कल व्यक्ति को उसके बुरे कर्मों की सजा अवश्य मिलती है। देर चाहे जितनी हो जाए लेकिन भगवान के घर अंधेर नहीं होता। ऐसा लगता है कि देश के बहुचर्चित निर्भया मामले में यही कहावत चरितार्थ होती हुई दिखाई दी। दरिंदों को उनके द्वारा किए गए अपराध की सजा मिल चुकी है। इस मामले में भले ही सात साल, तीन महीने और तीन दिन का समय लगा, लेकिन दोषियों को फांसी की सजा मिलने के साथ ही इस मामले में न्याय मिल गया है। यह सजा निश्चित रूप से दुष्कर्म करने वालों के लिए गहरा सबक देने वाली है। इससे यह संदेश भी गया है कि अपराधी चाहे कितना भी बड़ा हो भारत का कानून उसे न्याय देते हुए सजा अवश्य ही देगा।

 

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निर्भया मामले में शामिल रहे अपराधियों ने तमाम दांव पेंच अपना कर फांसी को बार-बार टालने का प्रयास किया, इसमें कुछ हद तक वे सफल भी रहे। हम जानते हैं कि तीन बार फांसी की तारीख नियति को स्वीकार नहीं हुई। कानूनी अधिकारों के तहत दांव पेंच अपनाकर यह तारीखें अपराधियों को अंजाम तक नहीं पहुंचा सकीं। लेकिन अब अपराधियों के दांव पेंच असफल हो गए और कानून जीत गया। हालांकि न्याय मिलने में जो देर हुई, उससे भारतीय न्याय व्यवस्था पर एक बार फिर से सवाल खड़े होते दिखाई दिए। इसलिए अब होना यह चाहिए कि ऐसे मामलों में त्वरित गति से सुनवाई किए जाने की व्यवस्था बनाने की ओर प्रवृत्त होना चाहिए। जरूरत पड़े तो केंद्र सरकार को इसके लिए प्रावधान भी करना चाहिए।


निर्भया मामले में सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि देश की जनता और निर्भया के परिजनों ने गजब की सहन शीलता का परिचय दिया। वे हर सुनवाई में शामिल हुए और मामले को अंजाम तक पहुंचाया। इसमें निर्भया के वकीलों का योगदान भी कम नहीं था। उन्हें कभी निराश होते नहीं देखा। इस मामले में हालांकि सभी को पूरा विश्वास था कि उन्हें न्याय अवश्य मिलेगा।


निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड को अंजाम देने वाले दोषियों के सलाहकार कानून विशेषज्ञों ने उन्हें बचाने का भरपूर प्रयास किया। यहां तक कि फांसी होने से दो घंटे पहले आधी रात के बाद तक दोषियों के वकीलों ने अपने अंतिम प्रयास किए, लेकिन वे अपने इस साजिशी अभियान में सफल नहीं हो सके। यहां निश्चित रूप से एक बड़ा सवाल यह आता है कि इन कानून विशेषज्ञों के प्रयास किन लोगों को बचाने का प्रयास कर रहे थे। क्या यह अन्य अपराधियों के लिए बचाव करने का रास्ता तैयार करने वाला नहीं था। वास्तव में कानून अपराधियों को सबक देने वाला होना चाहिए, न कि उन्हें संरक्षा प्रदान करने वाले। लेकिन यह विसंगति ही मानी जाएगी कि भारतीय कानून में दोषियों को भी भरपूर कानूनी अधिकार मिले हैं। इन्हीं का फायदा निर्भया के दोषियों ने उठाया। अब सवाल यह भी है कि क्या वकीलों का यह कदम न्याय को अन्याय में परिवर्तित करने का प्रयास नहीं था ? हालांकि वकील का कर्तव्य यही है कि वह जिसके लिए लड़ रहा है, उसे न्याय दिलाने में पूरी शक्ति भी लगाए, लेकिन यह भी ध्यान में रहना चाहिए कि उनका यह प्रयास न्याय व्यवस्था के लिए एक चुनौती से कम नहीं था। वकीलों को भी यह तय करना चाहिए कि उन्हें कैसे मामलों की पैरवी करना चाहिए।


निर्भया मामले के पूरे घटनाक्रम पर दृष्टिपात किया जाए तो यह भी ध्यान में आता है कि इसमें भारतीय न्याय तंत्र को धोखा देने की सुनियोजित साजिश की गई, इसीलिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने देर रात्रि दोषियों के वकील से कहा कि न्याय तंत्र को धोखा देने के प्रयास मंजूर नहीं किए जाएंगे। इसका तात्पर्य यह भी है कि इस मामले में ऐसा प्रयास किया गया।

 

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हम जानते ही हैं निर्भया के दोषियों को सजा दिलाने के लिए पूरे देश ने आक्रोश का प्रकटीकरण किया था और दोषियों को तत्काल फांसी देने की मांग भी थी, लेकिन दोषियों को मिले कानूनी अधिकारों के चलते ऐसा संभव नहीं हो सका। हालांकि अब सजा मिल गई है। जल्दी सजा मिलती तो उसके निहितार्थ कुछ और ही होते। हम जानते हैं कि हैदराबाद में भी इसी प्रकार की एक घटना हुई। जिसमें एक चिकित्सक युवती को दरिन्दों ने न सिर्फ अपनी हवस का शिकार बनाया, बल्कि उसे जलाकर मार डाला। उसके बाद इस आरोपियों को पुलिस हिरासत से भागने के प्रयास में मुठभेड़ के दौरान मौत के घाट उतार दिया। इस मुठभेड़ पर तमाम प्रकार के सवाल भी उठे, लेकिन भारत की जनता ने इस कृत्य पर अपना जबरदस्त समर्थन दिया। यहां तक कि पुलिस के इस दल में शामिल व्यक्तियों का समाज ने अभिनंदन भी किया। इसका तात्पर्य यही है कि भारतीय समाज ऐसे अमानुषिक कृत्यों को सहन करने की मानसिकता में नहीं है। समाज ऐसा ही न्याय निर्भया मामले में भी चाहता था, लेकिन इस मामले में देर जरूर हुई, पर अंधेर नहीं।


-सुरेश हिंदुस्थानी


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