Dadabhai Naoroji Death Anniversary: दादाभाई नौरोजी ब्रिटिश संसद में बने थे भारतीयों की आवाज, ऐसा रहे जीवन

By अनन्या मिश्रा | Jun 30, 2025

आज ही के दिन यानी की 30 जून को दादाभाई नौरोजी का निधन हो गया था। वह एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, विद्वान और लेखक थे। उन्होंने अंग्रेजों के भ्रष्टाचार को पूरी दुनिया के सामने लाकर देश के लोगों जागरुक करने का काम किया था। इस कारण दादाभाई नौरोजी को 'ग्रांड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया' भी कहा जाता है। उनका भारत के लिए योगदान अतुलनीय था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर दादाभाई नौरोजी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


पहले पारसी समाज के लिए

बता दें कि 04 सितंबर 1825 को नवसारी में दादाभाई नौरोजी का जन्म हुआ था। उन्होंने एलफिंस्टन इंस्टीट्यूट स्कूल में अपनी शुरूआती पढ़ाई की थी। जहां पर उनको बड़ोदरा के महाराजा का संरक्षण मिला और वह दीवान के रूप में कार्य करने लगे। उन्होंने रहनुमाई माजदासन सभा की स्थापना की। दादाभाई नौरोजी ने गुजराती पाक्षिक रस्त गुफ्तार का संपादन करते हुए पारसी समाज सुधार की पैरोकारी की थी। फिर उन्होंने द वॉइस ऑफ इंडिया समाचार पत्र का प्रकाशन भी किया।

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खुद का व्यवसाय और प्रोफेसर

दादाभाई नौरोजी ने लंदन में कामा एंड कंपनी में सफलतापूर्वक काम किया और फिर खुद का कपास का व्यापार शुरू किया। कई व्यवसायों को संभालते हुए वह यूनिवर्सिटी कॉलेज में 10 साल तक गुजारती के प्रोफेसर भी रहे। दादाभाई नौरोजी से जुड़ने वालों की संख्या काफी तेजी से बढ़ती रही। हालांकि शुरूआत में उन्होंने किसी नियोजित राजनैतिक एजेंडा या सिद्धांत को नहीं अपनाया। लेकिन वह एक राष्ट्रवादी लेखक और प्रवक्ता बनते चले गए।


भारतीयों की आवाज बने

भारतीय राजनेता के रूप में साल 1892 से लेकर 1895 तक दादाभाई नौरोजी यूके के हाउस ऑफ कॉमन्स में लिबरल पार्टी के सांसद थे। वह भारत के अनाधिकृत राजदूत भी कहे जाते थे। दादाभाई नौरोजी अंग्रेजी हुक्मरानों और ब्रिटिश नागरिकों तक भारतीयों की समस्याओं को पहुंचाया करते थे। इसके अलावा उन्होंने ब्रिटेन में महिलाओं को वोट देने के अधिकार, आयरलैंड में स्वराज, बुजुर्गों को पेंशन, हाउस ऑफ लॉर्ड्स को खत्म करने जैसे मुद्दों को भी उठाया था।


दादाभाई नौरोजी तीन बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। साल 1906 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेधन में भी वह पार्टी के अध्यक्ष चुने गए। इस मौके पर दादाभाई नौरोजी ने अपने भाषण में स्वराज को सबसे ज्यादा महत्व दिया था।


मृत्यु

वहीं 30 जून 1917 को बंबई में दादाभाई नौरोजी का निधन हो गया था।

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